वेदव्यास
कृष्णद्वैपायन वेदव्यास | |
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[[चित्र:|175px|ऋषि वेदव्यास गणेशजी से महाभारत लिखवा रहे हैं]] ऋषि वेदव्यास गणेशजी से महाभारत लिखवा रहे हैं | |
हिंदू पौराणिक कथाओं के पात्र | |
नाम: | कृष्णद्वैपायन वेदव्यास |
अन्य नाम: | कृष्णद्वैपायन, पाराशर्य |
संदर्भ ग्रंथ: | महाभारत, पुराण आदि |
जन्म स्थल: | छाब्दीबराहके समीप नदि नेपाल |
व्यवसाय: | वैदिक ऋषि |
मुख्य शस्त्र: | महाभारत, १८ पुराण |
माता-पिता: | सत्यवती और ऋषि पराशर |
भाई-बहन: | भीष्म,चित्रांगद, विचित्रवीर्य और विदुरसौतेले भाई |
जीवनसाथी: | उर्वशी |
संतान: | शुकदेव , धृतराष्ट्र (अम्बिका से) , पाण्डु (अम्बालिका से)विदुर ([परिश्रमी]) |
महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता है। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे| महाभारत ग्रंथ का लेखन भगवान् गणेश ने महर्षि वेदव्यास से सुन सुनकर किया था।[1] वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी और वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते थे। जब-जब अंतर्द्वंद्व और संकट की स्थिति आती थी, माता सत्यवती उनसे विचार-विमर्श के लिए कभी आश्रम पहुंचती, तो कभी हस्तिनापुर के राजभवन में आमंत्रित करती थी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य, चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विस्तार या विभाजन किया गया। ऐसा माना जाता है कि "वेद व्यास" नाम वास्तविक नाम के बजाय एक शीर्षक है। क्योंकि कृष्ण द्वैपायन ने चार वेदों को संकलित किया था। आज भी कुरुक्षेत्र के समीप व्यासपुर (बिलासपुर), यमुना नगर मे महर्षि वेदव्यास जी की तपस्वी स्थली, महर्षि वेदव्यास जी का मंदिर ओर पवित्र श्री व्यास सरोवर है जो माँ सरस्वती नदी के तट पर स्थित है जिसका वर्णन धार्मिक ग्रंथ महाभारत ओर स्कंद पुराण मे वर्णित है ।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे। निम्नोक्त श्लोकों से इसकी पुष्टि होती है। यिनका जन्म नेपालके छाब्दीबराहके निकट्मे हि हुवा था ।
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्रः।
येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः।।[2]
अर्थात् - जिन्होंने महाभारत रूपी ज्ञान के दीप को प्रज्वलित किया ऐसे विशाल बुद्धि वाले महर्षि वेदव्यास को मेरा नमस्कार है।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नम:।।[3]
महान वसिष्ठ-मुनि को मैं नमन करता हूँ। (वसिष्ठ के पुत्र थे 'शक्ति'; शक्ति के पुत्र पराशर, और पराशर के पुत्र व्यास
वेद व्यास के विद्वान शिष्य
वेद व्यास का योगदान
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास त्रिकालज्ञ थे तथा उन्होंने दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलियुग में धर्म क्षीण हो जायेगा। धर्म के क्षीण होने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जायगा। एक विशाल वेद का सांगोपांग अध्ययन उनके सामर्थ्य से बाहर हो जायेगा। इसीलिये महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरणशक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने उनका नाम रखा - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुये। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को पढ़ाया। वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ तथा शुष्क होने के कारण वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में बताया गया है।
पुराणों को उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षण को पढ़ाया। व्यास जी के शिष्योंने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बना दीं। व्यास जी ने महाभारत की रचना की।
पौराणिक-महाकाव्य युग की महान विभूति, महाभारत, अट्ठारह पुराण, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय साहित्य-दर्शन के प्रणेता वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग ३००० ई. पूर्व में हुआ था। वेदांत दर्शन, अद्वैतवाद के संस्थापक वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे। पत्नी आरुणी से उत्पन्न इनके पुत्र थे महान बाल योगी शुकदेव। श्रीमद्भागवत गीता विश्व के सबसे बड़े महाकाव्य 'महाभारत' का ही अंश है। रामनगर के किले में और व्यास नगर में वेदव्यास का मंदिर है जहॉ माघ में प्रत्येक सोमवार मेला लगता है। गुरु पूर्णिमा का प्रसिद्ध पर्व व्यास जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।[4]
