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सूक्ष्म ऊतक विज्ञान

सूक्ष्म ऊतक विज्ञान (Micro Histology) के अंतर्गत हम जंतुओं एवं पौधों के ऊतकों की सामान्य एवं रासायनिक रचना तथा उनके कार्य का अध्ययन करते हैं। इस अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य यह ज्ञात करना है कि विभिन्न प्रकार के ऊतक किस प्रकार आणविक (molecular), बृहद् आणविक (macromolecular), संपूर्ण कोशिका एवं अंतराकोशिकी (intercellular) वस्तुओं तथा अंगों में संगठित (organized) हैं।

उत्तक के प्रकार

जंतुओं के शरीर के चार प्रकार के ऊतक, कोशिका तथा अंतराकोशिकी जिन वस्तुओं द्वारा बनी होती हैं, वे क्रमश: निम्ननिलखित हैं-

उपकला ऊतक (Epithetial tissue)

उपकला ऊतक की रचना एक पतली झिल्ली के रूप में होती है, जो विभिन्न संरचनाओं के बाहरी सतह पर आवरण के रूप में तथा उनकी गुहाओं एवं नलियों में भीतरी स्तर के रूप में वर्तमान रहती हैं। इसके अतिरिक्त 'ग्रंथि कोशिका' (Glandular cells) के रूप में यह ग्रंथियों की रचना में भी भाग लेता है। इसकी उत्पत्ति बाह्य त्वचा (Ectoderm) या अंतस्त्वचा (Endoderm) से होती है तथा साधारणत: इसकी कोशिकाएँ एक ही पंक्ति में स्थित रहती हैं। ऐसी एकस्तरीय उपकला को 'सरल उपकला' (Simple epithelium) कहते हैं। परंतु कभी-कभी इसकी कोशिकाएँ अनेक शक्तियों में बद्ध रहती हैं, जिन्हें 'स्तरित उपकला' (Stratified enithelium) कहते हैं।

अन्य ऊतकों की अपेक्षा उपकला में कोशिकाओं की संख्या अधिक होती है। ये अति सघन रूप में अंतराकोशिका द्रव्य द्वारा जुड़े रहते हैं। उपकला झिल्ली द्वारा अपने नीचे की संरचनाओं एवं ऊतकों से संबद्ध रहती है। उपकला में रक्तवाहिनियाँ नहीं होतीं, इसलिए इसका पोषक तत्व लसीका (Lymph) द्वारा ही प्राप्त होता है।

उपकला ऊतक मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं-

(क) सरल उपकला।

(ख) स्तरित उपकला।

(ग) अस्थायी (Transitory) उपकला।

सरल उपकला के मुख्य प्रकार हैं-शल्की उपकला, स्तंभाकार उपकला, ग्रंथीय उपकला, पक्ष्माभिकामय उपकला, संवेदी उपकला, वर्णक उपकला एवं भ्रूणीय उपकला।

संयोजी ऊतक (Connective tissue)

संयोजी ऊतक में अंतरकोशिकीय द्रव्य अधिक होते हैं। इस ऊतक का मुख्य कार्य अन्य ऊतकों को सहारा देना तथा उन्हें आपस में संयुक्त करना है। उपास्थि, अस्थि तथा रुधिर सभी इसी प्रकार के ऊतक हैं। रुधिर को तरल संयोजी ऊतक कहते हैं। प्रकार-1. वसीय ऊतक 2. पीत प्रत्यास्थ ऊतक 3.तन्तु मय ऊतक

पेशी ऊतक (Muscular tissue)

शरीर के मांसल भाग पेशी ऊतक द्वारा बने होते हैं। इसमें अनेक लंबी तंतु के समान कोशिकाएँ संबद्ध रहती हैं। ये कोशिकाएँ संकुचनशील होती हैं, जो तंतुओं को फैलने और सिकुड़ने की क्षमता प्रदान करती हैं। इसके तीन प्रकार होते हैं-

