सुगौली संधि
सुगौली संधि, ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच हुई एक संधि है, जिसे 1814-16 के दौरान हुये ब्रिटिश-नेपाली युद्ध के बाद अस्तित्व में लाया गया था। इस संधि पर 2 दिसम्बर 1815 को हस्ताक्ष्रर किये गये और 4 मार्च 1816 का इसका अनुमोदन किया गया। नेपाल की ओर से इस पर राज गुरु गजराज मिश्र (जिनके सहायक चंद्र शेखर उपाध्याय थे) और कंपनी ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडशॉ ने हस्ताक्षर किये थे। इस संधि के अनुसार नेपाल के कुछ हिस्सों को ब्रिटिश भारत में शामिल करने, काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि की नियुक्ति और ब्रिटेन की सैन्य सेवा में गोरखाओं को भर्ती करने की अनुमति दी गयी थी, साथ ही इसके द्वारा नेपाल ने अपनी किसी भी सेवा में किसी अमेरिकी या यूरोपीय कर्मचारी को नियुक्त करने का अधिकार भी खो दिया। (पहले कई फ्रांसीसी कमांडरों को नेपाली सेना को प्रशिक्षित करने के लिए तैनात किया गया था)
संधि के तहत, नेपाल ने अपने नियंत्रण वाले भूभाग का लगभग एक तिहाई हिस्सा गंवा दिया जिसमे नेपाल के राजा द्वारा पिछ्ले 25 साल में जीते गये क्षेत्र जैसे कि पूर्व में सिक्किम, पश्चिम में कुमाऊं और गढ़वाल राजशाही और दक्षिण में तराई का अधिकतर क्षेत्र शामिल था। तराई भूमि का कुछ हिस्सा 1816 में ही नेपाल को लौटा दिया गया। 1860 में तराई भूमि का एक बड़ा हिस्सा नेपाल को 1857 के भारतीय विद्रोह को दबाने में ब्रिटिशों की सहायता करने की एवज में पुन: लौटाया गया।
काठमांडू में तैनात ब्रिटिश प्रतिनिधि मल्ल युग के बाद नेपाल में रहने पहला पश्चिमी व्यक्ति था। (यह ध्यान देने योग्य है कि 18 वीं सदी के मध्य में गोरखाओं ने नेपाल पर विजय प्राप्ति के बाद बहुत से ईसाई धर्मप्रचारकों को नेपाल से बाहर निकाल दिया था)। नेपाल में ब्रिटिशों के पहले प्रतिनिधि, एडवर्ड गार्डनर को काठमांडू के उत्तरी हिस्से में तैनात किया गया था और आज यह स्थान लाज़िम्पाट कहलाता है और यहां ब्रिटिश और भारतीय दूतावास स्थित हैं। दिसम्बर 1923 में सुगौली संधि को अधिक्रमित कर "सतत शांति और मैत्री की संधि", में प्रोन्नत किया गया और ब्रिटिश निवासी के दर्जे को प्रतिनिधि से बढ़ाकर दूत का कर दिया गया। 1950 में भारत (अब स्वतंत्र) और नेपाल ने एक नयी संधि पर दो स्वतंत्र देशों के रूप में हस्ताक्षर किए गए जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को एक नए सिरे से स्थापित करना था।
सुगौली संधि और मिथिला
दो साल लंबे चले ब्रिटिश- नेपाली युद्ध को खत्म करने के लिए 1816 में, ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल की गोरखा राजशाही ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि के तहत, मिथिला क्षेत्र का एक हिस्सा भारत से अलग होकर नेपाल के अधिकार क्षेत्र में चला गया।[1] इस भाग को नेपाल में, पूर्वी तराई या मिथिला कहा जाता है।[2]
सुगौली संधि से पहले तक
सुगौली संधि के अस्तित्व में आने तक, पूर्व में दार्जिलिंग और तिस्ता, दक्षिण-पश्चिम में नैनीताल और पश्चिम में कुमाऊं राजशाही, गढ़वाल राजशाही और बाशहर जैसे क्षेत्र नेपाल के अधीन आते थे। इन क्षेत्रों पर नेपाल ने पिछले लगभग 25 वर्षों के दौरान विजय प्राप्त की थी, जिन्हें संधि के बाद भारत को वापस लौटाया गया।
सुगौली संधि की शर्तें
