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सत्यकाम जाबाल

सत्यकाम जाबाल, महर्षि गौतम के शिष्य थे जिनकी माता जबाला थीं और जिनकी कथा छांदोग्य उपनिषद् में दी गई है। सत्यकाम जब गुरु के पास गए तो नियमानुसार गौतम ने उनसे उनका गोत्र पूछा। सत्यकाम ने स्पष्ट कह दिया कि मुझे अपने गोत्र का पता नहीं, मेरी माता का नाम जबाला और मेरा नाम सत्यकाम है। मेरे पिता युवावस्था में ही मर गए और घर में नित्य अतिथियों के आधिक्य से माता को बहुत काम करना पड़ता था जिससे उन्हें इतना भी समय नहीं मिलता था कि वे पिता जी से उनका गोत्र पूछ सकतीं। गौतम ने शिष्य की इस सीधी सच्ची बात पर विश्वास करके सत्यकाम को ब्राह्मणपुत्र मान लिया और उसे शीघ्र ही पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हो गई।

सही कथा और उसका अर्थ इस प्रकार है की :

सा हैनमुवाच नाहमेतद्वेद तात यद्गोत्रस्त्वमसि बह्वहं चरन्ती परिचारिणी यौवने त्वामलभे साहमेतन्न वेद यद्गोत्रस्त्वमसि जबाला तु नामाहमस्मि सत्यकामो नाम त्वमसि स सत्यकाम एव जाबालो ब्रवीथा इति ॥ 4.4.2 ॥ हिन्दी अनुवाद – जाबाला ने उससे कहा: बेटा, मैं नहीं जानती कि तुम्हारा गोत्र क्या है। जब मैं युवती थी, तो मैं बहुत लोगों की सेवा में व्यस्त थी, और मैंने तुम्हें जन्म दिया। चूंकि यह स्थिति थी, इसलिए मैं तुम्हारे गोत्र के बारे में कुछ नहीं जानती। मेरा नाम जाबाला है और तुम्हारा नाम सत्यकाम है। जब तुमसे तुम्हारे वंश के बारे में पूछा जाए, तो कहना, “मैं सत्यकाम जाबाला हूँ।”


सीख: ये थी की शरीर गोत्र आदि विषय ज्ञान के सम्मुख बहुत छोटी बातें है और कोई महत्व नहीं रखती हैं


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