(क) अरेखित पेशी (Unstriped muscle) - इसे अनैच्छिक पेशी भी कहते हैं, क्योंकि इसकी क्रिया जंतु की इच्छा पर निर्भर नहीं होती। आहारनाल, रक्तवाहिनियों, फेफड़ों, पित्ताशय आदि की दीवारों में इस प्रकार के पेशी ऊतक मिलते हैं। इनकी कोशिकाएँ सरल, लंबी, तर्क्वाकार एवं अरेखित होती हैं।

(ख) रेखित (Striped) पेशी-शरीर की अधिकांश पेशियाँ रेखित होती हैं। इनकी क्रिया जंतु की इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। रेखित पेशी के प्रत्येक तंतु की रचना लंबी तथा बेलनाकार कोशिकाओं द्वारा होती है। इनमें शाखाएँ नहीं होतीं तथा केंद्रकों की संख्या अधिक होती है। रेखित पेशी में एकांतर रूप में गहरे एवं हल्के रंग की अनेक अनुप्रस्थ पट्टियाँ स्थित रहती हैं।

(ग) हृत्पेशी (Cordiac muscle) -हृदय के पेशी तंतु में रेखित एवं अरेखित दोनों प्रकार के तंतुओं के गुण वर्तमान होते हैं। इनमें अनुप्रस्थ पट्टियाँ तो होती हैं पर ये अरेखित पेशियों के सदृश शाखामय एवं एक ही केंद्र वाली होती हैं। इनकी क्रिया अरेखित पेशियों के समान ही होती है।

तंत्रिका ऊतक (Nervous tissue)

इस प्रकार के ऊतक तंत्रिकातंत्र (Nervous system) के विभिन्न अंगों की रचना करते हैं। संवेदनशीलता के लिए इस ऊतक की रचना में तंत्रिका कोशिकाएँ (Nerve cells) तथा तंत्रिका तंतु दोनों ही भाग लेते हैं। तंत्रिका कोशिकाएँ प्राय: अनियमित आकार की होती हैं, तथा इनके मध्य में बड़ा सा केंद्रक (Nucleus) होता है। प्रत्येक तंत्रिका कोशिका से बाहर की ओर सूक्ष्म प्रबंध निकलते हैं, जो जीवद्रव्य (Protoplasm) के बने होते हैं।

शरीर के विभिन्न अंगों के निर्माण के लिए ये ऊतक विभिन्न प्रकार के संयुक्त होकर उन्हें अखंडता प्रदान करते हैं। अत: विभिन्न अंगों की सूक्ष्म रचना एवं उनकी क्रियाओं के अध्ययन से किसी दंड की आंतरिक रचना का विस्तृत ज्ञान हो जाता है।

परिचय

सूक्ष्म ऊतक विज्ञान के अंतर्गत हस्त लेंसों (Hand lens) की सहायता से देखी जा सकने वाली सूक्ष्म रचनाओं से लेकर एलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी (Electron Microscope) की दृश्य सीमा से बाहर की संरचनाओं के भी अध्ययन किए जाते हैं। इस कार्य के लिए अनेक प्रकार के यंत्र प्रयुक्त किए जाते हैं जैसे-एक्स-रे यूनिट्स (X-ray units), 'एब्सौर्पशन माइक्रोस्कोप' (Absorption microscope), 'एलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप' (Electron microscope), 'पोलराइजेशन माइक्रोस्कोप' (Polarization microscope), 'डार्क फील्ड माइक्रोस्कोप' (Dark field microscope), 'अल्ट्रावायलेट माइक्रोस्कोप' (Ultra violet microscope), विजिबुल लाइट माइक्रोस्कोप (Visible light microscope), 'फेज कंट्रास्ट माइक्रोस्कोप' (Phase contrast microscope), 'इंटरफेरेंस माइक्रोस्कोप' (Interference microscope) तथा 'डिसेक्टिंग माइक्रोस्कोप' (Disecting microscope) आदि।

