विसर्पिका सिम्प्लैक्स विषाणु
Herpes simplex virus | |
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TEM micrograph of a herpes simplex virus. | |
विषाणु वर्गीकरण | |
Group: | Group I (डीएसडीएनए) |
कुल: | Herpesviridae |
उपकुल: | Alphaherpesvirinae |
वंश: | Simplexvirus |
Species | |
Herpes simplex virus 1 (HWJ-1) |
विसर्पिका सिम्प्लैक्स विषाणु 1 तथा 2 (HSV-1 तथा HSV-2), जिसे मानव विसर्पिका विषाणु 1 तथा 2 (HHV-1 तथा -2) भी कहा जाता है, विसर्पिका विषाणु परिवार- हर्प्सविरिडी (Herpesviridae) के सदस्य हैं।[1] HSV-1 तथा -2 दोनों सर्वव्यापी एवं संक्रामक हैं। संक्रमित व्यक्ति द्वारा विषाणु के उत्पादन और प्रसार से ये फैलते हैं।
विसर्पिका सिम्प्लैक्स विषाणु के संक्रमण के लक्षणों में शामिल हैं त्वचा अथवा मुंह की म्यूकस झिल्ली, होंठ या जनन अंगों पर पानी भरे फफोले.[1] विसर्पिका रोग में घाव पर पपड़ी जमने के बाद घाव ठीक होते हैं। यद्यपि, न्यूरोट्रॉपिक तथा न्यूरोइन्वैसिव विषाणु होने के कारण HSV-1 तथा -2 वाहक के शरीर में जड़ जमा लेते हैं और वहां वे सुप्त रहते हैं और शरीर के रोग-प्रतिरोधी तंत्र से बचकर तंत्रिकाओं के कोशिकाकाय में छिपे रहते हैं। आरंभिक या प्राथमिक संक्रमण के बाद, कुछ संक्रमित लोगों को विषाणुजनित पुनर्सक्रियन या प्रकोपों की छिटपुट घटनाओं से गुजरना पड़ता है। संक्रमण के दौरान तंत्रिका कोशिका में विषाणु सक्रिय हो जाते हैं और तंत्रिका के ऐक्सॉन के जरिए त्वचा में पहुंचते हैं और वहां अपनी संख्या वृद्धि करते हैं और प्रसारित होते हैं जिस कारण नए फोड़े पैदा होते हैं।[2]
HSV संक्रमण का कोई इलाज़ नहीं है लेकिन उपचार द्वारा विषाणु के फैलने में कमी लाई जा सकती है।
संचरण
HSV-1 तथा -2 का प्रसार क्षैतिज रूप से होता है जब किसी संक्रमणग्रस्त व्यक्ति, जिसकी त्वचा, लार अथवा जनन अंगों के स्राव से विषाणु बाहर फैल रहा होता है, के संपर्क में कोई स्वस्थ्य व्यक्ति आता है। इसके प्रसार की संभावना तब अधिक हो जाती है जब संक्रमित व्यक्ति की त्वचा और अंगों पर फफोले निकले होते हैं,[3] हालांकि यदि फफोले दिखाई न पड़ते हों तब भी इसके फैलने की संभावना बनी रहती है और अधिकतर HSV-2 संक्रमण अलाक्षणिक झरन के करण होता है।[4] व्यक्ति में HSV-1 का प्रवेश प्राय: मुख द्वारा बचपन में होता है, किंतु यह यौन रूप से भी संचारित हो सकता है। HSV-2 मूलत: यौन रूप से संचारित होने वाला संक्रमण है।[3]
