विश्वज्ञानकोश
विश्वज्ञानकोश, विश्वकोश या ज्ञानकोश (अंग्रेज़ी: encyclopedia) ऐसी पुस्तक को कहते हैं जिसमें विश्वभर की तरह तरह की जानने लायक बातों को समावेश होता है। विश्वकोश का अर्थ है विश्व के समस्त ज्ञान का भंडार। अत: विश्वकोश वह कृति है जिसमें ज्ञान की सभी शाखाओं का सन्निवेश होता है। इसमें वर्णानुक्रमिक रूप में व्यवस्थित अन्यान्य विषयों पर संक्षिप्त किंतु तथ्यपूर्ण निबंधों का संकलन रहता है[1]। यह संसार के समस्त सिद्धांतों की पाठ्यसामग्री है। विश्वकोश अंग्रेजी शब्द "इनसाइक्लोपीडिया" का समानार्थी है, जो ग्रीक शब्द इनसाइक्लियॉस (एन = ए सर्किल तथा पीडिया = एजुकेशन) से निर्मित हुआ है। इसका अर्थ शिक्षा की परिधि अर्थात् निर्देश का सामान्य पाठ्यविषय है।
इस किस्म की बातें अनंत है, इस लिये किसी भी विश्वज्ञानकोश को कभी 'पूरा हुआ' घोषित नहीं किया जा सकता। विश्वज्ञानकोश में सभी विषयों के लेख हो सकते हैं किन्तु एक विषय वाले विश्वकोश भी होते हैं। विश्वकोष में उपविषय (टापिक), उस भाषा के वर्णक्रम के अनुसार व्यवस्थित किये गये होते हैं[2]।
पहले विश्वकोष एक या अनेक खण्डों में पुस्तक के रूप में ही आते थे। कम्प्यूटर के प्रादुर्भाव से अब सीडी आदि के रूप में भी तरह-तरह के विश्वकोष उपलब्ध हैं। अनेक विश्वकोश अन्तरजाल (इंटरनेट) पर 'ऑनलाइन' भी उपलब्ध हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से विश्वकोषों का विकास शब्दकोषों (डिकशनरी) से हुआ है। ज्ञान के विकास के साथ ऐसा अनुभव हुआ कि शब्दों का अर्थ एवं उनकी परिभाषा दे देने मात्र से उन विषयों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं मिलती, तो विश्वकोषों का आविर्भाव हुआ। आज भी किसी विषय को समर्पित विश्वकोष को शब्दकोश [3]भी कहा जाता है; जैसे 'सूक्ष्मजीवविज्ञान का शब्दकोश' आदि।
उपयोगिता
विश्वकोश का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में विकीर्ण कला एवं विज्ञान के समस्त ज्ञान को संकलित कर उसे व्यवस्थित रूप में सामान्य जन के उपयोगार्थ उपस्थित करना तथा भविष्य के लिए सुरक्षित रखना है। इसमें समाविष्ट भूतकाल की ज्ञानविज्ञान की उपलब्धियाँ मानव सभ्यता के विकास के लिए साधन प्रस्तुत करती हैं। यह ज्ञानराशि मनुष्य तथा समाज के कार्यव्यापार की संचित पूँजी होती है। आधुनिक शिक्षा के विश्वपर्यवसायी स्वरूप ने शिक्षार्थियों एवं ज्ञानार्थियों के लिए संदर्भग्रंथों का व्यवहार अनिवार्य बना दिया है। विश्वकोश में संपूर्ण संदर्भों का सार निहित होता है। इसलिए आधुनिक युग में इसकी उपयोगिता असीमित हो गई है। इसकी सर्वार्थिक उपादेयता की प्रथम अनिवार्यता इसकी बोधगम्यता है। इसमें संकलित जटिलतम विषय से संबंधित निबंध भी इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि वह सामान्य पाठक की क्षमता एवं उसके बौद्धिक स्तर के उपयुक्त तथा बिना किसी प्रकार की सहायता के बोधगम्य हो जाता है। उत्तम विश्वकोश ज्ञान के मानवीयकरण का माध्यम है।
इतिहास
