हस्तलक्षणदीपिका
हस्तलक्षणदीपिका एक ग्रन्थ है जिसमें हस्तमुद्राओं के बारे में विशद वर्णन है। इसमे २४ मूल मुद्राएं बतायी गयी हैं। इन मुद्राओं के मेल से सैकड़ों मुद्राएँ बनती हैं। हस्तमुद्राएं एक 'सम्पूर्ण सांकेतिक भाषा' के अंग हैं जिनके माध्यम से कोई मेधावी कलाकार सभी विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि मुद्राओं का जन्म तांत्रिक कर्मकाण्डों से हुआ है।
प्रसंग की आवश्यकता के अनुसार हस्तमुद्राएँ एक हाथ से या दोनो हाथों से व्यक्त की जाती हैं।
चौबीस मूल हस्तमुद्राएँ
अंजलि, अराल, अर्धचन्द्र, भ्रमर, हंसास्यम्, हंसपक्ष, कपितक, कर्तरीमुख, कटक, कटकमुख, मृगशीर्ष, मुद्राख्या, मुकुल, मुकुर, मुष्टि, ऊर्णनाभ, पल्लव, पताका, सर्पसिरस्, शिखर, सूचिमुख, शुकतुण्ड, त्रिपताका, वर्धमानक।
ये मुद्राएं केरल के नृत्यनाटिकाओं (जैसे कथकली, कुटियाट्टम्, मोहिनियाट्टं आदि) में प्रयोग की जाती हैं।