दोनों विषाणु का संचारण माता द्वारा बच्चे में इसके जन्म के पहले से भी हो सकता है।[5] यदि माता में इस विषाणु के लक्षण नहीं पाए गए हों अथवा प्रसव के दिनों में फफोले नहीं दिखाई पड़े हों तो संक्रमण की संभावना कम हो जाती है। HSV के कुछ रूप शिशु के लिए जानलेवा हो सकते हैं[6] क्योंकि शिशु का विकासशील रोग-प्रतिरोधी तंत्र विषाणु से बचाव कर सकने में असफल रहता है जिसके कारण मस्तिष्क शोथ (encephalitis/इन्सेफेलाइटिस) होता है जिससे मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है।
HSV के शुरुआती संक्रमण से उत्पन्न होन वाले लक्षण प्राय: बाद में होने वाले प्रकोप से अधिक गंभीर होते हैं क्योंकि शरीर को प्रतिपिंड के निर्माण का अवसर नहीं मिल पाता. इस प्रथम प्रकोप में अपूतिक मेनिंजाइटिस के विकसित होने की कम (≈1%) संभावना होती है।[1]
सूक्ष्म जीव-विज्ञान
विषाणु की संरचना
जंतु विसर्पिका विषाणुओं में कुछ समान गुण पाए जाते हैं। विसर्पिका विषाणुओं की संरचना अपेक्षाकृत एक दीर्घ द्वि-लड़ी युक्त, रैखिक DNA जीनोम से बनी होती है जो एक विशफलकीय प्रोटीन पिंजर में बन्द रहता है जिसे कैप्सिड कहते हैं जो एनवेलप (आवरण) कहलाने वाले लिपिड के एक द्वि-स्तर में लिपटा होता है। एनवेलप कैप्सिड से एक टेग्युमेंट (tegument) द्वारा जुड़ा रहता है। इस संपूर्ण कण को विरियन (virion) कहते हैं।[7] प्रत्येक HSV-1 तथा HSV-2 में कम से कम 74 जीन (अथवा मुक्त-पठन ढांचे, ORFs) जीनोम के अन्दर पाए जाते हैं,[8] यद्यपि, जीन समूहन के बारे में किए गए आकलन के अनुसार लगभग 84 विशिष्ट प्रोटीन कोडिंग जीन 94 अनुमानित ORFs द्वारा होते हैं।[9] ये जीन विषाणु के कैप्सिड, टेग्युमेंट तथा एनवेलप के निर्माण में शामिल अनेक प्रकार के प्रोटीनों के कूट बनाते हैं और साथ ही विषाणु के प्रतिकृति तथा संक्रामकता को नियंत्रित करते हैं। ये जीन और उनके कार्य नीचे दी गई तालिका में संक्षिप्त रूप में दर्शाए गए हैं।
HSV-1 तथा HSV-2 के जीनोम जटिल होते हैं और उनमें दो विशिष्ट क्षेत्र पाए जते हैं जिन्हें दीर्घ विशिष्ट क्षेत्र (UL) तथा लघु विशिष्ट क्षेत्र (US) कहते हैं। 74 ज्ञात ORFs में से UL में 56 विषाणु-जीन होते हैं जबकि US में केवल 12 विषाणु होते हैं।[8] HSV जीनों का प्रतिलिपिकरण संक्रमित परपोषी के RNA पोलिमेरेज II द्वारा उत्प्रेरित होता है।[8] ठीक बाद वाले आरंभिक जीन, जो ‘पूर्व ’ एवं ‘विलंबित ’ की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने वाले प्रोटीनों के कूट निर्मित करते हैं, संक्रमण के बाद सबसे पहले अभिव्यक्त होते हैं। आरंभिक अभिव्यक्ति के बाद DNA प्रतिकृति तथा कुछ एनवेलप ग्लाइको प्रोटीनों के निर्माण में शामिल एंजाइमों का संश्लेषण होता है। विलंबित जीनों की अभिव्यक्ति अंत में होती है। जीनों का यह समूह मुख्य रूप से उन प्रोटीनों के कूट बनाते हैं जो विरियन कण का निर्माण करते हैं।[8]
