साहिब बीबी और ग़ुलाम (1962 फ़िल्म)
साहिब बीबी और ग़ुलाम | |
---|---|
साहिब बीबी और ग़ुलाम का पोस्टर | |
निर्देशक | अबरार अलवी |
लेखक | बिमल मित्रा की बंगाली उपन्यास पर आधारित |
निर्माता | गुरु दत्त |
अभिनेता | मीना कुमारी, गुरु दत्त, रहमान, वहीदा रहमान, नासिर हुसैन, धूमल, डी के सप्रू, हरिन्द्र नाथ चटोपाध्याय, प्रतिमा देवी, रंजीत कुमारी, एस एन बैनर्जी, कृष्ण धवन, विक्रम कपूर, |
छायाकार | वी. के. मूर्ती |
संपादक | वाई. जी. चव्हाण |
संगीतकार | हेमन्त कुमार (संगीतकार) शकील बदायूँनी (गीतकार) |
निर्माण कंपनी | मॉडर्न स्टूडियोज़ |
वितरक | गुरु दत्त फ़िल्म्स प्रा. लि. |
प्रदर्शन तिथि | 7 दिसम्बर 1962 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
साहिब बीबी और ग़ुलाम गुरु दत्त द्वारा निर्मित और अबरार अलवी द्वारा निर्देशित १९६२ की भारतीय हिन्दी फ़िल्म है। यह बिमल मित्रा द्वारा लिखी गई एक बंगाली उपन्यास, शाहेब बीबी गोलाम पर आधारित है और ब्रिटिश राज के दौरान १९वीं शताब्दी के अंत तथा २०वीं शताब्दी की शुरुआत में बंगाल में ज़मींदारी और सामंतवाद के दुखद पतन की झलक है। फ़िल्म एक कुलीन (साहिब) की एक सुंदर, अकेली पत्नी (बीबी) और एक कम आय अंशकालिक दास (ग़ुलाम) के बीच एक आदर्शवादी दोस्ती को दर्शाने की कोशिश करती है। फ़िल्म का संगीत हेमंत कुमार और गीत शकील बदायूँनी ने दिए हैं। फ़िल्म के मुख्य कलाकार गुरु दत्त, मीना कुमारी, रहमान, वहीदा रहमान और नज़ीर हुसैन थे।
इस फ़िल्म को कुल चार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों से नवाज़ा गया था जिनमें से एक फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार भी था।
संक्षेप
फ़िल्म वर्तमान से शुरु होती है। कई वर्ष बीत चुके होते हैं और अब अधेड़ उम्र का अतुल्य चक्रवर्ती उर्फ़ भूतनाथ (गुरु दत्त), जो कि एक वास्तुकार है, अपने कर्मचारियों के साथ एक हवेली के खण्डरों को गिराकर एक नयी इमारत का निर्माण करने जा रहा है। उन खण्डरों को देखकर उसे पुराने दिनों की याद आ जाती है।
फ़िल्म समय में पीछे चली जाती है और भूतनाथ गांव से कोलकाता शहर नौकरी की तलाश में अपने मुँह बोले बहनोई के यहाँ आता है जो इसी हवेली के मुलाज़िमों की रिहाइशगाह में रहता है। यह हवेली शहर के बड़े ज़मीनदारों में से एक, चौधरी ख़ानदान की है जो तीन भाई थे-बड़े बाबू, मंझले बाबू (सप्रू) और छोटे बाबू (रहमान)। फ़िल्म में पहले से ही बड़े बाबू का इन्तक़ाल हुआ दिखाया गया है। भूतनाथ को मोहिनी सिंदूर बनाने वाले कारख़ाने में नौकरी मिल जाती है जिसके मालिक़ सुबिनय बाबू (नज़ीर हुसैन) हैं, जो कि एक ब्रह्म समाजी हैं और उनकी एक बेटी है जबा (वहीदा रहमान)। रात को जब भूतनाथ हवेली में चल रहे क्रियाकलापों को देखता है तो अचंभे में पड़ जाता है। हर रात छोटे बाबू बग्घी में बैठकर तवायफ़ के कोठे की ओर निकल पड़ते हैं। वह छिपकर हवेली में ही चल रही मंझले बाबू की महफ़िल का भी आनन्द लेता है।
