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सांप्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा निवारण अधिनियम

सांप्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा निवारण विधेयक भारत का 2011 में कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया एक विधेयक था जो की पूरी होने की प्रक्रिया में थी। इस अधिनियम का प्रारूप संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के द्वारा तैयार किया गया

प्रमुख राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना आल इण्डिया आन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (AIADMK) तथा तृणमूल कांग्रेस सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् जैसे कई सामाजिक संगठन इस विधेयक का इस आधार पर विरोध कर रहे थे[1] की यह अधिनियम केवल अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करता है परन्तु अल्पसंख्यकों के आक्रमण से पीड़ित बहुसंख्यकों को यह अधिनियम कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। इस प्रकार यह अधिनियम मुस्लिमों के हाथों में हिन्दुओं के विरुद्ध एक शस्त्र के भाँती कार्य करेगा[2] तथा यह भारत के संघीय ढांचे के लिए हानिकारक सिद्ध होगा। ऐसा सोचना था भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना आल इण्डिया आन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (AIADMK) तथा तृणमूल कांग्रेस सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् जैसे कई दलों का।

इतिहास

इस विधेयक को सर्वप्रथम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने 2005 में लागू करने का प्रयास किया था परन्तु भारी विरोध को देखते हुए सरकार ने इसे वापस ले लिया था। 2011 में पुनः सरकार इस विधेयक को कुछ संशोधनों के साथ लाया गया था जिसके अंतर्गत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों को भी इस विधेयक के अंतर्गत लाया गया था। परन्तु इस विधेयक के विरोधियों का कहना था कि यदि कोई सांप्रदायिक हिंसा मुस्लिमों और अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजातियों के मध्य होती, तो उस स्थिति में यह विधेयक मुस्लिमों का साथ देता और इस प्रकार दलितों की रक्षा के लिए बना हुआ

अधिनियम

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने 14 जुलाई 2010 को सांप्रदायिकता विरोधी बिल का खाका तैयार करने के लिए एक प्रारूप समिति का गठन किया था और 28 अप्रैल 2011 की एनएसी बैठक के बाद नौ अध्यायों और 138 धाराओं में तैयार हिंदी में अनूदित किया और अभी तक की संभावित योजनाओ के अनुसार सरकार इसे 2011 के शीतकालीन सत्र में लाने की योजना पर कार्य कर रही थी। इस अधिनियम की सबसे अधिक विवादस्पद बात ये थी कि इस विधेयक में यह बात पहले से ही मान ली गयी थी कि हिंसक केवल बहुसंख्यक होते हैं। अल्पसंख्यक नहीं हैं।

समूह की परिभाषा

विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था 'समूह की परिभाषा। समूह से तात्पर्य पंथिक या भाषायी अल्पसंख्यकों से थी, जिसमें उस वक़्त की स्थितियों के अनुरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को भी शामिल किया जा सकता था। पूरे विधेयक में सबसे ज्यादा आपत्ति इसी बिंदु पर रही कि इसमें बहुसंख्यक समुदाय को समूह की भाषा से बाहर रखा गया था।

अनुसूचित जाति जनजाति सम्बंधित अपराध

खंड 6 में यह स्पष्ट किया गया था कि इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध उन अपराधों के अलावा होगी जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अधीन आते हैं। इस विधेयक के विरोधी यह प्रश्न पूछ रहे थे कि क्या किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित किया जा सकता है?

यौन सम्बन्धी अपराध

खंड 7 में निर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति को उन हालात में यौन संबंधी अपराध के लिए दोषी माना जायेगा यदि वह किसी 'समूह से संबंध रखने वाले व्यक्ति के, जो उस समूह का सदस्य है, विरूद्ध कोई यौन अपराध करता है। परन्तु यदि पीड़ित उस समूह का सदस्य नहीं है तो यह अपराध नहीं माना जायेगा| इसका सीधा प्रभाव यह पड़ेगा की यदि सांप्रदायिक दंगों की स्थिति में किसी हिन्दू महिला के साथ कोई यौन अप्रध्य बलात्कार होता है तो यह अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा क्यूँकि वह हिन्दू महिला समूह की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती होगी।

घृणा संबंधी प्रचार

खंड 8 में यह निर्धारित किया गया है कि 'घृणा संबंधी प्रचार उन हालात में अपराध माना जायेगा जब कोई व्यक्ति मौखिक तौर पर या लिखित तौर पर या स्पष्टतया अम्यावेदन करके किसी 'समूह आव किसी 'समूह से संबंध रखने वाले व्यक्ति के विरूद्ध घृणा फैलाता है। पुनश्च समूह द्वारा बहुसंख्यकों के विरुद्ध घृणा फैलाने की स्थिति में यह विधेयक मौन है।

यातना दिये जाने संबंधी अपराध

यातना दिये जाने संबंधी अपराध का वर्णन खंड 12 में किया गया है, जिसमें कोई सरकारी कर्मचारी किसी 'समूह से संबंध रखने वाले व्यक्ति को पीड़ा पहुंचाता है या मानसिक अथवा शारीरिक चोट पहुचाता है। विरोधियों का कहना है कि यदि कोई अल्पसंख्यक किसी बहुसंख्यक को पीड़ा पहुंचाता है या मानसिक अथवा शारीरिक चोट पहुचाता हैतो उस सम्बन्ध में इस विधेयक का मौन रहना आपत्तिजनक है।

सरकारी कर्मचारी को दंड

खंड 13 में किसी सरकारी व्यक्ति को इस विधेयक में उल्लिखित अपराधों के संबंध में अपनी ड्यूटी निभाने में ढिलाई बरतने के लिये दंडित किये जाने का प्रावधान है।