(UL) के पांच प्रोटीनों द्वारा विषाणु कैप्सिड UL6, UL18, UL35, UL38 तथा मुख्य कैप्सिड प्रोटीन UL19 का निर्माण किया जाता है।[7]
HSV-1 के मुक्त पठन ढांचे (ORFs)[8][10] | |||||||
जीन | प्रोटीन | कार्य/विवरण | जीन | प्रोटीन | कार्य/विवरण | ||
UL1 | ग्लाइकोप्रोटीन L [1] | पृष्ठ एवं झिल्ली | UL38 | UL38; VP19C [2] | कैप्सिड समूहन तथा DNA का परिपक्वन | ||
UL2 | UL2 [3] | युरैसिल-DNA ग्लाइकोसाइलेज़ | UL39 | UL39 [4] | राइबोन्युक्लियोटाइड रिडक्टेज़ (वृहद् उप-इकाई) | ||
UL3 | UL3 [5] | अज्ञात | UL40 | UL40 [6] | राइबोन्युक्लियोटाइड रिडक्टेज़ (लघु उप-इकाई) | ||
UL4 | UL4 [7] | अज्ञात | UL41 | UL41; VHS [8] | टेग्युमेंट प्रोटीन; विरियन परपोषी शटऑफ[11] | ||
UL5 | UL5 [9] | DNA प्रतिकृति | UL42 | UL42 [10] | DNA पोलिमेरेज़ के प्रोसेसिविटी कारक | ||
UL6 | UL6 [11] | प्रसंस्करण और पैकेजिंग डीएनए | UL43 | UL43 [12] | झिल्ली प्रोटीन | ||
UL7 | UL7 [13] | विरियन | UL44 | ग्लाइकोप्रोटीन C [14] | पृष्ठ एवं झिल्ली | ||
UL8 | UL8 [15] | DNA हेलिकेज़/प्राइमेज़ संकुल से संबद्ध प्रोटीन | UL45 | UL45 [16] | झिल्ली प्रोटीन; C-टाइप लेक्टिन[12] | ||
UL9 | UL9 [17] | प्रतिकृति मूल-संयोजी प्रोटीन | UL46 | VP11/12 [18] | टेग्युमेंट प्रोटीन | ||
UL10 | ग्लाइकोप्रोटीन M [19] | पृष्ठ एवं झिल्ली | UL47 | UL47; VP13/14 [20] | टेग्युमेंट प्रोटीन | ||
UL11 | UL11 [21] | विरियन निकास एवं द्वितीयक आवरण | UL48 | VP16 (अल्फा-TIF) [22] | विरियन का परिपक्वन; कोशिकीय प्रतिलिपिकरण कारक Oct-1 तथा HCF की मदद से IEGs को सक्रिय करते हैं।5'TAATGARAT3' के विन्यास में बंधा होता है। | ||
UL12 | UL12 [23] | क्षारीय एग्ज़ोन्युक्लिएज़ | UL49 | UL49A [24] | एनवेलप प्रोटीन | ||
UL13 | UL13 [25] | सेराइन-थ्रियोनाइन प्रोटीन काइनेज़ | UL50 | UL50 [26] | dUTP डाइफॉस्क्फेटेज़ | ||
UL14 | UL14 [27] | टेग्युमेंट प्रोटीन | UL51 | UL51 [28] | टेग्युमेंट प्रोटीन | ||
UL15 | टर्मिनेज़ [29] | DNA का प्रोसेसिंग तथा पैकिज़िंग | UL52 | UL52 [30] | DNA हेलिकेज़/प्राइमेज़ संकुल से संबद्ध प्रोटीन | ||
UL16 | UL16 [31] | टेग्युमेंट प्रोटीन | UL53 | ग्लाइकोप्रोटीन K [32] | पृष्ठ एवं झिल्ली | ||
UL17 | UL17 [33] | DNA का प्रोसेसिंग तथा पैकिज़िंग | UL54 | IE63; ICP27 [34] | प्रतिलिपिकारी नियमन | ||
UL18 | VP23 [35] | कैप्सिड प्रोटीन | UL55 | UL55 [36] | अज्ञात | ||
UL19 | VP5 [37] | मुख्य कैप्सिड प्रोटीन | UL56 | UL56 [38] | अज्ञात | ||
UL20 | UL20 [39] | झिल्ली प्रोटीन | US1 | ICP22; IE68 [40] | विषाणु प्रतिकृति | ||
UL21 | UL21 [41] | टेग्युमेंट प्रोटीन | US2 | US2 [76] | अज्ञात | ||