प्राचीन अथवा मध्ययुगीन निबंधकारों द्वारा विश्वकोश ('इनसाइक्लोपीडिया') शब्द उनकी कृतियों के नामकरण में प्रयुक्त नहीं होता था पर उनका स्वरूप विश्वकोशीय ही था। इनकी विशिष्टता यह थी कि ये लेखक विशेष की कृति थे। अत: ये वस्तुपरक कम, व्यष्टिपरक अधिक थे तथा लेखक के ज्ञान, क्षमता एवं अभिरुचि द्वारा सीमित होते थे। विषयों के प्रस्तुतीकरण और व्याख्या पर उने व्यक्तिगत दृष्टिकोणों की स्पष्ट छाप रहती थी। ये संदर्भग्रंथ नहीं वरन् अन्यान्य विषयों के अध्ययन हेतु प्रयुक्त निर्देशक निबंधसंग्रह थे।
विश्व की सबसे पुरातन विश्वकोशीय रचना अफ्रीकावासी मार्सियनस मिस फेलिक्स कॉपेला की सटोराअ सटीरिक है। उसने पाँचवीं शती के आरंभकाल में गद्य तथा पद्य में इसका प्रणयन किया। यह कृति मध्ययुग में शिक्षा का आदर्शागार समझी जाती थी। मध्ययुग तक ऐसी अन्यान्य कृतियों का सर्जन हुआ, पर वे प्राय: एकांगी थीं और उनका क्षेत्र सीमित था। उनमें त्रुटियों एवं विसंगतियों का बाहुल्य रहता था। इस युग को सर्वश्रेष्ठ कृति व्यूविअस के विसेंट का ग्रंथ "बिब्लियोथेका मंडी" या "स्पेकुलस मेजस" था। यह तेरहवीं शती के मध्यकालीन ज्ञान का महान संग्रह था। उसने इस ग्रंथ में मध्ययुग की अनेक कृतियों को सुरक्षित किया। यह कृति अनेक विलुप्त आकर रचनाओं तथा अन्यान्य ग्रंथों की मूल्यवान पाठ्यसामग्रियों का सार प्रदान करती है[4][5]।
प्राचीन ग्रीस में स्प्युसिपस तथा अरस्तू ने महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की थी। स्प्युसिपस ने पशुओं तथा वनस्पतियों का विश्वकोशीय वर्गीकरण किया तथा अरस्तू ने अपने शिष्यों के उपयोग के लिए अपनी पीढ़ी के उपलब्ध ज्ञान एवं विचारों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने के लिए अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया। इस युग में प्रणीत विश्वकोशीय ग्रंथों में प्राचीन रोमवासी प्लिनी की कृति "नैचुरल हिस्ट्री" हमारी विश्वकोश की आधुनिक अवधारणा के अधिक निकट है। यह मध्य युग का उच्च आधिकाधिक ग्रंथ है। यह 37 खंडों एवं 2493 अध्यायों में विभक्त है जिसमें ग्रीकों के विश्वकोश के सभी विषयों का सन्निवेश है। प्लिनी के अनुसार इसमें 100 लेखकों के 2000 ग्रंथों से संगृहीत 20,000 तथ्यों का समावेश है। सन् 1536 से पूर्व इसके 43 संस्करण प्रकाशित हो चुके थे। इस युग की एक प्रसिद्ध कृति फ्रांसीसी भाषा में 19 खंडों में प्रणीत (सन् 1360) बार्थोलोमिव द ग्लैंविल का ग्रंथ "डी प्रॉप्रिएटैटिबस रेरम" था। सन् 1495 में इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ तथा सन् 1500 तक इसके 15 संस्करण निकल चुके थे।
जॉकियस फाटिअस रिंजल बर्जियस (1541) एवं हंगरी के काउंट पॉल्स स्कैलिसस द लिका (1599) की कृतियाँ सर्वप्रथम 'इंसाइक्लोपीडिया' के नाम से अभिहित हुई। जोहान हेनरिच आस्टेड ने अना विश्वकोश 'इंसाइक्लोपीडिया सेप्टेम टॉमिस डिस्टिक्टा' सन् 1630 में प्रकाशित किया जो इस नाम को संपूर्णत: चरितार्थ करता था। इसमें प्रमुख विद्वानों एवं विभिन्न कलाओं से संबंधित अन्यान्य विषयों का समावेश है। फ्रांस के शाही इतिहासकार जीन डी मैग्नन का विश्वकोश "लर्रे साइंस युनिवर्स" के नाम से 10 खंडों में प्रकाशित हुआ था। यह ईश्वर की प्रकृति से प्रारंभ होकर मनुष्य के पतन के इतिहास तक समाप्त होता है। लुइस मोरेरी ने 1674 में एक विश्वकोश की रचना की जिसमें इतिहास, वंशानुसंक्रमण तथा जीवनचरित् संबंधी निबंधों का समावेश था। सन् 