संत शिरोमणि सतगुरू समनदास
संत शिरोमणि सतगुरू समनदास
नाम सतगुरू समनदास
जन्म सन 1922 को भादो पूर्णिमा १७ सितम्बर रविवार्
पिता का नाम श्री फूल सिंह
माता का नाम लक्ष्मी देवी
ग्राम लाख जिला मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश
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हमारे देश भारत में बहुत बड़े बड़े महापुरुष हुए हैं दो संसार में अपना नाम चमका कर गए और आज संसार उनका गुणगान करता है आज के समय में आपके बीच युगपुरुष जीती जागती तस्वीर है जिनका नाम पूरे भारत में वह संसार में प्रचलित हो गया है उनका नाम संत शिरोमणि सतगुरु समनदास जी महाराज के नाम से प्रचलित है सतगुरु स्वामी समनदास जी महाराज का संसार इस जन्म सन 1922 को भादो पूर्णिमा को हुआ ग्राम लाख जिला मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश में हुआ था उनका बचपन का नाम हुकमचंद था पिता का नाम श्री फूल सिंह व माता का नाम लक्ष्मी देवी था यह लाख में अपना सादा जीवन निर्वाह कर रहे थे चमार जाति में इनका जन्म हुआ कुछ् साल पहले 1926 के हालात चमारों का हाल आप से छिपा नहीं है इतिहास गवाह है कैसे रहते थे हुकम चंद जी अपने माता-पिता के साथ खेतों में काम करवाते थे और काश कार के यहां धूप में यह बरसात में सभी ऋतु में काम करना पढ़ता था क्योंकि किसान के यहां काम करना बड़ा कठिन है और मात्र एक यही काम था कि जिसको ज्यादातर हमारे लोग करते थे जिस समय हुकुमचंद e10 11 वर्ष के थे तब खेत में एक पेड़ के नीचे दोपहर में बैठे हुए थे और उन्हें उस समय संसार की वस्तुओं में कोई दिलचस्पी नहीं थी वह सोचते रहते थे जैसे उन्हें कुछ प्राप्त करना हो इसी बीच उनके पास एक साधु आए और उन्होंने हुकुमचंद से पानी पीने के लिए मांगा तब हुकुमचंद बोले महाराज मैं चमार हूं मेरे हाथ से आप कैसे पानी पियोगे शादी बोले हुकुमचंद तुम कितने भोले हो तुम पानी पिलाओ हुकुमचंद जी घड़े में पानी लेकर आते हैं और सतगुरु समनदास जी महाराज पानी लेकर आते समय कुछ साधु को बड़े ध्यान से देखते हैं वह देखते हैं की एक ताकत पर बैठे और ताकत से नीचे तक उनके काले लंबे बाल लटक रहे हैं और चेहरे पर काले रंग की बड़ी-बड़ी दाढ़ी और चेहरे पर एक अजीब तेज चमक रहा है हुकम चंद जी ने देखा और हुकुम चंद जी मन ही मन में सोच रहे हैं यह सारी बातें कि इतनी धूप पड़ रही है और यह आसमान से कैसे नीचे आ गए यह जरूर कोई सिद्ध महात्मा है तब हुकुमचंद जी ने साधु को पानी पिलाया और पानी पीते पीते साधु महाराज से ज्ञान का उपदेश सुनाएं लगते हैं उनके अंदर ही सतगुरु अखंड ज्योति का स्वरूप दिखाया तभी से हुकुमचंद जी को अखंड ज्ञान हो गया जब मैं वहां से घर आए उन्हें संत की भांति ही बात कर रहे थे उन्होंने एकांत के लिए उपलों का धुना लगाया और धोना लगाकर कमरे में बैठ गए उनके घर वाले परेशान हो गए पिता फूल सिंह ने उन्हें काम करने को कहा परंतु हैं उनके भजन में मस्त है उन्होंने पिता फूल सिंह को विस्तार से समझाया परंतु मैं सोचने लगे कि इस पर किसी जादू टोने का असर हो गया है ऑपरेट प्रायर का मुझे लगता है उन्होंने एक सियाणा को बुलाया और उस सियाणा ने एक झाड़ू मंगाई और पिता फूल सिंह जी ने उसे झड़ लाकर दे दी वहां बहुत भीड़ हो गई लोग और काफी बच्चे पर औरतों भी थी और बहुत से डर के परेशान भी हो रहे थे कभी हुकुमचंद का पूरा हम पर ना आ जाए इसलिए लोग बाग डर भी रहे थे सियाणा ने जब झाड़ू को उठाया और उठाना चाहा चाहा तो सियाणा पर झाड़ू नहीं उठी और उसके हाथ आपस में चिपक गए उसने बहुत छुड़ाने की कोशिश की मगर उसके हाथ अपने हाथ से छूट नहीं रहे थे मानो किसी ने उसके हाथ रस्सी से जकड़ दिए हो दो दो आदमियों ने उसके हाथ छुड़ाने की कोशिश की मगर सियाणा हाथ नहीं छूटा सका तब सियाणा परेशान हो जाता है और महाराज जी से माफी मांगने लगते हैं कि है महाराज मुझे माफ कर दो आप जरूर कोई बड़ी शक्तियां तब हुकुम सिंह जी कहते हैं कि बता आज के बाद तो पागल नहीं बनाओगे लोगों का तब वह कहते हैं कि नहीं मैं पागल नहीं बनाऊंगा तब महाराज जी ने कहा खोल अपने हाथ तो उसने अपने आप को हाथ खोले और आप खुल गए सब सियाणा एक पल भी वहां नहीं रुका और भाग गया और इस बात का पर्चा पूरे गांव में आग की तरह फैल गया सभी को यह जानकारी हो गई की फूल सिंह के लड़के हुकुमचंद को कोई शक्ति मिल गई है तनु फूल सिंह जिस किसान के यहां लगे हुए थे वह किसान भी आता है और हुकम चंद जी को काम पर लौटने के लिए मनाने लगते हैं मगर हुकम चंद जी ने कहा कि मैं जिस काम के लिए आया हूं मुझे वह काम करना है तुम्हारा काम नहीं करना है इतनी बात सुनकर किसान को गुस्सा आ जाता है और वह फूल सिंह जी से कहते हैं कि तुम्हारा लड़का किसी काम का नहीं है और ना यह काम करेगा तुम मेरे ₹2000 दे दो बस मैं ऐसे काम पर नहीं ले जाता इतनी बात सुनकर हुकुमचंद जी बोले कि तुम अपनी चादर यहां बिचाओ मैं देता हूं तुम्हें पैसे तब हुकुम चंद जी ने जो उपले अपने धूणी मैं लगाए थे और उसके लाल लाल अंगारे हो रहे थे हुकुमचंद जी आग में से अंगारे निकाल निकाल कर उसकी चादर पर रखते गए और उनकी चादर पर रूपों का ढेर लग गया किसान यह करतब देख रहे थे सभी किसान को अपनी गलती पर पछतावा हुआ और वह हुकम चंद जी से माफी मांगने लगते हैं तब हुकुम संजू से कहते कि यह रुपया लेऔर जाओ मगर किसान मगर किसान अपनी चादर और रुपए छोड़कर वहां से हाथ जोड़कर निकल जाते हैं हुकम चंद जी ने वह रुपए फिर वही रख दिया जहां से उन्होंने उठाता इस बात का चर्चा पूरे लाख गांव में जोर शोर से हो जाता हैl
अभय दास जी
देवब्न्द सहरन्पुर्