शंकर पुरुषोत्तम आघारकर
शंकर पुरुषोत्तम आघारकर | |
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जन्म | 18 नवम्बर 1884 </br> |
मृत्यु | 1 सितंबर 1960 |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रसिद्धि का कारण | आगरकर अनुसंधान संस्थान |
शंकर पुरुषोत्तम आघारकर (18 नवंबर 1884 - 1 सितंबर 1960) एक भारतीय वनस्पतिशास्त्री थे। उनकी विशेषज्ञता पादप आकृति विज्ञान में थी। उन्होंने अपनी पीएचडी डिग्री बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी से सन 1919 में प्राप्त की। वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के घोष प्रोफेसर (1920-47) थे। कलकता के 'इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइन्स' की तर्ज पर उन्होंने 'महाराष्ट्र एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइन्स' की स्थापना की और आजीवन उसके निदेशक रहे। [1] वह भारत के प्रमुख वनस्पतिशास्त्रियों में से एक हैं। उन्होंने पश्चिमी घाट की जैव विविधता की खोज की, जहां उन्हें मीठे पानी की जेलीफ़िश की एक प्रजाति मिली, जो तब तक केवल अफ्रीका में पाई जाती थी। ये निष्कर्ष 1912 में वैज्ञानिक पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित हुए थे। कोलकाता के भारतीय संग्रहालय के अधीक्षक डॉ. अन्नांदले ने डॉ. आघारकर को जानवरों और पौधों के नमूनों की सूक्ष्म जांच करने, संरक्षित करने और संचालित करने के अपने आगे के प्रयासों में मदद की। पुणे के 'आघारकर शोध संस्थान' का नाम उनकी स्मृति में किया गया है।
प्रारंभिक जीवन
उनका जन्म 1884 में हुआ था। बचपन से ही वह पौधों और जानवरों से सम्बन्धित ज्ञान के प्रति आकर्षित थे। इसी का परिणाम था कि उन्होंने जेलीफ़िश की एक नई प्रजाति की खोज की। वह अपनी सटीक जानकारी और विस्तृत टिप्पणियों के लिए जाने जाते थे।
शिक्षा
बाद में सी.वी. रमन ने कलकत्ता में घोष प्रोफेसर पद के लिए उनकी सिफारिश की। वे 1919 में बर्लिन विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त करने के लिए जर्मनी गए थे, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने पर उन्हें जेल में डाल दिया गया था। हालाँकि उन्होंने जेल में अपनी पीएचडी पूरी की और भारत लौट आए।
पुरस्कार और सम्मान
- महाराष्ट्र एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट, का नाम बदलकर 1992 में संस्थापक निदेशक के सम्मान में आगरकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) कर दिया गया। [2]
- बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोबोटनी द्वारा प्रोफेसर अल्बर्ट सीवार्ड मेमोरियल लेक्चरशिप - 1955
- भारतीय वनस्पति सोसायटी के सदस्य (अध्यक्ष) - 1923
- अध्यक्ष, भारतीय विज्ञान कांग्रेस के वनस्पति विज्ञान अनुभाग - 1924
- एशियाई समाज का भारतीय विज्ञान कांग्रेस पदक - 1934
- भारतीय मृदा विज्ञान सोसायटी के सदस्य (मानद सचिव) - 1935-1940
- बंगाल की वनस्पति सोसायटी के अध्यक्ष - 1940-1945
- भारतीय पारिस्थितिक समाज के अध्यक्ष - 1940-1945
- एशियाटिक सोसाइटी के सचिव - 1943-1945
- एशियाटिक सोसाइटी के उपाध्यक्ष - 1945-1946
- बृहन महाराष्ट्र परिषद के अध्यक्ष- 1943
इन्हें भी देखें
संदर्भ
- ↑ Age of Entanglement. Harvard University Press. 6 Jan 2014. पृ॰ 208. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0674726314.
- ↑ "Maharashtra Association for the Cultivation of Science Research Institute was renamed". dst.gov.in. Department of Science and Technology. मूल से 29 May 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 May 2014.