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सोपारा

सोपारा
city
CountryIndia
राज्यMaharashtra
ज़िलाPalghar
ऊँचाई11 मी (36 फीट)
Languages
 • OfficialMarathi
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)

सोपारा महाराष्ट्र राज्य के पालघर जिले में स्थित एक प्राचीन स्थान था जो वर्तमान नालासोपारा नामक उपनगर के पास स्थित था। नालासोपारा मुंबई के सबसे ब्यस्त पश्चिमी उपनगरों में से एक है। आजकल सोपारा दादर स्टेशन से पश्चिमी उपनगरीय रेलमार्ग पर लगभग 48 किलोमीटर दूर अंतिम पड़ाव 'विरार' से पहले पड़ता है। प्राचीन काल में यह भारत के पश्चिमी तट का सबसे बड़ा नगर था जहाँ से मेसोपोटामिया, मिस्र, कोच्चि, अरब तथा पूर्वी अफ्रीका में व्यापार होता था। इसका प्राचीन नाम थूर्पारक है।

सोपारा गाँव में सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व तीसरी सदी में निर्मित स्तूप भी है। यह स्तूप भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। 'नाळा' और 'सोपारा' दो अलग अलग गाँव थे। रेलवे लाइन के पश्चीम की ओर उत्तर दिशा की ओर'नाळा' है तो पश्चिम में दक्षिण दिशा के तरफ 'सोपारा' गावँ है। वर्तमान में यह एक बड़ा शहर हो गया है। पुराने सोपारा गाँव के चारों तरफ हरियाली और बहुत सारे पेड़ हैं। सापोरा स्तूप में बुद्ध और साथ में एक अन्य बौद्ध भिक्षु की मूर्ति भी थी। यहाँ से निकली मूर्तियाँ, शिलालेख आदि छत्रपती संभाजीनगर के संग्रहालय में प्रर्दशित हैं। क्षेत्र में वर्षों पूर्व किये गए उत्खनन से पता चलता है कि सोपारा में बौद्ध, जैन और हिन्दू धर्म स्थलों की बहुलता थी जो प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से अब लुप्त हो चली है। स्वर्गीय डॉ॰ भगवानलाल इन्द्र ने सन 1898 में मुंबई के रॉयल एशियाटिक सोसाइटी को सोपारा में बौद्ध स्तूप के अतिरिक्त कई हिन्दू मंदिरों के खंडहरों की जानकारी दी थी।

प्रियदर्शी अशोक के चतुर्दश शिलालेख सोपारा, शहबाजगढ़ी (जिला पेशावर), मनसेहरा (जिला हजारा), गिरनार (काठियावाड़ के समीप), कलसी (जिला देहरादून), धौली (जिला पुरी, उड़ीसा), जौगढ़ (जिला गंजाम) तथा इलगुर्डा (जिला कर्नूल, तमिलनाडु) से उपलब्ध हुए हैं। ये लेख पर्वत की शिलाओं पर उत्कीर्ण पाए गए हैं।

शहबाजगढ़ी तथा मनसेहरा के अभिलेखों के अतिरिक्त, सोपारा का अभिलेख भारतीय ब्राह्मी लिपि में हैं। इसी ब्राह्मी से वर्तमान देवनागरी लिपि का विकास हुआ है। यह बाईं ओर से दाहिनी ओर की लिखी जाती थी। शहबाजगढ़ी तथा मनसेहरा के अभिलेख ब्राह्मी में न होकर खरोष्ठी में हैं।

सोपारा का अभिलेख अशोक के साम्राज्य के सीमानिर्धारण में भी अत्यंत सहायक हैं। सोपारा तथा गिरनार के शिलालेखों से यह सिद्ध है कि पश्चिम में अशोक के साम्राज्य की सीमा पश्चिमी समुद्र थी।

अशोक के अभिलेख हृदय पर सीधा प्रभाव डालते हैं। अशोक ने इस तथ्य को भली भाँति समझ रखा था कि भाष्यकार मूल उपदेश को निस्सार कर देते हैं। अतएव उसने अपनी प्रजा तक पहुँचने का प्रयास किया। सम्राट् के अपने शब्दों में ये लेख सरल एवं स्वाभाविक शैली में जनभाषा पालि के माध्यम से उसके उपदेशों को जन-जन तक पहुँचाते हैं। यही इन अभिलेखों का वैशिष्ट्य तथा यही इनकी सफलता है।