1759 तक इसके 20 संस्करण प्रकाशित हो चुके थे। इटीन चाविन की सन् 17113 में प्रकाशित महान कृति "कार्टेजिनयन" दर्शन का कोश है। फ्रेंच एकेडेमी द्वारा फ्रेंच भाषा का महान शब्दकोश सन् 1694 में प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात् कला और विज्ञान के शब्दकोशों की एक शृंखला बन गई। विसेंजो मेरिया कोरोनेली ने सन् 1701 में इटैलियन भाषा में एक वर्णानुक्रमिक विश्वकोश "बिब्लियोटेका युनिवर्सेल सैक्रोप्रोफाना" का प्रकाशन प्रारंभ किया। 45 खंडों में प्रकाश्य इस विश्वकोश के 7 ही खंड प्रकाशित हो सके।
अंग्रेजी भाषा में प्रथम विश्वकोश ऐन युनिवर्सल इंग्लिश डिक्शनरी ऑव आर्ट्स ऐंड साइंस की रचना जॉन हैरिस ने सन् 1704 में की। सन् 1710 में इसका द्वितीय खंड प्रकाशित हुआ। इसका प्रमुख भाग गणित एवं ज्योतिष से संबंधित था। हैंबर्ग में जोहानम के रेक्टर जोहान हुब्नर के नाम पर दो शब्दकोश क्रमश: सन् 1704 और 1710 में प्रकाशित हुए। बाद में इनके अनेक संस्कण निकले। इफेम चैंबर्स ने सन् 1728 में अपनी साइक्लोपीडिया दो खंडों में प्रकाशित की। उसने प्रत्येक विषय से संबंधित विकीर्ण तथ्यों को समायोजित करने का प्रयास किया। हर निबंध में चैंबर्स ने संबंधित विषय का संदर्भ दिया है। सन् 1748-49 में इसका इटैलियन अनुवाद प्रकाशित हुआ। चैंबर्स द्वारा संकलित एवं व्यवस्थित 7 नए खंडों की सामग्री का संपादन कर डॉ॰ जॉनहिल ने पूरक ग्रंथ सन् 1753 में प्रकाशित किया। इसका संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण (1778-88) अब्राहम रीज़ द्वारा प्रकाशित हुआ। लाइपजिग के एक पुस्तकविक्रेता जोहान हेनरिच जेड्लर ने एक बृहद् एवं सर्वाधिक व्यापक विश्वकोश "जेड्लर्स युनिवर्सल लेक्सिकन" प्रकाशित किया। इसमें सात सुयोग्य संपादकों की सेवाएँ प्राप्त की गई थीं और एक विषय के सभी निबंध एक ही व्यक्ति द्वारा संपादित किए गए थे। सन् 1750 तक इसके 64 खंड प्रकाशित हुआ तथा सन् 1751 से 54 के मध्य 4 पूरक खंड निकले।
bइनसाइक्लोपीदी (फ्रेंच इंसाइक्लोपीडिया) अठारहवीं शती की महत्तम साहित्यिक उपलब्धि है। इसकी रचना "चैंबर्स साइक्लोपीडिया" के फ्रेंच अनुवाद के रूप में अंग्रेज विद्वान् जॉन मिल्स द्वारा उसके फ्रांस आवासकाल में प्रारंभ हुई, जिसे उसने मॉटफ़ी सेल्स की सहायता से सन् 1745 में समाप्त किया। पर वह इसे प्रकाशित न कर सका और इंग्लैंड वापस चला गया। इसके संपादन हेतु एक-एक कर कई विद्वानों की सेवाएँ प्राप्त की गईं और अनेक संघर्षों के पश्चात् यह विश्वकोश प्रकाशित हो सका। यह मात्र संदर्भ ग्रंथ नहीं था; यह निर्देश भी प्रदान करता था। यह आस्था और अनास्था का विचित्र संगम था। इसने उस युग के सर्वाधिक शक्तिसंपन्न चर्च और शासन पर प्रहार किया। संभवत: अन्य कोई ऐसा विश्वकोश नहीं है, जिसे इतना राजनीतिक महत्व प्राप्त हो और जिसने किसी देश के इतिहास और साहित्य पर क्रांतिकारी प्रभाव डाला हो। पर इन विशिष्टताओं के होते हुए भी यह विश्वकोश उच्च कोटि की कृति नहीं है। इसमें स्थल-स्थल पर त्रुटियाँ एवं विसंगतियाँ थीं। यह लगभग समान अनुपात में उच्च और निम्न कोटि के निबंधों का मिश्रण था। इस विश्वकोश की कटु आलोचनाएँ हुई।
इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका, स्कॉटलैंड की एक संस्था द्वारा एडिनवर्ग से सन् 1771 में तीन खंडों में प्रकाशित हुई। तब से इसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। प्रत्येक नवीन संस्करण में विशद संशोधन परिवर्धन किए गए। इसका चतुर्दश संस्करण सन् 1929 में 23 खंडों में प्रकाशित हुअ। सन् 1933 में प्रकाशकों ने वार्षिक प्रकाशन और निरंतर परिवर्धन की नीति निर्धारित की और घोषणा की कि भविष्य के प्रकाशनों को नवीन संस्करण की संज्ञा नहीं दी जाएगी। इसकी गणना विश्व के महान विश्वकोशों में है तथा इसका संदर्भ ग्रंथ के रूप में अन्यान्य देशों में उपयोग किया जाता है।
अमरीका में अनेक विश्वकोश प्रकाशित हुए, पर वहाँ भी प्रमुख ख्याति इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका को ही प्राप्त है। जॉर्ज रिप्ले एवं चार्ल्स एडर्सन डाना ने "न्यू अमरीकन साक्लोपीडिया" (1858-63) 16 खंडों में प्रकाशित की। इसका दूसरा संस्करण 1873 से 1876 के मध्य निकला। एल्विन जे. जोंसन का विश्वकोश 'जोंसंस न्यू यूनिवर्सल साइक्लोपीडिया' (1875-77) 4 खंडों में प्रकाशित हुआ, जिसका नया संस्करण 8 खंडों में 1893-95 में प्रकाशित हुआ। फ्रांसिस लीबर ने "इंसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना" का प्रकाशन 1829 में प्रारंभ किया। प्रथम संस्करण के 13 खंड सन् 1833 तक प्रकाशित हुए। सन् 1835 में 14 खंड प्रकाशित किए गए। सन् 1858 में यह पुन: प्रकाशित की गई। सन् 1903-04 में एक नवीन कृति "इंसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना" के नाम से 16 खंडों में प्रकाशित हुई। इसके पश्चात् इस विश्वकोश के अनेक संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण निकले। सन् 1918 में यह 30 खंडों में प्रकाशित हुआ और तब से इसमें निरंतर संशोधन परिवर्धन होता आ रहा है। प्रत्येक शताब्दी के इतिहास का पृथक् वर्णन तथा साहित्य और संगीत की प्रमुख कृतियों पर पृथक् निबंध इस विश्वकोश की विशिष्टताएँ हैं।
ऐसे विश्वकोशों के भी प्रणयन की प्रवृत्ति बढ़ रही है जो किसी विषय विशेष से संबद्ध होते हैं। इनमें एक ही विषय से संबंधित तथ्यों पर स्वतंत्र निबंध होते हैं। यह संकलन संबद्ध विषय का सम्यक् ज्ञान कराने में सक्षम होता है। 'इंसाइक्लोपीडिया ऑव सोशल साइंसेज़' इसी प्रकार का अत्यंत महत्वपूर्ण विश्वकोश है।
भारत में विश्वकोशों की परम्परा
भारतीय वाङ्मय में संदर्भग्रंथों- कोश, अनुक्रमणिका, निबंध, ज्ञानसंकलन आदि की परंपरा बहुत पुरानी है। भारतीय वाङ्मय में संदर्भ ग्रंथों का कभी अभाव नहीं रहा। भारत में पारम्परिक विद्वत्ता के दायरे में महाभारत को सबसे प्राचीन ज्ञानकोश माना गया है। कई विद्वान पुराणों को भी ज्ञानकोश की श्रेणी में रखते हैं। राम अवतार शर्मा जैसे दार्शनिक ने तो अग्निपुराण को स्पष्ट रूप से ज्ञानकोश माना है। इसमें इतने अधिक विषयों का समावेश है कि इसे 'भारतीय संस्कृति का विश्वकोश' कहा जाता है।
