स्वामी हितदास
स्वामी हितदास (१९१५ - २००३) राधावल्लभ सम्प्रदाय के एक सन्त एवं हिन्दी साहित्यकार थे।
जीवनी
श्री हितदास का जन्म १९१५ में नर्मदा के किनारे नारा ग्राम में हुआ था। आपने अत्यल्प काल में ही हिन्दी वाङ्मय पर पूर्ण अधिकार कर अपनी अद्भुत प्रतिभा से सबको चमत्कृत कर दिया। आपकी संस्कृत शिक्षा त्रिपुरी के समीप भेड़ा घाट पर सम्पन्न हुई। सन् 1936 से 1942 तक पिण्डरई में आपने अध्यापन कार्य किया। 1942 में अध्यापन कार्य से त्यागपत्र देकर सर्वदा के लिये आप श्रीधाम आ गये। वहाँ आपको गोस्वामी श्रीहित वृन्दावनवल्लभ जी महाराज का गुरुत्व प्राप्त हुआ एवं कुछ ही समय पश्चात् गोस्वामी श्रीहित जुगलवल्लभ जी महाराज से निजमंत्र प्राप्त किया। विरक्त वेष आपने श्रीहित परमानन्द दास जी महाराज से ग्रहण किया।
सन् 1945—48 पर्यन्त आप श्रीहित अचलविहार की बारह द्वारी में मधुकरी वृत्ति द्वारा जीवन यापन करते हुए निवास किया। सन् 1948—52 तक आप श्रीहित महाप्रभु की प्राकट्य स्थली श्रीबाद धाम में सेवारत रहे एवं मंदिर का जीर्णोध्दार किया। पश्चात् सन् 1955 में गांधी—मार्ग स्थित श्रीहिताश्रम सत्संग भूमि की संस्थापना कर सम्प्रदाय को श्रीहितोपासना का एक सुदृढ़ केंद्र प्राप्त कराया।
आपने रसोपासना से संबन्धित अनेक संस्कृत एवं ब्रजभाषा के ग्रन्थों की भावपूर्ण टीकाओं का प्रणयन—प्रकाशन कर रसिकों एवं जिज्ञासुओं का अकथनीय उपकार किया। आपकी स्वरचित कृतियाँ “भाव-मंजरी” एवं “हृदयोद्गार” साहित्य जगत् में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। आप अपनी विलक्षण स्मरण शक्ति, मधुर-मोहिनी प्रवचन शैली एवं वाग्विदग्धता से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे। श्रीमद् राधारससुधानिधि, श्रीराधा उप सुधानिधि, श्रीबयालीस लीला एवं श्रीभक्तमाल जी के तो आप ह्रदयस्पर्शी, सरस और मार्मिक प्रवक्ता रहे।
संत एवं वैष्णव समाज ने अपना गौरव मानते हुए आपको चतुःसम्प्रदाय विरक्त वैष्णव परिषद्, वृन्दावन का अध्यक्ष पद प्रदान किया। सत्य एवं निष्ठापूर्वक धर्म एवं संस्कृति के रक्षार्थ आप जीवन के अन्तिम समय तक प्रयासरत रहे।
प्रवचन और साहित्य रचना
स्वामी श्रीहितदास जी महाराज को बाल्यावस्था से हे साहित्य से अनुराग था। वे स्वयं भी रचना करने लगे थे। कृष्ण-भक्ति का रंग लगने पर उन्होंने कृष्ण-भाव की रचनाएँ आरम्भ कीं।स्वामी श्रीहितदास जी ने स्वामी श्री अखण्डानन्द सरस्वती जी महाराज के विषय में जो छोटी सी पुस्तक "सबके प्रिय, सबके हितकारी" लिखी है, वह भी स्वच्छ साहित्यिक गद्य का अत्यन्त सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करती है। उनका गद्य बड़ा ही उज्ज्वल, प्रभावोत्पादक और प्रवाहयुक्त है। उसे जीवनी-साहित्य में रखा जा सकता है, साधकों के लिए तो जैसे यह एक मार्गदर्शिका है। स्वामी श्रीहितदास जी ने हिताश्रम से जो ग्रंथ प्रकाशित कराये अथवा जो अभी अप्रकाशित हैं उनके नाम हैं-
स्वरचित साहित्य
- भाव-मंजरी (प्रकाशित)
- हृदयोद्गार (प्रकाशित)
- पद-संग्रह (अप्रकाशित)
- स्तवक (अप्राप्त)
- श्रीहितहरिवंश चरित (अप्रकाशित)
- श्रीहित सेवक चरित्र (प्रकाशित)
"हितवाणी" नामक एक अत्यन्त उपयोगी पत्रिका भी आश्रम से प्रकाशित की गयी। इसमें भी उनके अनेक लेख विद्यमान हैं।
टीका
- श्री राधारससुधानिधि (प्रकाशित)
- श्री उपसुधानिधि (प्रकाशित)
- बयालीस लीला (प्रकाशित)
- श्रीहित चतुरासी (प्रकाशित)
- श्रीहित सेवक वाणी (प्रकाशित)
- श्रीनाभा स्वामी कृत भक्तमाल (प्रकाशित)