भूतनाथ कारख़ाने के शीघ्र छपने वाले विज्ञापन को ठीक कराने के लिए सुबिनय बाबू के पास जाता है लेकिन जबा वहाँ होती है जो भूतनाथ को विज्ञापन पढ़ने को कहती है। उस विज्ञापन में ऐसी चमत्कारी बातें लिखी होती हैं कि यदि पत्नी या प्रेमिका उस सिंदूर को धारण कर अपने पति या प्रेमी के सामने पड़ती है तो पति अथवा प्रेमी उस पर मोहित हो जायेगा। उस रात छोटे बाबू का नौकर बंसी (धूमल) भूतनाथ के पास आता है और कहता है कि छोटी बहू (मीना कुमारी) उसे बुला रही है। दोनों छिपकर छोटी बहू के कमरे में जाते हैं और छोटी बहू भूतनाथ को सिंदूर की डिबिया थमाकर कहती है कि इसमें मोहिनी सिंदूर भर के लाये ताकि वह अपने बेवफ़ा पति को अपने वश में कर सके। भूतनाथ छोटी बहू की ख़ूबसूरती और संताप से मंत्रमुग्ध हो जाता है और न चाहते हुये भी उसके राज़ों का भागीदार हो जाता है। भूतनाथ अगले दिन मोहिनी सिंदूर की सच्चाई सुबिनय बाबू से सुनना चाहता है लेकिन सुबिनय बाबू इस बात को टाल जाते हैं। फिर भी वह छोटी बहू के संताप से इतना व्याकुल हो जाता है कि वह उस सिंदूर को छोटी बहू के पास ले जाता है। इसी बीच भूतनाथ का मुँह बोला बहनोई एक स्वतंत्रता सेनानी निकलता है जो बीच बाज़ार अंग्रेज़ पुलिस पर बम का हमला कर देता है और उसके बाद चली गोली-बारी में भूतनाथ की टांग ज़ख़्मी हो जाती है। जबा भूतनाथ का उपचार करती है। चोट ठीक हो जाने के बाद भूतनाथ एक अच्छे वास्तुकार का सहयोगी बन जाता है और कुछ समय के लिए अपने काम में इतना तल्लीन हो जाता है कि वह न ही जबा और न ही छोटी बहू की ख़बर लेता है। भूतनाथ द्वारा छोटी बहू को दिए गए सिंदूर का असर तो नहीं होता है अलबत्ता छोटे बाबू छोटी बहू से कहते हैं कि यदि वह नाचने वालों की तरह उनके साथ शराब पीकर सारी रात रंगरलियाँ मनाये तो वह घर में रुकने को तैयार हैं। छोटी बहू यह चुनौती भी स्वीकार कर लेती है और अपने पति को घर में रखने के लिए शराब पीना और तवायफ़ों के जैसा बर्ताव भी शुरु कर देती है। तरक़ीब कुछ दिनों के लिए तो कामयाब हो जाती है और छोटे बाबू छोटी बहू के ही साथ वक़्त बिताने भी लगते हैं। लेकिन ऐयाशी के शिकार छोटे बाबू एक दिन अपनी प्रिय तवायफ़ के कोठे में पहुँचते हैं तो पाते हैं कि उनका दुश्मन छेनी दत्त उसके रास में डूबा है। छेनी दत्त और उसके साथी छोटे बाबू को लहु-लुहान कर देते हैं और वह अपंग हो जाते हैं। जब कुछ समय बाद भूतनाथ वापस आता है तो पाता है कि छोटी बहू को तो शराब की लत लग गयी है और छोटे बाबू अपंग पड़े हैं। वह जब जबा के पास जाता है तो पता चलता है कि अभी-अभी सुबिनय बाबू का देहान्त हो गया है और जबा म्लेछ न होकर एक सम्भ्रांत परिवार की लड़की है और सुबिनय बाबू जबा को गांव से चुराकर लाये थे लेकिन एक साल की उम्र में ही उसका उसी गांव के अतुल्य चक्रवर्ती (जो कि भूतनाथ स्वयं है) से विवाह कर दिया गया था।
