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स्वामी भक्तिसिद्धान्त सरस्वती

स्वामी भक्तिसिद्धान्त सरस्वती

स्वामी भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद (6 फ़रवरी 1874 – 1 जनवरी 1937) गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख गुरू एवं आध्यात्मिक प्रचारक थे।[] उन्हें 'भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर' भी कहते हैं। उनका मूल नाम विमल प्रसाद दत्त था। []श्रीकृष्ण की भक्ति-उपासना के अनन्य प्रचारकों में स्वामी भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी का नाम अग्रणी है।[] उन्हीं से प्रेरणा और आशीर्वाद प्राप्त कर स्वामी भक्तिवेदान्त प्रभुपाद ने पूरे संसार में International Society For Krishna Consciousness {ISKCON} की शाखाएं स्थापित कर लाखों व्यक्तियों को हिन्दूधर्म तथा भगवान श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त बनाने में सफलता प्राप्त की थी। []

[Main Source : Gaudiya Math ]

{ISKCON GBC} {Past Time Of Srila Bhaktisidhant Saraswati Maharaj ] {श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर, श्रील ए.सी. के गुरु। भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, 6 फरवरी 1874 को श्रील सचिदानंद भक्तिविनोद ठाकुर के पुत्र के रूप में श्रीक्षेत्र धाम (जगन्नाथ पुरी) में प्रकट हुए। बचपन में उन्होंने वेदों पर शीघ्र ही महारत हासिल कर ली, भगवद-गीता को कंठस्थ कर लिया और अपने पिता के दार्शनिक कार्यों का आनंद लिया। अपने विशाल ज्ञान के कारण उन्हें "द लिविंग इनसाइक्लोपीडिया" के नाम से जाना जाने लगा। उन्होंने जातिवाद और गौड़ीय वैष्णववाद से दार्शनिक विचलन के खिलाफ दृढ़ता से प्रचार किया। उन्होंने अपनी शिक्षाओं को प्रकाशित करके चार वैष्णव संप्रदायों को एकजुट करने का प्रयास किया। श्रील सरस्वती ठाकुर ने वैष्णव सिद्धांत के अपने निडर और शक्तिशाली प्रस्तुतिकरण के लिए नृसिंह गुरु की उपाधि अर्जित की।}

परिचय

स्वामी भक्तिसिद्धान्त का जन्म 20 जुलाई 1873 को चैतन्य महाप्रभु की शिष्य परम्परा के महान वैष्णव आचार्य भक्ति विनोद ठाकुर के पुत्र के रूप में जगन्नाथपुरी में हुआ था।[] गौड़ीय सम्प्रदाय के आचार्य पिताश्री से उन्हें बचपन में ही श्रीकृष्ण भक्ति का प्रसाद मिला था। श्रीमद्भगवद्गीता तथा चैतन्य महाप्रभु के पावन जीवन चरित्र ने उन्हें श्रीकृष्ण भक्ति के प्रचार-प्रसार की प्रेरणा दी।[]

भक्ति सिद्धान्त युवावस्था से ही अंग्रेजी तथा बंगला के प्रभावी वक्ता थे। युवा पीढ़ी विशेषकर उनके व्याख्यान सुनकर मंत्र-मुग्ध हो जाती थी। वे दक्षिणेश्वर मन्दिर जाकर प्राय: स्वामी रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानन्द के सान्निध्य का लाभ उठाते थे।[]विशेष रिपोर्ट [श्रोत : गौडीय मठ]]