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सेलुलॉइड

सेलुलाइड की गुड़िया (१९५०)
सेलुलाइड से बनीं टेबल टेनिस की गेंदें

सेलुलॉइड (Celluloid) रासायनिक यौगिकों के एक वर्ग का व्यापारिक नाम है जो नाइट्रो सेलुलोजस और कपूर का मिश्रण है पर मिश्रण की तरह यह व्यवहार नहीं करता। यह एक रासायनिक यौगिक की तरह व्यवहार करता है। इसके अवयवों को भौतिक साधनों द्वारा पृथक करना सरल नहीं है। सेलुलाइड में कुछ रंजक (dyes) तथा अन्य चीजें भी मिलाई जातीं हैं। प्रायः माना जाता है कि सेलुलाइड प्रथम थर्मोप्लास्टिक था। सबसे पहले इसका निर्माण १८६२ में 'पार्केसाइन' (Parkesine) के रूप में किया गया था। उसके बाद १८६९ में 'जाइलोनाइट' (Xylonite) बनाया गया। १८७० में इसे ही 'सेलुलाइड' के नाम से पंजीकृत किया गया।

सेलुलाइड की विशेषता है कि इसे आसानी से मोल्ड किया जा सकता है और वांछित आकार दिया जा सकता है। यह पहला पदार्थ था जिसने हाथी दाँत (ivory) का स्थान लिया। यह अन्यन्त ज्वलनशील है और सरलता से अपघटित (decompose) हो जाता है। इस कारण अब इसका अधिक उपयोग नहीं किया जाता। आजकल इसका उपयोग तेबल टेनिस की गेंद आदि बनाने के काम आता है।

परिचय

सेलुलोज के नाइट्रेटीकरण से कई नाइट्रोसेलुलोस बनते हैं। कुछ उच्चतर होते हैं, कुछ निम्नतर। नाइट्रेटीकरण की विधि वही है जो गन कॉटन तैयार करने में प्रयुक्त होती है। इसके लिए सेलुलोस शुद्ध और उच्च कोटि का होना चाहिए। निम्नतर नाइट्रोसेलुलोस ही कपूर के साथ गरम करने से मिश्रित होकर सेलूलॉइड बनते हैं। इसके निर्माण में १० भाग नाइट्रोसेलुलोस के कपूर के ऐल्कोहली विलचन (४ से ५ भाग कपूर) के साथ और यदि आवश्यकता हो तो कुछ रंजक मिलाकर लोहे के बंद पात्र में प्राय: ९० डिग्री से. ताप पर गूँधते हैं, फिर उसे पट्ट पर रखकर सामान्य ताप पर सुखाते हैं।

सेलुलॉइड में कुछ अच्छे गुणों के कारण इसका उपयोग व्यापक रूप से होता है। इसमें लचीलापन, उच्च तन्यबल, चिमड़ापन, उच्च चमक, एकरूपता, सस्तापन, तेल और तनु अम्लों के प्रति प्रतिरोध आदि कुछ अच्छे गुण होते हैं। इसमें रंजक बड़ी सरलता से मिल जाता है। तप्त सेलुलॉइड की तरलता से साँचे में ढाल सकते हैं। ठंडा होने पर यह जमकर कठोर पारदर्शक पिंड बन जाता है। बहुत निम्न ताप पर यह भंगुर होता है और २०० डिग्री से. से ऊँचे ताप पर विघटित होना शुरू हो जाता है। सेलुलॉइड की सरलतापूर्वक आरी से चीर सकते हैं, बरमा से छेद सकते हैं, खराद पर खराद सकते हैं और उन पर पालिश कर सकते हैं। इसमें दोष यही है कि यह जल्दी आग पकड़ लेता है।

बाजारों में साधारणतया दो प्रकार के सेलुलॉइड मिलते हैं, एक कोमल किस्म का जिसमें ३० से ३२ प्रतिशत और दूसरा कठोर किस्म का जिसमें २३ प्रतिशत कपूर होता है। यह चादर, छड़, नली आदि के रूप में मिलता है। इसकी चादरें ०.००५ से ०.२५० इंच तक मोटाई की बनी होती हैं। सेलुलॉइड के सैकड़ों खिलौने, पिंगपौंग के गेंद, पियानो की कुंजियाँ, चश्मों के फ्रेम, दाँत के बुरुशष बाइसिकिल के फ्रेम और मूँठें, छूरी की मूँठें, बटन, फाउंटेन पेन, कंघी इत्यादि अनेक उपयोगी वस्तुएँ बनती हैं।