सशस्त्र सेना अथवा सुरक्षा बल

खंड 14 में इन सरकारी व्यक्तियों को दंड देने का प्रावधान है जो सशस्त्र सेनाओं अथवा सुरक्षा बलों पर नियंत्रण रखते हैं। और अपनी कमान के लोगों पर कारगर ढंग से अपनी ड्यूटी निभाने हेतु नियंत्रण रखने में असफल रहते हैं।। इस खंड का इस आधार पर विरोध हो रहा है कि इससे शसस्त्र बलों ले मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा|

प्रत्यायोजित दायित्व का सिद्धांत

खंड 15 में प्रत्यायोजित दायित्व का सिद्धांत दिया गया है। किसी संगठन का कोई वरिष्ठ व्यक्ति अथवा पदाधिकारी अपने अधीन अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने में नाकामयाब रहता है, तो यह उस द्वारा किया गया एक अपराध माना जाऐगा। वह उस अपराध के लिए प्रत्यायोजित रूप से उत्तरदायी होगा जो कुछ अन्य लोगों द्वारा किया गया है। इस प्रकार अगर किसी संगठन का एक भी व्यक्ति अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध किसी अपराध में लिप्त पाया जाता है तो पूरे संगठन को दण्डित किया जा सकता है।

अधिनियम निर्मात्री समिति

इस अधिनियम का प्रारूप श्रीमती सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली २२ सदस्यों वाणी राष्ट्र्री सलाहकार परिषद् ने किया है। इस विधेयक के प्रारूप के बनाने वाली समिति के सदस्य निम्नलिखित हैं।[3]

प्रारूप बनाने वाली समिति के सदस्य

  1. गोपाल सुब्रमनियम
  2. मजा दारूवाला
  3. नजमी वजीरी
  4. P.I.जोसे
  5. प्रसाद सिरिवेल्ला
  6. तीस्ता सीताल्वाडा
  7. उषा रामनाथन (२० Feb २०११ तक)
  8. वृंदा ग्रोवर (२० Feb २०११तक)
  9. फराह नकवी
  10. हर्ष मंदर

सलाहकार समिति के सदस्य

  1. अबुसलेह शरफ
  2. असगर अली इंजिनियर
  3. गगन सेठी
  4. H.S फुल्का
  5. जॉन दयाल
  6. न्यायमूर्ति होस्बेत सुरेश
  7. कमाल फारुकी
  8. मंज़ूर आलम
  9. मौलाना निअज़ फारुकी
  10. राम पुनियानी
  11. रूपरेखा वर्मा
  12. सौम्य उमा
  13. शबनम हाश्मी
  14. मारी स्कारिया
  15. सुखदो थोरात
  16. सैयद शहाबुद्दीन
  17. उमा चक्रवर्ती
  18. उपेन्द्र बक्सी

केंद्र-राज्य के रिश्ते

बिल के अनुसार 'संगठित सांप्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा का होना भारत के संविधान के अनुच्छेद ३५५ के अर्थ के अंतर्गत आंतरिक अशांति गठित करेगा और केंद सरकार इसके अधीन उल्लिखित कर्तव्यों के अनुसार ऐसे उपाय कर सकेगी जो मामले की प्रकृति और परिस्थितियों के संबंध में इस प्रकार अपेक्षित हो। इसी आधार पर दिल्ली में हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में अधिकांश गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने इस विधेयक का यह कह कर विरोध किया है कि इसका राजनैतिक दुरूपयोग हो सकता है।[4]

वैधानिक चुनौतियाँ

राजनैतिक दल जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ॰ सुब्रमनियम स्वामी ने दिल्ली पुलिस में २४ अक्टूबर २०११ को एक प्रथिमिकी दर्ज करवाई है जिसमे सोनिया गाँधी एवं राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के विरुद्ध जिसमे आरोप लगाया गया है कि सांप्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा निवारण विधेयक बनाकर भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को क्षति पहुचाने का प्रयास किया गया है तथा हिन्दुओं और मुस्लिमों में मध्य सांप्रदायिक सौहार्द को समाप्त करने का प्रयास किया गया है। डॉ॰ सुब्रमनियम स्वामी ने यह भी कहा है कि कार्यवाई न होने की स्थिति में वो उच्च न्यायलय भी जायेंगे।[5]

सन्दर्भ

  1. सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक : एक विध्वंसक प्रस्ताव,http://hindi.ibtl.in/news/exclusive/1701/article.ibtl Archived 2011-11-17 at the वेबैक मशीन "विरोध का कारण"
  2. सांप्रदायिक हिंसा निवारण विधेयक आया तो होगा बड़ा आंदोलन-- भागवत, http://newsaaj.in/newsdetail.php?id=5_44_50312 Archived 2016-03-05 at the वेबैक मशीन "RSS का विरोध "
  3. इन ‘देशप्रेमियों’ ने ‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-२०११’ को तैयार किया है, http://www.indiaagainstcorruption.info/2011/08/communalbill/ Archived 2011-11-30 at the वेबैक मशीन "इन ‘देशप्रेमियों’ ने ‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-२०११’ को तैयार किया है "
  4. दंकेंद्र राज्य सरकार को बर्खास्त कर सकता है, http://hindi.ibtl.in/news/exclusive/1158/article.ibtl Archived 2011-12-04 at the वेबैक मशीन "राज्य सरकार की बर्खास्तगी आसानी से की जा सकेगी"
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 नवंबर 2011.