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सीयक हर्ष

सीयक हर्ष या सीयक द्वितीय परमार वंश का शासक था।[]

परिचय

मालवे में परमार राज्य की स्थापना उपेंद्र ने की थी। इसी के वंश में वैरिसिंह द्वितीय नाम का राजा हुआ जिसने प्रतिहारों से स्वतंत्र होकर धारा में अपने राज्य की स्थापना का प्रयत्न किया। सफल न होने पर संभवत: उसने राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय की अधीनता स्वीकार की। []

सीयक हर्ष वैरिसिंह का पुत्र था। सन् ९४९ के हरसोले के शिलालेख से प्रतीत होता है कि सीयक ने भी अपने राज्य के आरंभ में राष्ट्रकूटो का प्रभुत्व स्वीकार किया था। किंतु उसकी पदवी केवल 'महामांडलिक चूड़ामणि' ही नहीं 'महाराजाधिराजपति' भी थी, जिससे अनुमान किया जा सकता है कि उस समय भी सीयक हर्ष पर्याप्त प्रभावशाली था। उसने योगराज को परास्त किया। यह योगराज संभवत: महेंद्रपाल प्रतिहार के सामंत अवंतिवर्मा द्वितीय (योग) का पौत्र था। योग की तरह योगराज भी यदि प्रतिहारों का सामंत रहा हो तो इसकी पराजय से राष्ट्रकूट और परमार दोनों ही प्रसन्न हुए होंगे। इसके कुछ बाद सीयक के हूणों को भी बुरी तरह से हराया। संभवत: इन्हीं हूणों से सीयक के पुत्रों को भी युद्ध करना पड़ा हो। []

नवसाहसांकचरित में सीयक की रुद्रपाटी के राजा पर किसी विजय का भी उल्लेख है, किंतु रुद्रपाटी की भौगोलिक स्थित अनिश्चित है। शायद कृष्ण तृतीय ने सीयक हर्ष की इस बढ़ती हुई शक्ति को रोकने का प्रयत्न किया हो। किंतु इस प्रयत्न की सफलता संदिग्ध है। उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति ही कुछ ऐसी थी कि कोई भी साहसी और मेधावी व्यक्ति इस समय सफल हो सकता था। प्रतिहारों में अब वह शक्ति नहीं थी कि वे अपने विरोधियों और सामंतों की बढ़ती हुई शक्ति को रोक सकें। शायद कृष्ण तृतीय के उत्तरी भारत के मामलों में हस्तक्षेप करने से प्रतिहारों की कमजोरी और बढ़ी हो और इससे सीयक हर्ष को लाभ ही हुआ हो।[]

सन् ९६७ में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई खोट्टिग गद्दी पर बैठा। उचित अवसर देखकर सीयक ने राष्ट्रकूटों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें खलिघट्ट की लड़ाई में हराकर राष्ट्रकूट राजधानी मान्यखेट को बुरी तरह लूटा। सन् ९७४ के लगभग सीयक की मृत्यु होने पर उसका ज्येष्ठ पुत्र मुंज गद्दी पर बैठा। राजा भोज इसके पौत्र थे।[]

सन्दर्भ ग्रन्थ

  • नवसाहसांकचरित; उदयपुर प्रशस्ति;
  • गांगुली, डी.सी.: परमार राज ऑव मालवा;
  • गौ. ही. ओझा: राजपूताने का इतिहास, जिल्द पहली।