प्राचीन काल में सूक्ष्म ऊतक विज्ञानवेत्ता अभिनव (Fresh) वस्तुओं की परीक्षा के लिए उन्हें सूचीवेधन (Teased) कर या हाथों द्वारा ही तराशकर, खुरचकर या उसे फैलाकर (Smear) यथासंभव पतला बना डालते थे, जिससे उन्हें पारगत प्रकाश (Transmitted light) द्वारा सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सके। तत्पश्चात 'माइक्रोटोम' (Microtome) का आविष्कार हुआ, जिसकी सहायता से पतले से पतले खंड, 1 'म्यू' (lu) की मोटाई की (1 म्यू = 1/1000 मिमी) काटे जा सकते हैं। अब तो 1 'म्यू' से भी अधिक पतले खंड काटे जा सकते हैं।

जिस समय 'माइक्रोटोम' का प्रयोग प्रारंभ हुआ, लगभग उसी समय ऊतकों के 'परिरक्षण' (preservation) एवं आकार प्रतिधारण (To retain structure) के लिए कई प्रकार के स्थायी कर (Fixative) रसायनकों का भी आविष्कार हुआ। परंतु इन रसायनकों के प्रयोग से, जो परिलक्षित वस्तुओं के प्रतिरक्षण, प्रतिधारण या अभिरंजन (Staining) करने के प्रयोग में लाए जाते थे, ऊतकों की रचना में कई प्रकार के अंतर आने लगे। फलस्वरूप पुन: अभिनव वस्तुओं का अध्ययन सर्वथा नियंत्रित अवस्था में आरंभ हुआ तथा ऊतक विज्ञान के अंतर्गत कई नवीन प्रयोग हुए, उदाहरणार्थ 'टिश्यू कल्चर' (Tissue culture), 'माइक्रोमैनीपुलेशन' (Micro-manipulation), 'माइक्रो सिनेमेटोग्राफी' (Micro-cinematography), अंतर जीवनावश्यक अभिरंजन (Intervital staining) तथा अधिजीवनाश्यक अभिरंजन (Supervital staining)। (Intervital = जीवित कोशिकाओं का; supervital = उत्तरजीवी कोशिकाओं का),

इसके अतिरिक्त, हत्वारक्षण (To preserve after killing) के लिए जमाने (Freezing) एवं शुष्कन (Drying) की क्रियाएँ भी प्रयोग में लाई गईं। इस क्रिया में वस्तु को, किसी द्रव्य पदार्थ में जो 150° सें. या उससे भी कम ताप तक ठंडा किया गया हो, डालकर बहुत शीघ्रता से जमा दिया जाता है, तत्पश्चात्‌ उसे निर्वात (Vacuum) में-30° सें. या उससे कम ताप पर शोषित किया जाता है और पुन: पैराफिन मोम में अंत:सरण (infilterate) किया जाता है।

अध्ययन के क्षेत्र

सूक्ष्म ऊतक विज्ञान के अध्ययन के बृहत्‌ क्षेत्र हैं-

(1) आकारकीय वर्णन (Marphological description),

(2) परिवर्धन संबंधी अध्ययन (Developmental studies),

(3) ऊतकीय एवं कोशकीय कार्यिकी (Histo and cyto physiology),

(4) ऊतकीय एवं कोशकीय रसायन (Histo and cyto chemistry) तथा

(5) अध:सूक्ष्मदर्शी रचनाएँ (Submicroscopic structure)

ऊतकीय एवं कोशकीय कार्यिकी के अंतर्गत आकारकीय (Morphological and physiological) एवं कार्यशीलता में सामंजस्य का अध्ययन किया जाता है। इसी प्रकार ऊतकीय एवं कोशकीय रसायन के अंतर्गत आकारकीय रचनाओं की रासायनिक संरचना का ज्ञान प्राप्त करते हैं। अतिसूक्ष्मदर्शी रचनाओं का अध्ययन ऐसी संरचनाओं का वर्णन करता है जो साधारण प्रकाश द्वारा प्रकाशित सूक्ष्मदर्शी की दृश्य सीमा से परे हैं {0.2 म्यू के लगभग}।