शाण्डिल्य
भारद्वाज, भारद्वाज एक ब्राह्मण गोत्र है, ये वेदों में श्रेष्ठ, तथा ऊँचकुलिन घराने के ब्राह्मण हैं। यह गोत्र ब्राह्मणों के तीन मुख्य ऊँचे गोत्रो में से एक है।[1]
महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम भी है। ब्राह्मणों से ही इस संसार का अस्तित्व है अतः इस संसार के प्रारंभ सतयुग से ही शांडिल्य ऋषि और अन्य ब्राह्मणों का अस्तित्व कायम है, अतः मान्यता यह भी है के सबसे पहले सतयुग में वेद-शास्त्र तथा शस्त्रों की शिक्षा भी ऋषि शांडिल्य तथा गार्गस्य ऋषि के आश्रम में ही प्रारंभ हुई। शांडिल्य ऋषि त्रेतायुग में राजा दिलीप के राजपुरोहित बताए गए है, वहीं द्वापर में वे राजा नंद के पुजारी हैं, एक समय में वे राजा त्रिशुंक के पुजारी थे तो दूसरे समय में वे महाभारत के नायक भीष्म पितामह तथा अपने ब्राह्मण भ्राता श्री परशुराम के साथ वार्तालाप करते हुए दिखाए गए हैंं। कलयुग के प्रारंभ में वे जन्मेजय के पुत्र शतानीक के पुत्रेष्ठित यज्ञ को पूर्ण करते दिखाई देते हैं। इसके साथ ही वस्तुतः शांडिल्य एक ऐतिहासिक ब्राह्मण ऋषि हैं लेकिन कालांतर में उनके नाम से उपाधियां शुरू हुई है जैसे वशिष्ठ, विशवामित्र और व्यास नाम से उपाधियां होती हैं।
शांडिल्य गोत्र(तिवारी,त्रिपाठी,शर्मा,मिश्रा,गोस्वामी वंश) शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताए जाते हैं जो इन बारह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं। पिंडी, सोहगोरा, संरयाँ, श्रीजन, धतूरा, बगराइच, बलूआ, हलदी, झूडीयाँ, उनवलियाँ, लोनापार, कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है।
इन्हीं बारह गांव से आज चारो तरफ इनका विकास हुआ है, ये सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। इनका गोत्र श्रीमुख शांडिल्य त्रि प्रवर है,श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमें राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ अतः विष्णु घराना, मणि घराना है, इन चारो का उदय सोहगोरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारो का अस्तित्व कायम है।
शाण्डिल्य नामक आचार्य अन्य शास्त्रों में भी स्मृत हुए हैं। हेमाद्रि के लक्षणप्रकाश में शाण्डिल्य को आयुर्वेदाचार्य कहा गया है। विभिन्न व्याख्यान ग्रंथों से पता चलता है कि इनके नाम से एक गृह्यसूत्र एवं एक स्मृतिग्रंथ भी था।
सन्दर्भ
- ↑ Barua, Beni Madhab (1921). A History Of Pre-buddhistic Indian Philosophy.