सेंगोल (राजदंड)
सेंगोल स्वर्ण परत वाला एक राजदंड है जिसे 28 मई 2023 को भारत के नए संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थापित किया।[1] इसका इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा है। नए राजा के राजतिलक के समय सेंगोल भेंट किया जाता था।[2]
1947 में धार्मिक मठ - अधीनम के प्रतिनिधि ने सैंगोल भारत गणराज्य के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था। [1] लेकिन भारत में लोकतांत्रिक शासन होने के कारण इसे इलाहाबाद संग्रहालय में रख दिया और किसी सरकार ने इसका इस्तेमाल नहीं किया।[3] सेंगोल मुख्यतः चांदी से बना है जिसके ऊपर सोने का पानी चढ़ा है।
शब्द उत्पत्ति
'सेंगोल' तमिल शब्द 'सेम्मई' (नीतिपरायणता) व 'कोल' (छड़ी) से मिलकर बना है।[4][3] ‘सेंगोल’ शब्द संस्कृत के ‘संकु’ (शंख) से भी आया हो सकता है।[5] सनातन धर्म में शंख पवित्रता का प्रतीक है।
तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित तमिल विश्वविद्यालय में पुरातत्त्व के प्रोफेसर एस राजावेलु के अनुसार तमिल में सेंगोल का अर्थ 'न्याय' है। तमिल राजाओं के पास ये सेंगोल होते थे जिसे अच्छे शासन का प्रतीक माना जाता था। शिलप्पदिकारम् और मणिमेखलै, दो महाकाव्य हैं जिनमें सेंगोल के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। विश्वप्रसिद्ध तिरुक्कुरल में भी सेंगोल का उल्लेख है।[6]
बनावट व प्रतीकात्मकता
सेंगोल सोने की परत चढ़ा हुआ राजदंड है, जिसकी लंबाई लगभग 5 फीट (1.5 मीटर) है इसका मुख्य हिस्सा चांदी से बना है।[7] सेंगोल को बनाने में 800 ग्राम सोने का प्रयोग किया गया था। इसे जटिल डिजाइनों से सजाया गया है और शीर्ष पर नंदी की नक्काशी की गई है। नंदी हिंदू धर्म में एक पवित्र पशु और शिव का वाहन है। इसे धर्म के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिसे पुराणों में एक बैल के रूप में व्यक्त किया गया है।[8][9] नंदी की प्रतिमा इसका शैव परंपरा से जुड़ाव दर्शाती है। हिंदू व शैव परंपरा में नंदी समर्पण का प्रतीक है। यह समर्पण राजा और प्रजा दोनों के राज्य के प्रति समर्पित होने का वचन है। दूसरा, शिव मंदिरों में नंदी हमेशा शिव के सामने स्थिर मुद्रा में बैठे दिखते हैं। हिंदू मिथकों में ब्रह्मांड की परिकल्पना शिवलिंग से की जाती रही है। इस तरह नंदी की स्थिरता शासन के प्रति अडिग होने का प्रतीक है।[10]
इसके अतिरिक्त नंदी के नीचे वाले भाग में देवी लक्ष्मी व उनके आस-पास हरियाली के तौर पर फूल-पत्तियां, बेल-बूटे उकेरे गए हैं, जो कि राज्य की संपन्नता को दर्शाती हैं।[10]
इतिहास
प्राचीन काल में भारत में जब राजा का राज्याभिषेक होता था, तो विधिपूर्वक राज्याभिषेक हो जाने के बाद राजा राजदण्ड लेकर राजसिंहासन पर बैठता था। राजसिंहासन पर बैठने के बाद वह कहता था कि अब मैं राजा बन गया हूँ अदण्ड्योऽस्मि, अदण्ड्योस्मि, अदण्ड्योऽ (मैं अदण्ड्य हूँ, मैं अदण्ड्य हूँ); अर्थात मुझे कोई दण्ड नहीं दे सकता। तो पुरानी विधि ऐसी थी कि उनके पास एक संन्यासी खड़ा रहता था, लँगोटी पहने हुए। उसके हाथ में एक छोटा, पतला सा पलाश का डण्डा रहता था। वह उससे राजा पर तीन बार प्रहार करते हुए उसे कहता था कि 'राजा ! यह अदण्ड्योऽस्मि अदण्ड्योऽस्मि गलत है। दण्ड्योऽसि दण्ड्योऽसि दण्ड्योऽसि अर्थात तुझे भी दण्डित किया जा सकता है। [11]
चोल काल के दौरान ऐसे ही राजदंड का प्रयोग सत्ता हस्तान्तरण को दर्शाने के लिए किया जाता था। उस समय पुराना राजा नए राजा को इसे सौंपता था।[12]राजदंड सौंपने के दौरान 7वीं शताब्दी के तमिल संत संबंध स्वामी द्वारा रचित एक विशेष गीत का गायन भी किया जाता था। [3]
कुछ इतिहासकार मौर्य, गुप्त वंश और विजयनगर साम्राज्य में भी सेंगोल को प्रयोग किए जाने की बात कहते हैं।[12]
ऐसा कहा जाता है कि वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से एक सवाल किया था: "ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में किस समारोह का पालन किया जाना चाहिए?" इस प्रश्न ने नेहरू को वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी (राजाजी) से परामर्श करने के लिए प्रेरित किया। राजाजी ने चोल कालीन समारोह का प्रस्ताव दिया जहां एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता का हस्तांतरण उच्च पुरोहितों की उपस्थिति में पवित्रता और आशीर्वाद के साथ पूरा किया जाता था। राजाजी ने तमिलनाडु के तंजावुर जिले में शैव संप्रदाय के धार्मिक मठ - तिरुवावटुतुरै आतीनम् से संपर्क किया। तिरुवावटुतुरै आतीनम् 500 वर्ष से अधिक पुराना है और पूरे तमिलनाडु में 50 मठों को संचालित करता है। अधीनम के नेता ने तुरंत पांच फीट लंबाई के 'सेंगोल' को तैयार करने के लिए चेन्नई में सुनार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को नियुक्त किया।[3]