ब्रिटिश-नेपाली युद्ध के बाद, नेपाल सरकार और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच शांति और मैत्री की एक संधि पर हस्ताक्षर किये गये। 2 दिसम्बर 1815 को इस संधि पर नेपाल सरकार की ओर से राज गुरु गजराज मिश्रा जिनके सहायक चंद्र शेखर उपाध्याय थे और कंपनी की ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडशॉ द्वारा हस्ताक्षर किये गये। 4 मार्च 1816 को चंद्र शेखर उपाध्याय और जनरल डेविड ऑक्टरलोनी द्वारा मकवानपुर में संधि की हस्ताक्षरित प्रतियों का आदान प्रदान किया गया। संधि की शर्तें निम्नलिखित थीं: -
- 1- ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच सदैव शांति और मित्रता रहेगी।
- 2- नेपाल के राजा उन सभी भूमि दावों का परित्याग कर देंगे जो युद्ध से पहले दोनो राष्ट्रों के मध्य विवाद का विषय थे और उन भूमियों की संप्रभुता पर कंपनी के अधिकार को स्वीकार करेंगे।
- 3- नेपाल के राजा शाश्वत रूप से निम्न उल्लिखित सभी प्रदेशों को ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप देंगे:
- (क) काली और राप्ती नदियों के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र।
- (ख) बुटवाल को छोडकर राप्ती और गंडकी के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र।
- (ग) गंडकी और कोशी के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र जिस पर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अधिकार स्थापित किया गया है।
- (घ) मेची और तीस्ता नदियों के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र।
- (च) मेची नदी के पूर्व के भीतर प्रदेशों का सम्पूर्ण पहाड़ी क्षेत्र। साथ ही पूर्वोक्त क्षेत्र गोरखा सैनिकों द्वारा इस तिथि से चालीस दिन के भीतर खाली किया जाएगा।
- 4- नेपाल के उन भरदारों और प्रमुखों, जिनके हित पूर्वगामी अनुच्छेद (क्रमांक ३) के अनुसार उक्त भूमि हस्तांतरण द्वारा प्रभावित होते हैं, की क्षतिपूर्ति के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी, 2 लाख रुपये की कुल राशि पेंशन प्रतिवर्ष के रूप में देने को तैयार है जिसका निर्णय नेपाल के राजा द्वारा लिया जा सकता है।
- 5- नेपाल के राजा, उनके वारिस और उत्तराधिकारी काली नदी के पश्चिम में स्थित सभी देशों पर अपने दावों का परित्याग करेंगे और उन देशों या उनके निवासियों से संबंधित किसी मामले में स्वयं को सम्मिलित नहीं करेंगे।
- 6- नेपाल के राजा, सिक्किम के राजा को उनके द्वारा शासित प्रदेशों के कब्जे के संबंध में कभी परेशान करने या सताने की किसी भी गतिविधि में संलग्न नहीं होंगे। यदि नेपाल और सिक्किम के बीच कोई विवाद होता है तो उसे ईस्ट इंडिया कंपनी की मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा।
- 7- एतद्द्वारा नेपाल के राजा, ब्रिटिश सरकार की सहमति के बिना किसी भी ब्रिटिश, अमेरिकी या यूरोपीय नागरिक को अपनी किसी भी सेवा में ना तो नियुक्त करेंगे ना ही उसकी सेवाओं को बनाये रखेंगे।
- 8- एतद्द्वारा नेपाल और ब्रिटेन (ईस्ट इंडिया कंपनी) के बीच स्थापित शांति और सौहार्द के संबंधों की सुरक्षा और उनमें सुधार के उद्देश्य से, यह सहमति बनती है कि एक का मान्यता प्राप्त मंत्री, दूसरे की अदालत में रहेगा।
- 9- इस संधि का अनुमोदन नेपाल के राजा द्वारा इस तारीख से 15 दिनों के भीतर किया जाएगा और उसे लेफ्टिनेंट कर्नल ब्रेडशॉ को सौंपा जाएगा, जो उसे अगले 20 दिनों में या उससे पहले (यदि साध्य हो), गवर्नर जनरल से अनुमोदित करा कर राजा को सुपुर्द करेंगे।
