सदिश नियंत्रण (मोटर)
सदिश नियंत्रण , चर-आवृत्ति ड्राइव (वीएफडी) के नियंत्रण की एक विधि है। इसका उपयोग करके तीन फेजी प्रत्यवर्ती मोटरों के बलाघूर्ण (टॉर्क) और चुम्बकीय फ्लक्स का स्वतंत्र रूप से नियंत्रण किया जाता है। इसे क्षेत्र-उन्मुख नियंत्रण (फील्ड-ओरिएंटेड कंट्रोल / FOC) भी कहा जाता है क्योंकि यह 'क्षेत्र' (चुम्बकीय फ्लक्स) की गणना और उसके नियंत्रण पर आधरित है।
इस सिद्धान्त का विकास १९६० और १९७० के दशक में सीमेन्स कम्पनी के इंजीनियरों (K. Hasse तथा F. Blaschke ) ने किया थ। यह भी कहा जा सकता है कि मोटर-नियंत्रण की यह विधि एसी मोटर को एक डीसी मोटर के रूप में मॉडल करने और उसी तरह से उसे नियंत्रित करने की एक विधि है। अर्थात एसी मोटर के चुम्बकन को और उत्पादित बलाघूर्ण को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित करना किया जाता है, जैसे डीसी मोटर के मामले में किया जाता है।
इसके विपरीत एसी मोटरों का 'अदिश नियंत्रण' (स्केलर कन्ट्रोल) केवल मोटर के वोल्टता का निय्ंत्रण करता है या वोल्टता/आवृत्ति को नियत रखते हुए ( ऐयर-गैप में फ्लक्स का मान नियत बनाए रखते हुए ) उसकी वोल्टता को बदलता है। यह अधिक सरल है किन्तु इससे सदिश नियंत्रण जैसा अच्छा परफॉर्मैन्स नहीं मिल सकता है। इसका स्टीडी-स्टेट परफॉर्मन्स तो अच्छा होता है किन्तु क्षणिक पर्फॉर्मन्स (ट्रान्सिएन्ट परफॉर्मैन्स) अच्छा नहीं होता।
सदिश नियंत्रण की विशेषताएँ
- (१) सदिश नियंत्रण त्वरित गति से होत है क्योंकि बलाघूर्ण का परिवर्तन करने पर, फ्लक्स को नहीं बदला जाता है। दोनों स्वतंत्र रूप से बदलते हैं।
- (२) बिना किसी अतिरिक्त हार्डवेयर का उपयोग किये ही चारो चतुर्थांशों में मोटर का नियंत्रण हो पाता है।
- (३) मोटर के ऑपरेशन को स्वतः 'स्थायी क्षेत्र' (स्टेबल रेजन) में बनाये रखता है।
- (४) इसमें सीमित समय के अन्दर बहुत सारी गणनाएँ और ट्रान्सफॉर्मेशन करने पड़ते हैं जिसके लिये तेज प्रोसेसरों या कन्ट्रोलरों की आवशयकता होती है।