UL22 | ग्लाइकोप्रोटीन H [42] | पृष्ठ एवं झिल्ली | US3 | US3 [43] | सेराइन-थ्रियोनाइन प्रोटीन काइनेज़ | ||
UL23 | थाइमिडाइन काइनेज़ [44] | DNA प्रतिकृति का परिधीय | US4 | ग्लाइकोप्रोटीन G [45] | पृष्ठ एवं झिल्ली | ||
UL24 | UL24 [46] | अज्ञात | US5 | ग्लाइकोप्रोटीन J [47] | पृष्ठ एवं झिल्ली | ||
UL25 | UL25 [48] | DNA का प्रोसेसिंग तथा पैकिज़िंग | US6 | ग्लाइकोप्रोटीन D [49] | पृष्ठ एवं झिल्ली | ||
UL26 | P40; VP24; VP22A [50] | कैप्सिड प्रोटीन | US7 | ग्लाइकोप्रोटीन I [51] | पृष्ठ एवं झिल्ली | ||
UL27 | ग्लाइकोप्रोटीन B [52] | पृष्ठ एवं झिल्ली | US8 | ग्लाइकोप्रोटीन E [53] | पृष्ठ एवं झिल्ली | ||
UL28 | ICP18.5 [54] | DNA का प्रोसेसिंग तथा पैकिज़िंग | US9 | US9 [55] | टेग्युमेंट प्रोटीन | ||
UL29 | UL29 [56] | मुख्य DNA-संयोजी प्रोटीन | US10 | US10 [57] | कैप्सिड/टेग्युमेंट प्रोटीन | ||
UL30 | DNA पोलिमेरेज़ [58] | DNA प्रतिकृति | US11 | US11; Vmw21 [59] | DNA तथा RNA का संयोजन करता है | ||
UL31 | UL31 [60] | केन्द्रक आधात्री प्रोटीन | US12 | ICP47; IE12 [61] | प्रतिजन का TAP के साथ संयोजन को रोककर MHC वर्ग I मार्ग को अवरुद्ध करता है | ||
UL32 | UL32 [97] | एनवेलप ग्लाइकोप्रोटीन | RS1 | ICP4; IE175 [62] | जीन प्रतिकृति को सक्र्य करता है | ||
UL33 | UL33 [63] | DNA का प्रोसेसिंग तथा पैकिज़िंग | ICP0 | ICP0; IE110; α0 [64] | E3 युबिक्विटीन लाइगेज़ जो विषाणु के जीन प्रतिलिपिकरण को सक्रिय करता है और इंटरफेरॉन रेस्पोंज़ को प्रभावहीन कर देता है। | ||
UL34 | UL34 [65] | आंतरिक कोशिका झिल्ली प्रोटीन | LRP1 | LRP1 [66] | प्रसुप्ति से संबंधित प्रोटीन | ||
UL35 | VP26 [67] | कैप्सिड प्रोटीन | LRP2 | LRP2 [68] | प्रसुप्ति से संबंधित प्रोटीन | ||
UL36 | UL36 [69] | वृहद् टेग्युमेंट प्रोटीन | RL1 | RL1; ICP34.5 [70] | तंत्रिकाविषाक्तता कारक। eIF4a को डि-फॉस्फोराइलेट कर PKR को निष्प्रभावी कर देता है। | ||
UL37 | UL37 [71] | कैप्सिड समूहन | LAT | कोई नहीं [72] | प्रसुप्ति से संबंधित प्रतिकृति |
कोशिका में प्रवेश
HSV का परपोषी की कोशिका में प्रवेश की प्रक्रिया के दौरान अनेक ग्लाइकोप्रोटीनों की, आवरण में बन्द विषाणु के पृष्ठ पर ग्राहियों के साथ, अंतर्क्रिया होती है। विषाणु कण को घेरे रहने वाला आवरण (एनवेलप) जब कोशिका पृष्ठ पर विशिष्ट ग्राहियों के संपर्क में आता है तो परपोषी की कोशिका झिल्ली के साथ संलयित हो जाता है और एक द्वारा अथवा छिद्र का निर्माण करता है जिससे होकर विषाणु परपोषी की कोशिका में प्रवेश करता है।
