श्वेतकेतु इस नाम के कई व्यक्ति हुए हैं;
- (1) महर्षि उद्दालक के पुत्र जो कहीं उत्तराखंड में रहते थे। इन्होंने एक बार ब्राह्मणों के साथ दुर्व्यवहार किया जिससे इनके पिता ने इसका परित्याग कर दिया। इन्होंने यह नियम प्रचारित किया कि पति को छोड़कर पर पुरुष के पास जानेवाली स्त्री तथा अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से संबंध कर लेनेवाला पुरुष दोनों ही भ्रूणहत्या के अपराधी माने जाएँ। इनकी कथा महाभारत के आदिपर्व में है और उनके द्वारा प्रचारित यह नियम धर्मशास्त्र में अब तक मान्य है।[1]
- (2) महर्षि अरुण के पुत्र आरुण जिन्हें आरुणेय भी कहते हैं। इन्होंने पांचालराज महर्षि प्रवाहण से ब्रह्मविद्या संबंधी अनेक उपदेश ग्रहण किए। इनकी कथा छांदोग्योपनिषद् में दी गई है।
- (3) पुरुवंशीय सर्वजित् के पुत्र जिनके तीन भाई और थे। इन भाइयों में से वत्स अवंती के अधिपति हुए जिनकी कथा हरिवंशपुराण में मिलती है।
- (4) स्वायंभुव मन्वंतर में हुए एक राजर्षि जो शिव जी के लांगली भीमवाले अवतार के उपासक परम शिवभक्त माने गए हैं। इन्होंने प्रभास क्षेत्र में शंकर की दीर्घकालीन आराधना करके वहाँ एक शिवलिंग की स्थापना की थी। इनकी तपस्या का विवरण शिव तथा स्कंदपुराणों में मिलता है। उसमें यह भी लिखा है कि इनके एक यज्ञ में अधिक धृतपान करने से अग्निदेव को अजीर्ण का रोग हो गया जिसे उन्हें खांडव वन की सारी लकड़ी खाकर मिटाना पड़ा था।
सन्दर्भ