व्यावसायिक कानून
व्यावसायिक कानून या 'व्यावसायिक सन्नियम' (Commercial law या business law) कानूनों के उस समुच्चय का नाम है जो व्यापार, वाणिज्य, क्रय-विक्रय, में लगे व्यक्तियों एवं संगठननों के अधिकार, सम्बन्ध, तथा व्यहार का नियमन करता है।प्रायः इसे सिविल कानून (दीवानी कानून) की एक शाखा के रूप में देखा जाता है।
परिचय
राज्य (अथवा सरकार) द्वारा सामाजिक व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने हेतु तथा मानवीय आचरण एवं व्यवहारों को व्यवस्थित तथा क्रियान्वित करने के उद्देश्य से जो नियम बनाये जातेहैं , उन्हें सन्नियम या राजनियम कहा जाता है। सालमण्ड ( Salmond ) के अनुसार,
सन्नियम या राजनियम से आशय राज्य द्वारा स्वीकृत एवं प्रवर्तित उन सिद्धान्तों के समूह से हैं जिनका उपयोग उसके द्वारा न्याय प्रशासन के लिए किया जाता है।
व्यापारिक सन्नियम में उन अधिनियमों को सम्मिलित किया जाता है जो व्यवसाय एवं वाणिज्यिक क्रियाओं के नियमन एवं नियन्त्रण के लिए बनाये जातेहैं। ए . के . सेन के अनुसार , “ व्यापारिक या व्यावसायिक सन्नियम के अन्तर्गत वे राजनियम आते हैं जो व्यापारियों , बैंकर्स तथा व्यवसायियों के साधारण व्यवहारों से सम्बन्धित हैं और जो सम्पत्ति के अधिकारों एवं वाणिज्य में संलग्न व्यक्तियों से सम्बन्ध रखतेहैं। 'भारतीय अनुबन्ध अधिनियम' , व्यापारिक अथवा व्यावसायिक सन्नियम की एक महत्वपूर्ण शाखा है , क्योंकि अधिकांश व्यापारिक व्यवहार, चाहे वे साधारण व्यक्तियों द्वारा किये जायें या व्यवसायियों द्वारा किये जायें , ' अनुबन्धों ’ पर ही आधारित होतेहैं। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 25 अप्रैल , 1872 को पारित किया गया था और 1 सितम्बर , 1872 से लागू हुआ था।
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम को दो भागों में बांटा जा सकता है। इसमें प्रथम भाग में धारा 1 से 75 तक है जो अनुबन्ध के सामान्य सिद्धान्तों से सम्बन्धित हैं और सभी प्रकार के अनुबन्धों पर लागू होती हैं। द्वितीय भाग में धारा 76 से 2 66 तक है जो विशिष्ट प्रकार के अनुबन्धों जैसे वस्तु-विक्रय , क्षतिपूर्ति एवं गारण्टी , निक्षेप , गिरवी , एजेन्सी तथा साझेदारी से सम्बन्धित हैं। 193 0 में वस्तुविक्रय से सम्बन्धित धाराओं को निरस्त करके पृथक से वस्तुविक्रय अधिनियम १९३० बनाया गया है। इसी प्रकार 1932 में साझेदारी अनुबन्धों से सम्बन्धित धाराओं को इस अधिनियम में से निरस्त कर दिया गया और पृथक साझेदारी अधिनियम १९३२ बनाया गया।
इन्हें भी देखें
- भारतीय अनुबन्ध अधिनियम १८७२
- वस्तु विक्रय अधिनियम 1930
- परक्राम्य लिखत अधिनियम १८८१ (Negotiable Instruments Act, 1881)
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986)
- कम्पनी अधिनियम, 1956
- विदेशी विनियम प्रबंदन अधिनियम, १९९९
- भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932
बाहरी कड़ियाँ
- बैंकिंग के अधिनियम
- व्यावसायिक सन्नियम (गूगल पुस्तक ; डॉ अशोक शर्मा)