HSV के प्रवेश के अनुवर्ती चरण अन्य विषाणुओं जैसे ही होते हैं। प्रथम चरण में, विषाणु के पूरक ग्राही और कोशिका पृष्ठ द्वारा विषाणु और कोशिका झिल्लियों को एक दूसरे के संपर्क में लाया जाता है। मध्यवर्ती चरण में, दोनों झिल्लियों का आपस में विलय हो जाता है और हेमिफ्यूज़न चरण का निर्माण होता है। अंतत:, एक स्थाई प्रवेश रंध्र निर्मित होता है जिससे होकर विषाणु के आवरण के अन्दर के पदार्थ परपोषी की कोशिका में प्रविष्ट होता है।[13] विसर्पिका विषाणु की स्थिति में, आरंभिक अंतर्क्रिया तब होती है जब विषाणु आवरण का ग्लाइकोप्रोटीन जिसे ग्लाइकोप्रोटीन C (gC) कहते हैं कोशिका पृष्ठ के कण जिसे हेपैरन सल्फेट (heparan sulfate) कहते हैं, के साथ जुड़ जाता है। एक अन्य ग्लाइकोप्रोटीन जिसे ग्लाइकोप्रोटीन D (gD) कहते हैं विशेष रूप से तीन[मृत कड़ियाँ] ज्ञात प्रवेश ग्राहियों में से एक के साथ जुड़ जाता है। इनमें शामिल हैं विसर्पिका विषाणु प्रवेश मध्यस्थ (HVEM), नेक्टिन-1 तथा 3-O सल्फेट हेपैरन सल्फेट. ग्राही द्वारा परपोषी कोशिका के साथ एक सबल और स्थिर संयोजन प्रदान किया जाता है। इन अंतर्क्रियाओं के परिणामस्वरूप झिल्ली के पृष्ठ एक दूसरे के निकट आ जाते हैं और विषाणु के आवरण में उपस्थित अन्य ग्लाइकोप्रोटीनों को कोशिका पृष्ठ के अन्य अणुओं के साथ अंतर्क्रिया करने का अवसर मिलता है। HVEM के साथ संयुक्त हो जाने पर gD द्वारा अपना विन्यास बदल लिया जाता है और विषाणु के ग्लाइकोप्रोटीन H (gH) तथा L (gL) के साथ इसकी अंतर्क्रिया होती है और एक संकुल का निर्माण होता है। इन झिल्ली प्रोटीनों की अंतर्क्रिया के परिणामस्वरूप हेमीफ्य़ूज़न चरण का आरंभ होता है। इसके बाद, gB की gH/gL संकुल के साथ अंतर्क्रिया के फलस्वरूप विषाणु कैप्सिड के लिए एक प्रवेश रंध्र का निर्माण होता है।[13] परपोषी की कोशिका के पृष्ठ पर ग्लाइकोप्रोटीन B की ग्लाइकोसेमिनोग्लाइकैन (glycosaminoglycans) के साथ अंतर्क्रिया होती है।
आनुवंशिक टीका
विषाणु कैप्सिड के कोशिकीय कोशिकाद्रव्य में प्रवेश करने के बाद यह कोशिकीय केंद्रक में हस्तांतरित कर दिया जाता है। केंद्रक पर स्थित केंद्रक प्रवेश छिद्र (nuclear entry pore) से संलग्न होने के बाद, कैप्सिड पोर्टल के जरिए कैप्सिड अपनी DNA सामग्री अस्वीकार कर देता है। कैप्सिड पोर्टल का निर्माण पोर्टल प्रोटीन के 12 प्रतियों, UL6 से होता है, जो एक रिंग के रूप में व्यवस्थित रहता है; जिसमें एमीनो अम्ल का ल्युसिन ज़िपर क्रम समाहित होता है, जो उन्हें एक-दूसरे से चिपकने की अनुमति देता है।[14] प्रत्येक आइकोसैहेड्रल कैप्सिड (icosahedral capsid) में एक एकल पोर्टल होता है, जो एक शीर्ष पर स्थित रहता है।[15][16] DNA, कैप्सिड से एक एकल रैखिक खंड में बाहर निकलता है[17].
