सनिधातृ
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वित्त संबंधित दो प्रमुख अधिकारियों का उल्लेख है जिनके नाम 'समाहतृ' अथवा समाहर्ता तथा 'सनिधातृ' अथवा संनिधाता हैं। उनके कर्तव्यों का भी इसी ग्रंथ में उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में भी "समगृहिर्तृ" तथा "भाग दुग्ध" नामक पदाधिकारी वित्त तथा आय का लेखा ब्योरा रखते थे। यह संभव है कि वैदिक सगृहितृ तथा कौटिल्य के सनिधातृ का कार्यक्षेत्र एक ही रहा हो।
कौटिल्य के अनुसार "सनिधातृ" का कार्य राजकीय आयकर को विधिवत् वसूली तथा उस राजकोष में जमा करना था। इस मुख्य कर्तव्य के अतिरिक्त बहुमूल्य मणि तथा स्वर्ण भंडार तथा धान्यकोष भी उसके संरक्षण में था। इनके कर्मचारी "सनिधातृ" से आदेश लेते थे। आयुधागार (शस्त्रों के रखने का स्थान), कारागार तथा न्यायालय पर भी इसका नियंत्रण था। यह प्रतीत होता है कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र का यह अधिकारी, जिसका संबंध कदाचित् मौर्य शासनव्यवस्था से हो सकता है, केंद्रीय था तथा उसका संरक्षण और कार्यक्षेत्र वित्त के अतिरिक्त अन्य विषयों से भी था। "सनिधातृ" को राजकीय आय तथा व्यय का प्राथमिक ज्ञान था। वह प्रति वर्ग बजट बनाता था, तथा उसके कार्यालय में 100 वर्ष तक के वित्त आँकड़े रहते थे। शुक्रनीति शास्त्र में "सनिधातृ" को सुमंत्रा तथा "समाहतृ" को अमात्य लिखा है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से किसी भी भारतीय राज्यवंश की शासनव्यवस्था में सनिधातृ का उल्लेख नहीं मिलता। हो सकता है, यह केवल उपर्युक्त ग्रंथों तक ही सीमित रह गया हो। "सनिधातृ" के साथ समाहतृ का उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। उसका क्षेत्र गढ़, खान, कृषि, वन तथा मार्ग और पशु विभाग तक ही सीमित था। ये दोनों पदाधिकारी विभिन्न विभागों से मुख्यतया वित्त तथा राजकर से संबंधित प्रतीत होते हैं।
सन्दर्भ ग्रंथ
- रामशास्त्री : कौटिल्य अर्थशास्त्र;
- दीक्षिततार : ऐडमिनिस्ट्रेटिन इंस्टीट्यूशंस तथा मौर्यन पॉलिटी,
- नारायणचंद्र बनर्जी - "कौटिल्य" (बैजनाथ पुरी)