इसके बाद दिसम्बर 1816 में एक उत्तरगामी समझौते पर सहमति बनी जिसके अनुसार नेपाल को मेची नदी के पूर्व और महाकाली नदी के पश्चिम के बीच का तराई क्षेत्र वापस लौटा दिया गया। इस समझौते के फलस्वरूप दो लाख रुपए प्रतिवर्ष की क्षतिपूर्ति राशि के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया। एक भूमि सर्वेक्षण के द्वारा दोनों राष्ट्रों के बीच की सीमा को तय करने का प्रस्ताव भी स्वीकार किया गया था।
संधि की वैधता
- 1. संधि के अनुच्छेद 9 के अनुसार संधि का अनुमोदन नेपाल के राजा द्वारा होना अनिवार्य था, लेकिन राजा गीर्वान युद्ध बिक्रम शाह द्वारा अनुमोदित संधि का अभिलेख निर्णायक रूप से नहीं मिलता है।
- 2. ब्रिटिशों को डर था कि नेपाल शायद, चंद्रशेखर उपाध्याय द्वारा 4 मार्च 1816 को हस्ताक्षरित संधि को लागू न करे। इसलिए, गवर्नर जनरल डेविड ऑक्टरलोनी ने ब्रिटिश सरकार की ओर से संधि की पुष्टि उसी दिन की और समकक्ष संधि को उपाध्याय को सौंप दिया।
- 3. कुछ लोगों कहना है कि चूंकि संधि, नेपाली राजशाही और अंग्रेजों के बीच हुई थी इसलिए इसे नेपाल गणराज्य और भारत गणराज्य के मध्य लागू नहीं किया जा सकता।
सीमा विवाद
क्योंकि इस संधि में राष्ट्रीय परिसीमन को स्पष्ट नहीं किया गया था, इसलिए इसके प्रभाव आज तक कायम है:
- 1. संधि यह बताने में विफल रही है कि कुछ स्थानों पर एक स्पष्ट वास्तविक सीमा रेखा कहां से गुजरेगी। कई स्थानों पर सीमा के निर्धारण और सीमा स्तंभों की स्थापना को लेकर विवाद है। अनुमान लगाया गया है ऐसे विवादित स्थानों का क्षेत्रफल लगभग 60,000 हेक्टेयर है। ऐसे कई क्षेत्रों में दोनो ओर से अब भी दावे, प्रतिदावे किये जा रहे हैं, जिन पर विचार-विमर्श, विवादों और तर्कों का दौर जारी है।
- 2. नतीजा यह है कि आज भी नेपाल-भारत की सीमा रेखा के 54 स्थानों पर अतिक्रमण और विवादों के आरोप हैं। प्रमुख क्षेत्रों में कालापानी-लिम्पियाधुरा, सुस्ता, मेची क्षेत्र, टनकपुर, सन्दकपुर, पशुपतिनगर हिले थोरी आदि स्थानों की पहचान की गई है।
सुगौली संधि समारोह
04-05 मार्च 2016 को सुगौली संधि के दो सौ साल पूरे होने के अवसर पर बिहार की सामाजिक संस्था "भोर" और प्रेस क्लब द्वारा आयोजित सुगौली संधि समारोह में रमेश चन्द्र झा द्वारा लिखित "स्वाधीनता समर में : सुगौली" पुस्तक का पुनर्प्रकाशन और विमोचन के साथ साथ हर साल लेखकों और पत्रकारों को "रमेश चन्द्र झा स्मृति पुरस्कार" दिया जायेगा. इस समारोह के मुख्य अतिथि बिहार के राज्यपाल राम नाथ कोविन्द होंगे[3]
सन्दर्भ
- ↑ Bansh, Hari and Jha, Jayanti (January–March 2005). A Ritual for Ladies Only." Archived 2013-03-23 at the वेबैक मशीन Hinduism Today Magazine Archived 2012-12-24 at the वेबैक मशीन. Accessed May 5, 2012.
- ↑ Paul R., Brass (1974). Language religion and Politics in North India. Lincoln, N.E: iUniverse Inc. पृ॰ 55. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-595-34393-5
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के मान की जाँच करें: checksum (मदद). मूल से 29 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 दिसंबर 2012. - ↑ दैनिक जागरण, 10 फरवरी 2016[मृत कड़ियाँ]