अपने पति को ठीक करने की उम्मीद में छोटी बहू भूतनाथ के साथ किसी सिद्ध पुरुष के आश्रम की ओर निकलती है। मंझले बाबू भूतनाथ और छोटी बहू के बीच हुयी सारी बातें सुन लेते हैं। उनके सफ़र के बीच में ही मंझले बाबू के ग़ुर्गे भूतनाथ को मार-मारकर अधमरा कर देते हैं और छोटी बहू का कहीं भी पता नहीं चलता है।
फ़िल्म फिर वर्तमान में आ जाती है और भूतनाथ के मुलाज़िम उसे बताते हैं कि उनको हवेली के अहाते में एक क़ब्र मिली है। जब भूतनाथ वहाँ जाकर देखता है तो कंकाल के बाज़ू में पहने हुये कड़े से पहचान जाता है कि यह शव छोटी बहू का ही है। फ़िल्म के आख़िर में भूतनाथ बुझे मन से नई इमारत का नक्शा पकड़े हुये बग्घी में बैठता है जिसमें जबा (जो अब उसकी पत्नी है) पहले से बैठी हुयी है और कोचवान बग्घी आगे हाँक ले चलता है।
चरित्र
- मीना कुमारी - छोटी बहू
- गुरु दत्त - अतुल्य चक्रवर्ती उर्फ़ भूतनाथ
- रहमान - छोटे बाबू
- वहीदा रहमान - जबा
- नज़ीर हुसैन - सुबिनय बाबू
- धूमल - बंसी
- डी के सप्रू - मंझले बाबू
मुख्य कलाकार
- मीना कुमारी
- गुरु दत्त
- रहमान
- वहीदा रहमान
- नासिर हुसैन
- धूमल
- डी के सप्रू
- हरिन्द्र नाथ चटोपाध्याय
- प्रतिमा देवी
- रंजीत कुमारी
- एस एन बैनर्जी
- कृष्ण धवन
- विक्रम कपूर
दल
संगीत
इस फ़िल्म के संगीतकार हेमन्त कुमार हैं और गीतकार शकील बदायूँनी हैं।
गीत | गायक/गायिका | |
---|---|---|
१ | चले आओ | गीता दत्त |
२ | मेरी जान ओ मेरी जान | आशा भोंसले |
३ | भंवरा बड़ा नादान हाय | आशा भोंसले |
४ | साक़िया आज मुझे नींद नहीं आयेगी | आशा भोंसले |
५ | पिया ऐसो जिया में | गीता दत्त |
६ | मेरी बात रही मेरे मन में | आशा भोंसले |
७ | ना जाओ सैंया छुड़ा के बैंया | गीता दत्त |
८ | साहिल की तरफ़ कश्ती ले चल | हेमन्त कुमार |
रोचक तथ्य
- फ़िल्म कागज़ के फूल के बाद गुरु दत्त ने यह फ़ैसला लिया था कि अब वह कभी भी कोई भी फिल्म का निर्देशन नहीं करेंगे और यही वजह थी कि इस फ़िल्म का निर्देशन उनके लेखक दोस्त अबरार अलवी ने किया था।
- गुरु दत्त ने पहले इस फ़िल्म को निर्देशित करने के लिए सत्येन बोस और फिर नितिन बोस से बात की। लेकिन जवाब न मिलने पर यह फ़िल्म अबरार अलवी को निर्देशित करने के लिए दे दी गई।
- गुरु दत्त चाहते थे कि भूतनाथ का किरदार शशि कपूर निभायें लेकिन समय न होने के कारण शशि कपूर ने मना कर दिया और गुरु दत्त को ही यह किरदार निभाना पड़ा।
- वहीदा रहमान छोटी बहू का रोल चाहती थीं लेकिन गुरु दत्त ने उनकी कम उम्र को देखते हुये मना कर दिया। फिर वहीदा ने अबरार अलवी से कह कर अपने लिए इस फ़िल्म में रोल लिखवाया और फ़िल्म का हिस्सा बनीं।
परिणाम
बौक्स ऑफिस
यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर हिट रही।
समीक्षाएँ
नामांकन और पुरस्कार
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार - गुरु दत्त
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार - मीना कुमारी
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार - अबरार अलवी
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ छायाकार पुरस्कार - वी. के. मूर्ती