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सोहगौरा ताम्रलेख

सोहगौरा ताम्रलेख
सोहगौरा ताम्रपट
सामग्रीताम्र
लेखनब्राह्मी लिपि
कृतिईसापूर्व तीसरी शताब्दी
कालईसापूर्व तीसरी शताब्दी
खोज26°34′N 83°29′E / 26.57°N 83.48°E / 26.57; 83.48निर्देशांक: 26°34′N 83°29′E / 26.57°N 83.48°E / 26.57; 83.48[1]
स्थानभारत
अवस्थितिगोरखपुर, सोहगौरा[2]
सोहगौरा is located in भारत
सोहगौरा
सोहगौरा

सोहगौरा ताम्रलेख एक ताम्रपट्ट पर लेखबद्ध मौर्यकालीन प्राचीन लेख है[3] जो उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास सोहगौरा नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।[4] सोहगौरा, गोरखपुर से ३५ किमी दक्षिण-पूर्व में राप्ती नदी के किनारे स्थित है। [5] इस ताम्रलेख की लिपि मौर्यकालीन ब्राह्मी है और भाषा प्राकृत[6] अभिलेख की मोटाई 1.6 मि.मी. और आकार 6.4 × 2.9 से.मी. का है।[7]

सोहगौरा का पुरास्थल भारतीय लेखन कला की प्राचीनता को प्रमाणित करने वाला पहला अभिलेख प्रस्तुत करता है। इसमें अकाल एवं दुर्भिक्ष के समय जनता के उपयोग के लिए अन्न के तीन कोष्ठागारों के बनाने का वर्णन है। इस अभिलेख से अकाल के दौरान चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा किए गए राहत कार्यों की चर्चा है।[8][9] यह अभिलेख चार पंक्तियों में वर्णित है।

इस अभिलेख में वंशग्राम में स्थापित किये गये दो कोष्ठागारों का उल्लेख है, जिनमें एकत्रित अनाज को दुर्भिक्ष और, आपत्तिकाल में त्रिकवेणी, माथुर, चंचु मयुदाम और भल्लक ग्रामों में वितरित करने का आदेश श्रावस्ती के महामात्रों ने मानवाशीतिकट शिविर से दिया था।[10]

उपस्तिथि

सोहगौरा से पाए गए ताम्रपत्र के अनुसार गोरखपुर का ज़िला (अर्थात् मल्लराष्ट्र का पश्चिमी भाग) श्रावस्ती महाभुक्ति में पड़ता था ।[11]

अभिलेख

सवतियनमहह्मगनससनेमनवसितिक
डसिलिंय तेव सगमेव एते दुवे कोट गलनि
तिववनिमथुलचचमौदंमभलक न छ
लकयियति अतियायिक यनो गहितवय

सोहगौरा ताम्रलेख, गोरखपुर[12]

अनुवाद : श्रावस्ती के महामात्रों का आदेश मानवसिति शिविर से जारी हुआ ठेकेदारों को, केवल सूखे के आगमन पर, ये द्रव्य संग्रहालय - त्रिवेणी, मथुरा, चांचू, मोदमा और भद्रा - वितरित किए जाने हैं, और यदि आपातकाल में हैं तो इन्हें रोका नहीं जाना चाहिए।

इस प्राकृत अभिलेख का संस्कृत अनुवाद इस प्रकार है[13] : " श्रावस्तीयानां महामात्राण शासनं मानवसिटिकटात् । श्रीमतिवंशग्राम एवैते द्वे कोष्ठागारे त्रिगर्ने मधुकालाजाज मोदाम्बभारकाणं क्षलं कार्योंमत आत्ययिकाय। नो गृहीतव्यम् । "