पुराणों तथा महाभारत के रचयिता महर्षि का मन्दिर व्यासपुरी में विद्यमान है जो काशी से पाँच मील की दूरी पर स्थित है। महाराज काशी नरेश के रामनगर दुर्ग में भी पश्चिम भाग में व्यासेश्वर की मूर्ति विराजमान् है जिसे साधारण जनता छोटा वेदव्यास के नाम से जानती है। वास्तव में वेदव्यास की यह सब से प्राचीन मूर्ति है। व्यासजी द्वारा काशी को शाप देने के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्कासित कर दिया था। तब व्यासजी लोलार्क मंदिर के आग्नेय कोण में गंगाजी के पूर्वी तट पर स्थित हुए।[4]
इस घटना का उल्लेख काशी खंड में इस प्रकार है-
लोलार्कादं अग्निदिग्भागे, स्वर्घुनी पूर्वरोधसि। स्थितो ह्यद्य्यापि पश्चेत्स: काशीप्रासाद राजिकाम्।। स्कंद पुराण, काशी खंड ९६/२०१[4]
व्यासजी ने पुराणों तथा महाभारत की रचना करने के पश्चात् ब्रह्मसूत्रों की रचना भी यहाँ की थी। वाल्मीकि की ही तरह व्यास भी संस्कृत कवियों के लिये उपजीव्य हैं। महाभारत में उपाख्यानों का अनुसरण कर अनेक संस्कृत कवियों ने काव्य, नाटक आदि की सृष्टि की है। महाभारत के संबंध में स्वयं व्यासजी की ही उक्ति अधिक सटीक है- इस ग्रंथ में जो कुछ है, वह अन्यत्र है, पंरतु जो इसमें नहीं है, वह अन्यत्र कहीं भी नहीं है।[4]
कालपी में यमुना के किसी द्वीप में इनका जन्म हुआ था। व्यासजी कृष्ण द्वैपायन कहलाये क्योंकि उनका रंग श्याम था। वे पैदा होते ही माँ की आज्ञा से तपस्या करने चले गये थे और कह गये थे कि जब भी तुम स्मरण करोगी, मैं आ जाऊंगा। वे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर के जन्मदाता ही नहीं, अपितु विपत्ति के समय वे छाया की तरह पाण्डवों का साथ भी देते थे। उन्होंने तीन वर्षों के अथक परिश्रम से महाभारत ग्रंथ की रचना की थी-
त्रिभिर्वर्षे: सदोत्थायी कृष्णद्वैपायनोमुनि:। महाभारतमाख्यानं कृतवादि मुदतमम्।। आदिपर्व - (५६/५२)[4]
जब इन्होंने धर्म का ह्रास होते देखा तो इन्होंने वेद का व्यास अर्थात विभाग कर दिया और वेदव्यास कहलाये। वेदों का विभाग कर उन्होंने अपने शिष्य सुमन्तु, जैमिनी, पैल और वैशम्पायन तथा पुत्र शुकदेव को उनका अध्ययन कराया तथा महाभारत का उपदेश दिया। आपकी इस अलौकिक प्रतिभा के कारण आपको भगवान का अवतार माना जाता है।
संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि के बाद व्यास ही सर्वश्रेष्ठ कवि हुए हैं। इनके लिखे काव्य 'आर्ष काव्य' के नाम से विख्यात हैं। व्यास जी का उद्देश्य महाभारत लिख कर युद्ध का वर्णन करना नहीं, बल्कि इस भौतिक जीवन की नि:सारता को दिखाना है। उनका कथन है कि भले ही कोई पुरुष वेदांग तथा उपनिषदों को जान ले, लेकिन वह कभी विचक्षण नहीं हो सकता क्योंकि यह महाभारत एक ही साथ अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र तथा कामशास्त्र है।[4]
१. यो विध्याच्चतुरो वेदान् सांगोपनिषदो द्विज:। न चाख्यातमिदं विद्य्यानैव स स्यादिचक्षण:।। २. अर्थशास्त्रमिदं प्रोक्तं धर्मशास्त्रमिदं महत्। कामाशास्त्रमिदं प्रोक्तं व्यासेना मितु बुद्धिना।। महा. आदि अ. २: २८-८३[4]
सन्दर्भ
- ↑ "कैसे बनी ये दुनियाः होमर के इलियड में देवताओं और युद्ध की दास्तान". मूल से 1 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जून 2018.
- ↑ Mathur, Nirmala Gupta & Aruna. Sanskar Book 3. S. Chand Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-219-2972-1.
- ↑ "Shloka - Vishnu 6". Sanskrit.Today (अंग्रेज़ी में). 2017-05-03. मूल से 4 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-01-08.
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए "Varanasi - Kashi Ki Vibhutiyna - Maharshi Vedvyas". ignca.nic.in. मूल से 14 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-01-08.