प्रतिरक्षी अपवंचन
HSV, कोशिका सतह पर उपस्थित प्रतिजन के MHC वर्ग I के प्रतिरक्षी तंत्र की उपस्थिति के साथ इंटरफेस के जरिए अपवंचित हो जाता है। यह HSV द्वारा ICP-47 के स्राव से प्रेरित TAP परिवाहक के अवरोधन के जरिए संपन्न होता है।[18] TAP, कोशिका सतह पर CD8+ CTLs द्वारा पहचाने जाने हेतु गॉल्जी उपकरण होकर परिवहित किए जाने से पूर्व, MHC वर्ग I अणु की अखंडता को बनाए रखता है। CTL हेतु साइटोसोलिक प्रोटीन के अभिग्रहण को रोककर, ICP-47 इस अखंडता को अव्यवस्थित करता है और इस प्रकार CTL विनाश से बच निकलता है।
प्रतिकृति
किसी कोशिका के संक्रमण के पश्चात, त्वरित आरंभिक (इमीडिएट-अर्ली), आरंभिक (अर्ली) तथा विलंबित (लेट) नामक विसर्पिका विषाणु प्रोटीनों का निर्माण होता है। विसर्पिका विषाणु कुल के एक अन्य सदस्य, कैपोसी सार्कोमा-संबद्ध विसर्पिका विषाणु (Kaposi's sarcoma-associated herpesvirus) पर प्रवाह साइटोमीट्री के प्रयोग द्वारा किए शोध से एक अतिरिक्त अपघट्य चरण, डिलेड-लेट की संभावना का संकेत मिलता है।[19] अपघट्य संक्रमण के ये चरण, विशेषकर लेट लाइटिक, विलंबता चरण से भिन्न होता है। HSV-1 की स्थिति में विलम्बता के दौरान कोई प्रोटीन उत्पाद नहीं मिलता, जबकि वे अपघट्य चक्र के दौरान देखे जाते हैं।
आरंभिक प्रतिलिपीकृत प्रोटीनों का उपयोग विषाणु के आनुवंशिक प्रतिकृति के नियंत्रण में होता है। कोशिका में प्रवेश करने पर, एक α-TIF प्रोटीन विषाणु कण से जुड़ता है तथा त्वरित-आरंभिक प्रतिलिपी में मदद करता है। वायरन होस्ट शटऑफ प्रोटीन (VHS or UL41), विषाणु प्रतिकृति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।[11] यह एंजाइम मेजबान में प्रोटीन के संश्लेषण को रोकता है, मेजबान mRNA को विखंडित करता है, विषाणु प्रतिकृति में मदद करता है, तथा विषाणु प्रोटीन की आनुवंशिक अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है। विषाणु जीनोम शीघ्र ही केंद्रक की ओर गमन करता है, पर VHS प्रोटीन कोशिकाद्रव्य में ही रहता है।[20][21]
विलंबित प्रोटीनों का प्रयोग कैप्सिड के निर्माण में होता है तथा ये विषाणु की सतह के अभिग्राहक होते हैं। जीनोम, कोर तथा कैप्सिड समेत विषाणु कणों की पैकेजिंग कोशिका के केंद्रक में होती है। यहां विषाणु जीनोम के कंकेटेमर (concatemers) विदलन द्वारा पृथक कर दिए जाते हैं तथा पूर्व-निर्मित कैप्सिड पर स्थित हो जाते हैं। HSV-1 में प्राथमिक तथा द्वितीय एनवेलपमेंट की एक प्रक्रिया होती है। प्राथमिक एनवेलप की प्राप्ति कोशिका की आंतरिक झिल्ली में मुकुलन द्वारा होती है। यह तब बाह्य कोशिकीय झिल्ली के साथ जुड़ता है, जहां कोशिकाद्रव्य में नग्न कैप्सिड मुक्त होता है। विषाणु अपना अंतिम एनवेलप की प्राप्ति कोशिकाद्रव्यी रिक्तिकाओं के मुकुलन द्वारा प्राप्त करती है।[22]
