सामग्री पर जाएँ

संवत्सरी

संवत्सरी

जैन ध्वज
आधिकारिक नाम संवत्सरी
अन्य नाम क्षमा मांगने का दिन
अनुयायीश्वेताम्बर जैन
Liturgical Color सफेद
प्रकार धार्मिक, सांस्कृतिक
उद्देश्यपर्यूषण का अंतिम दिन, जब जैन लोग सारे जीव से क्षमा मांगते हैं और क्षमा करते हैं।
उत्सव १ दिन
अनुष्ठानमिच्छामी दुक्कङम, खमाउ सा, उत्तम क्षमा, खमत खामणा (क्षमा मांगनी), प्रतिक्रमण (अंतरावलोकन)
तिथिभाद्रपद की शुक्ल पंचमी
आवृत्ति वार्षिक
समान पर्वपर्यूषण, क्षमावणी

संवत्सरी (संस्कृत: संवत्सरी) (अर्थ - वार्षिक दिवस) जैन धर्म के श्वेताम्बर संप्रदाय में पर्यूषण का अंतिम दिन है। यह प्रत्येक वर्ष जैन पंचांग में भाद्रपद के महिने के शुक्ल पंचमी पर आता है, जो कि ग्रेगोरी जंत्री के अगस्त और सितंबर के बीच है।

इस दिन जैन सभी जीवों से जाने-अनजाने में हुई ठेस या छोट के लिए क्षमा याचना करते हैं। हर वर्ष, इस दिन "संवत्सरी प्रतिक्रमण " नाम की तपस्या की जाती है। - प्रतिक्रमण के बाद, जैन विश्व के सभी प्राणी, दोस्तों और रिश्तेदारों को "मिच्छामि दुक्कङम", "खमाउ सा", "उत्तम क्षमा" या "खमत खामणा" बोल कर क्षमा मांगते हैं।

व्युतपत्ती

संवत्सरी संस्कृत भाषा से निकला शब्द है। संवत्सर वैदिक साहित्य (जैसे ऋग्वेद और अन्य प्राचीन ग्रंथों) में एक "वर्ष" को कहते हैं। [1] इस प्रकार, संवत्सरी का शाब्दिक अर्थ है - एक दिन है जो हर वर्ष आता है।

ॠतियां

रीति अनुसार, लोग इस दिन को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को मिच्छामि दुक्कड़म कहते हैं। कोई भी झगड़ा संवत्सरी के बाद नहीं आगे किया जाता है।

जैन पंचांग का सबसे पवित्र दिन (श्नेताम्बर संप्रदाय में) होने के नाते, [2] [3] कई जैन इस दिन पूर्ण उपवास रखते हैं।

संवत्सरी और क्षमावणी

संवत्सरी श्नेदाम्बर संप्रदाय में मनाया जाता है और क्षमावणी और दिगंबर संप्रदाय में, लेकिन इन दो दिनों में कोई बङा अंतर नहीं है। दोनो दिन को क्षमा मांगते है।

एक अंतर यह है कि संवत्सरी और क्षमावणी अलग दिन को होते हैं। दोनो पर्यूषण के अंतिम दिन को होते हैं, लेकिन श्वेताम्बर और दिगंबर संप्रदायों में प्रयूषण अलग अलग दिन को आरंभ होता है और अलग समय तक चलता है।

इस लिये, श्वेताम्बर जैन भाद्रपद मास के शुक्ल पंचमी को संवत्सरी मनाते है और दिगंबर जैन अश्विन कृष्ण माह के पहले दिन को क्षमावणी मनाते हैं।

और देखें

संदर्भ

  1. Bettina Bäumer; Kapila Vatsyayan (1992). Kalātattvakośa: A Lexicon of Fundamental Concepts of the Indian Arts. Motilal Banarsidass. पपृ॰ 215–216. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-1044-0.
  2. Shah, Nathubhai (1998). Jainism: The World of Conquerors. Volume I and II. Sussex: Sussex Academy Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-898723-30-3. p. 212
  3. "Jains pray for peace, brotherhood". The Hindu. 2007-09-13. मूल से 7 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-11.