शंकुक
शंकुक, या नोमन (Gnomon), दिन में समय ज्ञात करने का सरल प्राचीन उपकरण था।
रचना
इसमें मुख्यत: फर्श, या किसी क्षैतिज समतल, पर एक खड़ा छड़ होता था, जिसकी छाया की स्थिति दिन का समय बताती थी। 2,000 ई. पू. में ही बैबिलोनिया में इसका प्रयोग होता था और हेराडोटस (Herodotus) के अनुसार अनैक्सिमैंडर (Anaximander) ने लगभग 600 ई. पू. यूनान में इसका प्रचार किया। खड़े छड़ की छाया की लंबाई, दिशा तथा छाया के अग्र द्वारा अनुरेखित रेखा से रविमार्ग के तिर्यक्ता, अयनांत की तिथि (अत: सौर वर्ष) और याम्योत्तर का पता लगाना संभव होता था।
कभी-कभी शंकु का खड़ा छड़ किसी गोलार्ध के अवतल पृष्ठ के केंद्र में बिठाया जाता है। एक रूपांतरण में, यह एक ऊँचा गुंबद था, जिसके ऊपरी भाग में छेद बना था, जिससे होकर सूर्य का प्रकाश फर्श पर बिंदु के रूप में पड़ता था। रोम की प्राचीन काल की कुछ धूपघड़ियों में, जिन्हें चक्रार्ध (hemicycle) कहते थे, यह एक क्षैतिज शलाका (style) के रूप में था, जो पट्ट (dial) के सर्वोच्च वक्र कोर के केंद्र पर आबद्ध होता था। पार्थिव अक्ष के समांतर आबद्ध धूपघड़ी की तिरछी शलाका को भी शंकु कहते हैं।
भारतीय ग्रन्थों में शंकुक की चर्चा
भारत में प्रयोग आने वाले सबसे प्राचीन खयोलीय यन्त्र शंकुक और जल घड़ी थे। ७वीं शताब्दी के आरम्भ में ब्रह्मगुप्त ने १० प्रकार के यन्त्रों का वर्णन किया है। पश्चवर्ती भारतीय खगोलविदों ने इसे ही मामूली परिवर्तनों के साथ स्वीकार कर लिया है।
बाहरी कड़ियाँ
- 1 Astronomical Instruments In Ancient India (Shekher Narveker)
- Gazalé, Midhat J. Gnomons, from Pharaohs to Fractals, Princeton University Press, Princeton, 1999. ISBN 0-691-00514-1.
- Heath, Thomas Little (1981), A History of Greek Mathematics, Dover publications, ISBN 0486240738, ISBN 0-486-24074-6 (first published 1921).
- Laertius, Diogenes, The Lives and Opinions of Eminent Philosophers, trans. C.D. Yonge. London: Henry G. Bohn, 1853.
- Mayall, R. Newton,Mayall, Margaret W., Sundials: Their Construction and Use, Dover Publications, Inc., 1994, ISBN 0-486-41146-X
- Waugh, Albert E., Sundials: Their Theory and Construction, Dover Publications, Inc., 1973, ISBN 0-486-22947-5.
- [1], Apollo 16 Traverse guide