प्रसुप्त संक्रमण
HSVs एक सुप्त किंतु निरंतर रूप में मौजूद रहता है, जिसे प्रसुप्त संक्रमण कहते हैं, विशेषकर तंत्रिकीय गंडिका (गैंग्लिया) में.[1] HSV-1 प्रायः ट्रायजेमिनल गैंग्लिया को संक्रमित करता है, जबकि HSV-2 सैक्रल गैंग्लिया को संक्रमित करता है, पर यह पृथक्करण संपूर्ण नहीं होता। किसी कोशिका के प्रसुप्त संक्रमण के दौरान HSVs, लेटेंसी एसोसिएटेड ट्रांसक्रिप्ट (LAT) RNA से जुड़ी प्रसुप्तावस्था को अभिव्यक्त करता है। LAT को मेज़बान कोशिका के नियंत्रक के रूप में जाना जाता है तथा यह कोशिका की प्राकृतिक मृत्यु क्रियाविधियों में हस्तक्षेप करता है। मेजबान कोशिकाओं को बरकरार करते हुए, LAT अभिव्यक्ति विषाणुओं का एक भंडारण स्थल संरक्षित करता है, जो उन्हें अगले संक्रमण के लिए पुनरावृत्ति की अनुमति देता है।
तंत्रिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन विसर्पिका विषाणु DNA के साथ बंध सकता है तथा प्रसुप्तावस्था को नियंत्रित करता है। विसर्पिका विषाणु DNA में एक प्रोटीन ICP4 के लिए एक जीन समाहित रहता है, जो HSV-1 में अपघट्य संक्रमण से संबद्ध होता है।[23] ICP4 के जीन के चारों ओर घिरे तत्त्व एक प्रोटीन के साथ बंधते हैं, जिसे मानव तंत्रिकीय प्रोटीन, ‘न्युरोनल रेस्ट्रिक्टिव साइलेंसिंग फैक्टर’ (NRSF) या ‘ह्युमैन रिप्रेसर एलीमेंट साइलेंसिंग ट्रांस्क्रिप्शन फैक्टर’ (REST) कहते हैं। विषाणु DNA तत्त्वों के साथ बंधने पर, इस जीन से प्रतिलिपी की पहल को रोकने के लिए ICP4 जीन क्रम के ऊपर हिस्टोन डीएसीटालाइज़ेशन होता है, जिससे अपघट्य चक्र में शामिल अन्य विषाणु की प्रतिलिपी रुक जाती है।[23][24] अन्य HSV प्रोटीन ICP4 प्रोटीन संश्लेषण के निषेध को मुक्त करता है। ICP0, ICP4 जीन से NRSF को अपघटित करता है और इस प्रकार विषाणु DNA को निष्क्रिय बनाता है।[25]
अन्य बीमारियों, जैसे जुकाम तथा इंफ्लुएंजा, दाद, भावनात्मक तथा शारीरिक तनाव, तेज धूप का संपर्क, जठरीय परेशानियां या चोट एवं मासिक-धर्म द्वारा विषाणु को पुनःसक्रिय किया जा सकता है।
उपचार तथा टीका विकास