इन आग्रहों की उपेक्षा न करते हुए भी यह मानना होगा कि पश्चिमी अर्थों में ज्ञानकोश रचने की परम्परा भारत में अपेक्षाकृत नयी है। इससे पहले संस्कृत साहित्य में कठिन वैदिक शब्दों के संकलन निघण्टु और ईसा पूर्व सातवीं सदी में यास्क और अन्य विद्वानों द्वारा रचित उसके भाष्य निरुक्त की परम्परा मिलती है। इस परम्परा के तहत विभिन्न विषयों के निघण्टु तैयार किये गये जिनमें धन्वंतरि रचित आयुर्वेद का निघण्टु भी शामिल था। इसके बाद संस्कृत और हिंदी में नाममाला कोशों का उद्भव और विकास दिखायी देता है। निघण्टु और निरुक्त के अलावा श्रीधर सेन कृत कोश कल्पतरु, राजा राधाकांत देव बहादुर की 1822 की कृति शब्दकल्पद्रुम, 1873 से 1883 के बीच प्रकाशित तारानाथ भट्टाचार्य वाचस्पति कृत वाचस्पत्यम जैसी रचनाओं को संभवतः ज्ञानकोश की कोटि में रखा जा सकता है। पाँचवीं-छठी से लेकर अट्ठारहवीं सदी तक की अवधि में रचे गये अनगिनत नाममाला कोशों में अमरसिंह द्वारा रचित अमरकोश का शीर्ष स्थान है। कोश रचना के इस पारम्परिक भारतीय उद्यम के केंद्र में शब्द और शब्द-रचना थी। शब्दों के तात्पर्य, उनके विभिन्न रूप, उनके पर्यायवाची, उनके मूल और विकास-प्रक्रिया पर प्रकाश डालने वाले ये कोश ज्ञान-रचना में तो सहायक थे, पर इन्हें ज्ञानकोश की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता था।
बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में आधुनिक अर्थों में ज्ञानकोश रचने का काम शुरू हुआ। काशी की नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा बनवाया गया हिंदी ज्ञानकोश इस सिलिसिले में उल्लेखनीय है। बांग्ला में साहित्य वारिधि और शब्द रत्नाकर की उपाधियों से विभूषित नगेन्द्र नाथ बसु ने एक विशाल ज्ञानकोश तैयार किया। उसी तर्ज़ पर कलकत्ता से ही बसु के अनुभव का लाभ उठाते हुए उन्हें हिंदी में एक विशद ज्ञान-कोश तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। पच्चीस खण्डों का यह ज्ञान-कोश 1917 में छपा। ख़ुद महात्मा गाँधी ने इसे उपयोगी बताते हुए अपनी संस्तुति में लिखा कि यह भारत की ‘लिंगुआ-फ्रैंका’ हिंदी के विकास में सहायक होगा। बसु ने भी इसी पहलू पर ज़ोर देते हुए पहले खण्ड में छपी अपनी छोटी सी भूमिका में उम्मीद जतायी कि जिस भाषा को 'राष्ट्रभाषा' बनाने का यत्न चल रहा है, वह आगे जाकर राष्ट्रभाषा बन ही जाएगी। साथ ही उन्होंने यह भी लिखा कि हिंदी का ज्ञान-कोश बांग्ला का अनुवाद नहीं है, बल्कि मूलतः हिंदी में ही लिखा गया है। इन कोशों के अलावा हरदेव बाहरी रचित प्रसाद साहित्य कोश, प्रेमनारायण टण्डन कृत 'हिन्दी सेवीसंसार' और ज्ञानमंडल द्वारा प्रकाशित साहित्यकोश उल्लेखनीय है।
स्पष्ट है कि ये कोश समाज-विज्ञान से उद्भूत होने वाले विमर्श की आवश्यकताएँ न के बराबर ही पूरी कर सकते थे। इसीलिये आधुनिक विश्वविद्यालयीय शिक्षा की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्वातंत्र्योत्तर भारत में विभिन्न अनुशासनों के अलग-अलग कोश तैयार करने के कई प्रयास हुए। मराठी और ओडिया में भी ज्ञानकोश रचने के उद्यम किये गये। लाला नगेन्द्र कुमार राय ने १९३० के दशक में 'बिबिध रत्नसंग्रह' नाम से ओड़िया विश्वकोश की रचना की। इसका प्रथम प्रकाशन १९३६ में हुआ।[6]
