सामग्री पर जाएँ

सूत्रकृमिविज्ञान

सूत्रकृमिविज्ञान (Nematology) के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के सूत्रकृमियों का अध्ययन किया जाता है। सूत्रकृमि (Nematodes) छोटे, पतले, खंडहीन तथा धागे जैसे द्विलैंगिक प्राणी होते हैं जिनके पाद नहीं होते हैं। इन्हें 'गोल कृमि' या 'धागा कृमि' भी कहा जाता है। इनकी अनेक प्रजातियां पौधों की जड़ों तथा उनके भूमिगत भागों पर पलती हैं जबकि कुछ पौधों के वायवीय भागों पर भी आक्रमण करती हैं। ये स्वयं भरण करके, पौधों में कार्यिकीय विकृतियां उत्पन्न करके तथा पौधों को अन्य जैविक एवं अजैविक प्रतिबलों के प्रति संवेदनशील बनाकर उन्हें अत्यधिक आर्थिक क्षति पहुंचाती हैं।

भारत की महत्वपूर्ण सूत्रकृमि संबंधी समस्याएं जड़ गांठ सूत्रकृमि (मेलाइडोगायने प्रजातियां) तथा रेनिफार्म (रोटिलैंकलस रेनिफार्मिस) सूत्रकृमि हैं जो सब्जियों तथा दलहनी फसलों पर लगते हैं। इनमें से गेहूं में लगने वाला अनाज का पुटि एवं बाली-कॉकल सूत्रकृमि, सुरंग बनाने वाला सूत्रकृमि (रोडोफोलस सिमिलेस) जो दक्षिण भारत की रोपण फसलों पर लगता है, हमारे देश के प्रमुख सूत्रकृमि हैं। साथ ही, पूर्वी भारत में धान की फसल में तने पर लगने वाला (डिटाइलेंकस एंगस्टस) तथा पत्ती और कली पर लगने वाला (एफेलेंकॉयडिस बेसेई) सूत्रकृमि इन फसलों को काफी क्षति पहुंचाते हैं। कुछ अन्य महत्वपूर्ण सूत्रकृमि हैं नीलगिरि पहाड़ियों में आलू में लगने वाली ग्लोबोडेरा प्रजातियां; सब्जियों, दलहनी एवं तिलहनी फसलों पर आक्रमण करने वाली रेटिलेंकस प्रजातियां, तथा दलहनी फसलों में लगने वाला सूत्रकृमि हेटेरोडेरा कैजानी।

बाहरी कड़ियाँ