हृदय विफलन
हृदयाघात वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
हृदयाघात के प्रधान लक्षण और चिह्न | |
आईसीडी-१० | I50. |
आईसीडी-९ | 428.0 |
डिज़ीज़-डीबी | 16209 |
मेडलाइन प्लस | 000158 |
ईमेडिसिन | med/3552 emerg/108 radio/189 med/1367150 ped/2636 |
एम.ईएसएच | D006333 |
हृदयाघात आज मनुष्य-जाति के सर्वाधिक प्राणलेवा रोगों में से प्रमुख है जो मानसिक तनाव एवं अवसाद से जुड़ा हुआ है। दोषपूर्ण भोजन-विधि, मद्यपान, धूम्रपान, मादक पदार्थों का सेवन तथा विश्रामरहित परिश्रम इत्यादि हृदय-रोग के प्रमुख कारण हैं। इसके निदान के लिए जीवन-शैली में परिवर्तन लाने की आवश्यकता प्रमुख है। आधुनिक सभ्यता का यह अभिशाप है कि मनुष्य के जीवन में केवल बाह्य परिस्थितियाँ ही दवाब उत्पन्न नहीं करती बल्कि इंसान स्वयं भी काल्पनिक एवं मिथ्या दवाब उत्पन्न करके अपने को अकारण ही पीड़ित करने लगता है। जब मानव मस्तिष्क को कोई उतेजनापूर्ण सन्देश मिलता है, कुछ ग्रन्थियों मे तत्काल स्राव प्रारम्भ हो जाता है जिसके प्रभाव से सारे देह यन्त्र में विशेषत: हृदय तथा रक्त-संचार में एक उथल-पुथल सी मच जाती है, जिसका आभास नाड़ी के भड़कने से होने लगता है। हृदय शरीर का अत्यन्त संवेदनशील अंग है तथा सारे जीवन बिना क्षणभर विश्राम किए हुए ही निरन्तर सक्रिय रहकर समस्त अवयवों को रक्त तथा पोषक तत्वों की आपूर्ति करता है। मस्तिष्क का अत्यधिक दवाब हृदय में इतनी धड़कन उत्पन्न कर देता है कि उसे सहसा आघात (हार्ट एटैक) हो जाता है।
अघात के कारण
यद्यपि हृदय आघात के कारण अनेक हैं तथापि दबाव ही आघात का प्रमुख कारण है। पुष्टिप्रद भोजन लेते रहने पर भी मानसिक दबाव हृदय को आहत कर देता है। दीर्घकाल तक मानसिक दबाव एवं तनाव के रहने पर पेट में व्रण (पेप्टिक अल्सर), भयानक सिरदर्द (माइग्रेन), अम्लपित (हाइपर एसिडिटि), त्वचा-रोग इत्यादि भी उत्पन्न हो जाते हैं।
मनुष्यों में व्यक्तिगत भेद होते हैं तथा बाह्य परिस्थितियों को ही सारा दोष देना उचित नहीं है। कुछ लोग अन्यन्त विषम परिस्थिति में भी पर्याप्त सीमा तक सम और शान्त रहते हैं तथा कुछ अन्य साधारण-सी विषमता में भी अशान्त हो जाने के कारण सहसा भीषण हृदय-रोग से आहत हो जाते हैं। अतएव यह स्पष्ट है कि मनुष्य का दोषपूर्ण स्वभाव अथवा दोषपूर्ण चिन्तन ही हृदयघात का प्रमुख कारण है।
अघात से बचाव
हमें यह समझ लेना चाहिए कि प्राय: मानसिक दवाब बाह्य परिस्थिति की प्रतिक्रिया होता है किन्तु प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक प्रतिक्रिया बौद्धिक-शक्ति के भेद के कारण भिन्न होती है। अतएव प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अपनी चिन्तन-शक्ति एवं संकल्प-शक्ति को जगाते रहने का निरन्तर प्रयत्न करते रहना चाहिए तथा अपने स्वाभाव एवं सामर्थ्य तथा परिस्थितियों के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को अपने मानसिक दबाव और उससे उत्पन्न तनाव के मूल कारण को अपने भीतर ही अर्थात अपनी चिन्तन-शैली एवं स्वभाव के भीतर ही खोजकर उसके समाधान का बुद्धिमतापूर्ण उपाय करना चाहिए। अतएव यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम अपने विचारों और स्वभाव को पूरी तरह से जानें जिससे कि हम विवेक के सदुपयोग द्वारा अपने मानसिक दबावों का नियन्त्रण एवं निराकरण कर सकें। हमें आत्म-विश्लेषण द्वारा अपने गुण, अपने दोष, अपने विश्वास, अपनी आस्थाएं, मान्यताएं, अपने भय और चिन्ताएं, अपनी दुर्बलताएं, हीनताएं, अपनी समस्याएं, अपने दायित्व, अपनी अभिरुचि, सामर्थ्य और सीमाएं जानकर अपने चिन्तन, स्वाभाव एवं जीवन-शैली में आवश्यक परिर्वतन लाने का प्रयत्न करना चाहिए।