इस ताम्रलेख के शीर्ष पर एक सामान्य अर्धचंद्राकार प्रतीक है जो आम तौर पर मौर्य चांदी के पंच चिह्नित सिक्कों पर पाया जाता है, और कुम्हरार स्तंभ के आधार पर और कई अन्य पर भी पाया जाता है। जायसवाल वा अन्य इतिहासकार इसे चन्द्रगुप्त मौर्य का मोनोग्राम मानते हैं। वह चंद्र के रूप में शीर्ष अर्धचंद्र लेते है और शेष पहाड़ी जैसा संयोजन गुत्त के लिए; ऊपरी लूप ∩- ग के लिए है और दो निचले लूप ∩∩- त्त के लिए है, जिससे यह चंद्रगुत्त बनता है, प्राकृत में गुप्त शब्द को गुत्त लिखा जाता है।[14]

विशेषता

यह अभिलेख निम्न तथ्यों को उद्घाटित करता है[15]-

  1. प्राचीन भारत में अकाल की त्रासदी से निपटने के लिए कोष्ठागार निर्माण तथा उसमें संग्रहीत अन्न के वितर ण की जानकारी मिलती है। यह अन्न वितरण के लिए प्रथम आभिलेखिक प्रमाण है।[16]
  2. अभिलेख के ऊपर वस्तु संरचना का प्रथम बार अंकन हुआ है।
  3. लेख के ऊपर कोष्ठागारों, कमल की कली, वेदिका से परिवेष्टित वृक्ष तथा पर्वत पर चन्द्र के चिन्हों का अंकन हुआ है। ये सभी दृश्य मौर्य युगीन आहत मुद्राओं पर दृष्टिगोचर होते हैं।
  4. गोरखपुर जनपद से प्राप्त प्रथम राजकीय अभिलेख।
  5. मौर्य काल में अभिलेख लेखन हेतु धातु का प्रयोग।
  6. प्रशासनिक दृष्टि से तृतीय शताब्दी ई० पू० में गोरखपुर परिक्षेत्र श्रावस्ती के महामात्यों के अन्तर्गत आता था।