वुम्मिदी बंगारू चेट्टी ने सेंगोल तैयार करके अधीनम के प्रतिनिधि को दे दिया। अधीनम के नेता ने वह सैंगोल पहले लॉर्ड माउंटबेटन को दे दिया। फिर उनसे वापस लेकर 15 अगस्त की तारीख 1947 के शुरू होने से ठीक 15 मिनट पहले स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दे दिया। लोकप्रिय पुस्तक "फ्रीडम एट मिडनाइट" में, लेखकों ने उल्लेख किया है कि स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, दो हिंदू संन्यासी एक प्राचीन परंपरा का पालन करते हुए प्रधानमंत्री नेहरू को स्वर्ण राजदंड, 'सेंगोल' सौंपने आए थे, जिसमें हिंदू संतों ने भारत के राजा अपनी शक्ति के प्रतीकों के साथ.[13]
स्थापना
28 मई, 2023 को, नई संसद के उद्घाटन की शुरुआत में, अधीनम पुजारियों ने एक पारंपरिक पूजा की जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया, और मोदी सम्मान के प्रतीक के रूप में पवित्र सेंगोल के सामने झुके। तब अधीनम पुजारियों के एक समूह ने सेंगोल को पीएम मोदी को प्रस्तुत किया।[14]. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी सेंगोल को नए संसद भवन में लोकसभा के अध्यक्ष के आसन के ठीक निकट स्थापित कर दिया।[15] कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सेनगोल भारत की सभ्यतागत परंपरा की पुनः खोज का प्रतीक बन गया है| [16]
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
- ↑ अ आ "নতুন সংসদ ভবনে থাকছে স্বাধীনতার অন্যতম প্রতীক 'সেঙ্গল'! সোনার রাজদণ্ডে লুকিয়ে কোন ইতিহাস?". Anandabazar (Bengali में). New Delhi: Anandabazar Patrika. 24 May 2023. अभिगमन तिथि 25 May 2023.
- ↑ नये संसद भवन के उद्घाटन के समय सामने आयेगा भारत का राजदण्ड
- ↑ अ आ इ ई "What is 'Sengol', a sceptre to be installed in new Parliament". Rediff (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 25 मई 2023.
- ↑ "கோல் - தமிழ் விக்சனரி". ta.wiktionary.org (तमिल में). अभिगमन तिथि 28 मई 2023.
- ↑ नए संसद भवन में रखा जाएगा 'सेंगोल'
- ↑ सेंगोल क्या है जिसे प्रधानमन्त्री मोदी ने नए संसद भवन में स्थापित किया है
- ↑ "ചോളന്മാരിൽനിന്ന് പ്രചോദനം, അഞ്ചടി നീളം, മുകളിൽ നന്ദീരൂപം, നെഹ്റുവിന് കൈമാറി; എന്താണ് ചെങ്കോൽ?". Mathrubhumi (मलयालम में). 2023-05-25. अभिगमन तिथि 2023-05-26.
- ↑ "New Parliament building opening | How a letter to PMO set off a search for the Sengol". The Hindu (अंग्रेज़ी में). 2023-05-24. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. मूल से 2023-05-24 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-05-25.
- ↑ அகஸ்டஸ் (2023-05-25). "நாடாளுமன்றத்தில் செங்கோல்; இதற்கும் சோழர்களுக்கும் என்ன தொடர்பு? - தரவுகளுடன் விரிவான அலசல்". www.vikatan.com (तमिल में). अभिगमन तिथि 2023-05-25.
- ↑ अ आ "5000 साल पुराना है सेंगोल का इतिहास, जानिए 'राजदंड' की कहानी जो संसद में होगा स्थापित". MSN. अभिगमन तिथि 28 मई 2023.
- ↑ सामाजिक समरसता और हिन्दुत्व
- ↑ अ आ "क्या है सेंगोल? नई संसद के उद्घाटन में रखा जाएगा, अमित शाह बोले- इससे पवित्र कोई स्थान नहीं हो सकता". Jansatta. 24 मई 2023. अभिगमन तिथि 25 मई 2023.
- ↑ Collins, Larry; Lapierre, Dominique (1997), Freedom at Midnight, पृ॰ 230,
As once Hindu holy men had conferred upon ancient India's kings their symbols of power, so sannyasin had come to York Road to bestow their antique emblems of authority on the man about to assume the leadership of a modern Indian nation. They sprinkled Jawaharlal Nehru with holy water, smeared his forehead with sacred ash, laid their sceptre on his arms.
- ↑ "Inspired by the Cholas, handed over to Nehru: historic 'Sengol' to be installed in new Parliament building". The Hindu (अंग्रेज़ी में). 2023-05-24. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. अभिगमन तिथि 2023-05-28.
- ↑ "Inspired by the Cholas, handed over to Nehru: historic 'Sengol' to be installed in new Parliament building". The Hindu (अंग्रेज़ी में). 2023-05-24. अभिगमन तिथि 2023-05-28.
- ↑ "The political story behind Modi's new Parliament and Sengol". The Economic Times (अंग्रेज़ी में). 2023-05-28. अभिगमन तिथि 2023-06-23.
Sengol is a narrative device that helps Modi tell many stories — of Nehru's banalisation of tradition, of buried histories, of India missing its tryst with the civilisational authority of a divine scepter, and of India rediscovering itself after 75 years of cultural amnesia. With Sengol, Modi has rewritten India as Bharat.