शून्य पुराण
शून्यपुराण बांग्ला भाषा में रचित एक चम्पूकाब्य है जिसके रचयिता रामाइ पण्डित माने जाते हैं। इसमें ५१ अध्याय हैं जिनमें से आरम्भिक ५ अध्याय सृष्टि के विवेचन से सम्बन्धित हैं। रामाइ पण्डित का समय १३वीं शताब्दी में अनुमानित है। इसमें ‘निरञ्जनेर रुष्मा’ नाम का एक अंश है। मूल ग्रन्थ में बौद्धधर्म के शून्यवाद और हिन्दू लोकधर्म का मिश्रण है।
इसमें धर्मदेवता निरञ्जन की जो कल्पना की गयी है वह बौद्ध दर्शन के शून्यवाद के अनुरूप है। इस ग्रन्थ के छठवें अध्याय से लेकर ५१वें अध्याय में धर्मपूजा की रीति-पद्धति बर्णित है। ‘देबीर मनञि’ नामक अध्याय में पशुबलि की कथा है जो हिन्दू धर्म के कुछ अनुरूप है। शेष दो अध्यायों में नाथदेवता का उल्लेख है। बांग्ला साहित्य के इतिहास में शून्यपुराण को उसके शिल्पकर्म के दृष्टि से नहीं बल्कि धर्मग्रन्थ के रूप में ऐतिहासिक महत्व मिला है।