सिद्धि
'सिद्धि' का शाब्दिक अर्थ है - 'पूर्णता', 'प्राप्ति', 'सफलता' आदि। यह शब्द महाभारत में मिलता है। पंचतंत्र में कोई असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को 'सिद्धि' कहा गया है। मनुस्मृति में इसका प्रयोग 'ऋण चुकता करने' के अर्थ में हुआ है।
सांख्यकारिका तथा तत्व समास में, अर्थात तांत्रिक बौद्ध सम्प्रदाय में इसका विशिष्ट अर्थ है - चमत्कारिक साधनों द्वारा 'अलौकिक शक्तियों का अर्जन' ; जैसे - दिव्यदृष्टि, उड़ना, एक ही समय में दो स्थानों पर उपस्थित होना, अपना आकार परमाणु की तरह छोटा कर लेना, पूर्व जन्म की घटनाओं की स्मृति प्राप्त कर लेना, आदि। माध्वाचार्य के सर्वदर्शनसंग्रह में भी 'सिद्धि' इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
पतंजलि के योगसूत्र में कहा गया है-
- जन्म औषधि मंत्र तपः समाधिजाः सिद्धयः
(अर्थात जन्म से, औषधि द्वारा, मंत्र से, तप से और समाधि से सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।)
आठ सिद्धियाँ
हिन्दू धर्म में मान्य आठ सिद्धियाँ हैं- 1.) अणिमा- जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है। 2.) महिमा- जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है। 3.) गरिमा- जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है। 4.) लघिमा- जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है। 5.) प्राप्ति- जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है। 6.) प्राकाम्य- जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है। 7.) ईशित्व- जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है। 8.) वशित्व- जिससे दूसरों को वश में किया जाता है।
दस गौण सिद्धियाँ
भगवत पुराण में भगवान कृष्ण ने दस गौण सिद्धियों का वर्णन किया है-
- अनूर्मिमत्वम्
- दूरश्रवण
- दूरदर्शनम्
- मनोजवः
- कामरूपम्
- परकायाप्रवेशनम्
- स्वछन्द मृत्युः
- देवानां सह क्रीडा अनुदर्शनम्
- यथासंकल्पसंसिद्धिः
- आज्ञा अप्रतिहता गतिः
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- Sri Ramakrishna Math (1985). Hanuman Chalisa. Chennai, India: Sri Ramakrishna Math. ISBN 81-7120-086-9
- Bhagavata Purana