विसर्पिका सिम्प्लेक्स विषाणु के उपचार हेतु अधिक जानकारी के लिए विसर्पिका सिम्प्लेक्स देखें।
विसर्पिका विषाणु जीवन भर के लिए संक्रमण उत्पन्न करता है तथा विषाणु को वर्तमान में शरीर से उन्मूलित नहीं किया जा सकता. उपचार में प्रायः शामिल हैं सामान्य-उद्देश्य वाली विषाणुरोधी दवाइयां जो विषाणु प्रतिकृति में हद्तक्षेप करती हैं, जिससे प्रकोप से संबंधित नुकसान की शारीरिक गंभीरता कम होती है तथा अन्य व्यक्तियों में संचरण की संभावना कम हो जाती है। कमजोर आबादी वाले रोगियों के अध्ययन में यह संकेत मिला कि एसाइक्लोविर, वैलासाइक्लोविर जैसे विषाणुरोधियों के दैनिक प्रयोग से HSV-2 की 60-80% तक कमी हो सकती है तथा HSV-2 के संचरण का खतरा आधा हो सकता है।[4]
प्रयोगशाला शोध ने संकेत दिया है कि यौन विसर्पिका के लिए घृत कुमारी (अलो-वेरा) प्रभावी हो सकती है।[26]
टीके पर शोध जारी है। एक विकासवादी प्राचीन संबंध के दौरान मानव मेजबानों के प्रति HSVs के अनुकूलनों से अब तक एक प्रभावी टीके के विकास के प्रयासों को झटका लगा है।[4] वर्तमान समय में विकसित किया जा रहा एक सबसे उल्लेखनीय टीका है इम्म्युनो VEXHSV2, जो Biovex से निर्मित है।[27]
अल्झाइमर रोग के साथ संबंध
HSV-1 तथा अल्झाइमर रोग के साथ एक संभावित संबंध का वर्ष 1979 में पता लगाया गया।[28] कुछ जीन विविधता (APOE-एप्साइलन4 एलील कैरियर) की उपस्थिति में HSV-1 तंत्रिका तंत्र को क्षतिग्रस्त करता पाया गया है तथा यह व्यक्ति में अल्झाइमर रोग होने की संभावना को बढ़ाता है। विषाणु लाइपोप्रोटीन के घटकों तथा अभिग्राहकों के साथ अंतःक्रिया करता है, जिससे अल्झाइमर रोग उत्पन्न हो सकता है।[29] यह अनुसंधान HSVs को अल्झाइमर से सर्वाधिक स्पष्ट रूप से जुड़ा रोगाणु के रूप में मानता है।[30] जीन अलील की उपस्थिति के बिना HSV-1 किसी प्रकार की तंत्रिकीय क्षति नहीं करता या अल्झाइमर के खतरे को नहीं बढ़ाता.[31]
सन्दर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
- कोल्ड सोर्स पर मायो क्लिनिक
- जेनिटल हर्पेस - कनाडा के सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी
- ब्रिटेन जेनिटल हर्पेस की संसाधन साइट
- एनएचएस (NHS) स्वास्थ्य विश्वकोश - कोल्ड सोर्स के बारे में जानकारी
- एचएसवी-1 और -2 के बीच मतभेदों पर अमेरिकी सामाजिक स्वास्थ्य संघ के लेख
- कोल्ड सोर वायरस का रहस्य खुला बीबीसी न्यूज़
- Herpes simplex: Host viral protein interactions: A database of HSV-1 interacting host proteins