सन्दर्भ

  1. Origin & Process Of Cultural Development In The Middle Ganga Plain. 2002. पृ॰ 103.
  2. Radhakumud Mukerji. प्राचीन भारत. पृ॰ 90.
  3. Kapur, Kamlesh (2010). Portraits of a nation : history of ancient India. Internet Archive. New Delhi : Sterling Publishers Private Ltd. पृ॰ 418. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-207-5212-2. One of the earliest copperplates, the Sahgaura plate, dates back to the Mauryan period.
  4. लिपि एवं अभिलेख. 2021-09-26. पृ॰ 46. सोहगौरा से मौर्यकालीन ताम्रपत्र अभिलेख प्राप्त हुआ है और तब से बारहवीं शताब्दी तक ताम्रपत्रों का प्रचलन रहा।
  5. THE SOHGAURA COPPER-PLATE REGISTRATION BM Barua Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute Vol. 11, No. 1 (1930), pp. 32-48 [1]
  6. Manoj Mishra. History And Palaeography Of Bharhut Inscriptions. पृ॰ 152. सोहगौरा ताम्रपत्र लेख: ....जायसवाल ने इसे चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में रखा है। फ्लीट ने इसे 320-180 ईसा पूर्व के बीच कहीं रखना उचित समझा है । अक्षर-आकारों के आधार पर बूलर इसे मौर्यकालीन मानते हैं। सरकार के अनुसार इसे तृतीय शातब्दी ईसा पूर्व के पहले नहीं रखा जा सकता। दानी इसे प्रथम शताब्दी ईस्वी से सम्बन्धित करते हैं। बी०एम० बरूआ इसे प्राड् मौर्यकालीन मानते हैं। राजबली पाण्डेय एवं एस०एन० राय का भी यही मत है। उपासक ने सरकार के मत को अधिमान्यता प्रदान किया है।
  7. उपिन्दर सिंह, प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास. पृ॰ 351. सन् 1893 में गोरखपुर तहसील के सोहगौर गाँव के एक निवासी को 1.6 मि.मी. मोटाई और 6.4 × 2.9 से.मी. आकार का एक ताम्र पट्ट मिला। खुदुरे सतह वाले इस पट्ट को दीवार में टाँगने के उद्देश्य से इसके चार कोनों पर छिद्र बने हुए थे। ताम्र पट्ट पर प्राकृत भाषा तथा ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण चार पंक्तियों का एक अभिलेख था।
  8. Datta, Bhagavat (1960). Bharat Varsh Ka Brihad Itihas Vol 2. Delhi Itihas Prakashan Mandal. पृ॰ 262. सम्राट् अशोक से पूर्वकाल के तीन स्पष्ट पढ़े गए लेख इस समय तक मिल चुके हैं। वे हैं, महास्थान (बंगदेश) का शिलालेख, सोह‌गौरा (जिला गोरखपुर) का ताम्रपत्र और काङ्गड़ा अन्तर्गत बनेर नाले के ऊपर कन्हयारा से नौ मील दक्षिण तथा दाध से एक मील दूर स्थान का शिलालेख । पहले दो लेख अशोक से पूर्वकाल के हैं। कई लोग उन्हें चन्द्रगुप्त के शासन कहते हैं।
  9. Upinder, Singh. History Of Ancient And Early Medeival India From The Stone Age To The 12th Century. पृ॰ 737. The Sohgaura inscription has been commented on by numerous scholars, who have variously assigned it a pre-Ashokan or post-Maurya date, the majority opinion currently favouring the latter. K. P. Jayaswal interpreted the crescent on the top as an emblem of the Maurya king Chandragupta and connected the contents of the inscription with the Jaina legend of a great famine during the reign of this king.
  10. प्रोफेसर प्राचीन इतिहास, डॉ० अंजना. अभिलेख परिचय संक्षिप्त. पपृ॰ 1–2.
  11. Shri Ram Bachan Sinh. Kushinagar Ka Sankshipt Itihas. पृ॰ 43. सोहगौरा से पाए गए ताम्रपत्र के अनुसार गोरखपुर का ज़िला (अर्थात् मल्लराष्ट्र का पश्चिमी भाग) श्रावस्ती महाभुक्ति में पड़ता था ।
  12. Mourya Samrajya Ka Itihas By Satyaketu Vidyalankar 1980 New Delhi Shri Saraswati Sadan. पृ॰ 455.
  13. Digital Library Of India, Noida. Mouryas Saamrajya Ka Itihas (1971). पृ॰ 455.
  14. Verma, Thakur Prasad (1971). The palaeography of Brahmi script in north India, from c. 236 B.C. to c. 200 A.D. Siddharth Prakashan, Varanasi. पृ॰ 39. This sign is also found on the base of a Kumrahar pillar and on many other antiquities believed to belong to the Mauryan period. Jayaswal reads it as the monogram of Chandragupta Maurya. He takes the top crescent (III.29.i) as Chandra and the remaining hill-like combination for gutta; the upper loop for ga- ∩ and the two lower loops- ∩∩ for double tta making it Chandragutta.
  15. B B Mishra. Gorakhpur Janpad Ka Puratatva. पपृ॰ 145–146.
  16. Nand Pathak, Dr. Vishuddha. Prachina Bharatiya Arthika Itihas ( Beginning To 600 AD). Hindi Granth Academy Series. 305 Uttar Pradesh Hindi Sansthan, Lucknow. पृ॰ 45. गोरखपुर जिले के सोहगौरा से प्राप्त होने वाला एक कांस्यपत्राभिलेख यह उल्लेख करता है कि विभिन्न ग्रामों (स्थानों) में राज्य की ओर से अकाल अथवा अन्य वैसी ही दैवी विपत्तियों के समय जनता के भरण-पोषण के लिए आपातकालीन कोठार स्थापित किये जाते थे, जो साधारण समयों में खोले नहीं जाते थे।