समाज-विज्ञान के विभिन्न अनुशासनों (समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, मानवभूगोल, इतिहास-सामाजिक और पुरातत्त्व-विज्ञान) का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाला हिन्दी का एक कोश श्याम सिंह शशि के प्रधान सम्पादकत्व में 2008 से प्रकाशित होना शुरू हुआ। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुदान से रिसर्च फ़ाउंडेशन का यह पाँच खण्डों का यह प्रकाशन 2011 तक जारी रहा। डॉ॰ शशि की इच्छा तो यह थी कि वे 1930-1935 के बीच प्रकाशित सेलिगमैन और जॉनसन द्वारा सम्पादित बीस खण्डों के विशाल 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ द सोशल साइंसेज़' जैसी एक कृति हिंदी में तैयार करें, लेकिन उन्हें कोश-रचना के लिए धन और बौद्धिक संसाधन जुटाने में बहुत दिक्क़तों का सामना करना पड़ा। उन्होंने पहले खण्ड की भूमिका में इन परेशानियों का ब्योरा दिया है।
पर नगेन्द्रनाथ बसु द्वारा संपादित बंगला विश्वकोश ही भारतीय भाषाओं से प्रणीत प्रथम आधुनिक विश्वकोश है। भारतवर्ष में इस श्रेणी का यह पाहुला ग्रन्थ था जो २७ वर्ष के अथक परिश्रम से अनेक धुरन्धर विद्वानों के सहयोग द्वारा पूर्णता को प्राप्त हुआ। यह सन् 1911 में 22 खंडों में प्रकाशित हुआ। उसी समय उसके प्रकाशकों को सूझ पड़ा कि "जिस हिन्दी भाषा का प्रचार और विस्तार भारत में उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है और जिसे राष्ट्रभाषा बनाने का उद्योग हो रहा है, उसी भारत की भावी राष्ट्रभाषा में ऐसे ग्रन्थ का न होना बड़े दुःख और लज्जा का विषय है"। इसलिये उन्होंने प्रशंसनीय धैर्य का अवलम्बन कर हिन्दी विश्वकोश की नींव तुरन्त डाल दी और उसे पूरा करके छोड़ा। नगेन्द्रनाथ वसु ने ही अनेक हिंदी विद्वानों के सहयोग से हिंदी विश्वकोश की रचना की जो सन् 1916 से 1932 के मध्य 25 खंडों में प्रकाशित हुआ।
जिस समय यह कार्य चल रहा था उसी समय डाक्टर श्रीधर व्यंकटेश केतकर एम. ए. पी. एच. डी. ने एक विश्वकोश मराठी भाषा में रचने का सिलसिला डाला और प्रायः ४० लेखकों की सहायता से बारह वर्ष में पूरा कर दिया। मराठी विश्वकोश महाराष्ट्रीय ज्ञानकोशमंडल द्वारा 23 खंडों में प्रकाशित हुआ। तत्पश्चात उनका इसी ज्ञानसंग्रह को मराठी की पड़ोसी गुजराती भाषा के आवरण में भूषित करने का उत्साह बढ़ा और कार्यारम्भ भी कर दिया गया। डॉ॰ केतकर के निर्देशन में ही इसका गुजराती रूपान्तर प्रकाशित हुआ। परन्तु साथ ही उनके हृदय में वही प्रेरणा उत्पन्न हुई जो बंगाली प्रकाशको के मन में बंगाली विश्वकोश के पूरा करने पर उठी थी। इसलिये उन्होंने तुरन्त ही शुद्ध हिन्दी विश्वकोश के रचना का प्रस्ताव किया जो स्वीकृत सामयिक शैली के अनुसार हो और जिसके बिषय सर्वव्यापी राष्ट्रभाषा के योग्य हों। अद्यपर्य्यन्त जो नवीन आविष्कार हुए हैं, उन सबका समावेश रहे और मराठी, गुजराती और बंगाली लेखकों द्वारा जो भारतवर्ष-विषयक सामग्री छान-बीन के साथ इकट्ठी की गई है उन सबका सार हिंन्दी कोश में सन्निविष्ट हो जावे। हिन्दी ज्ञानकोश की रचना के लिये सैकड़ों लेखक नियुक्त किये गये जो अपने-2 विषय के विशेषज्ञ समझे जाते हैं। इनके लेखों के सम्पादन करने के लिये ३३ धुरन्धर विद्वानों की समिति नियुक्त की गई।
स्वराज प्राप्ति (1947) के बाद भारतीय विद्वानों का ध्यान आधुनिक भाषाओं के साहित्यों के सभी अंगों को पूरा करने की ओर गया और आधुनिक भारतीय भाषाओं में विश्वकोश निर्माण का श्रीगणेश हुआ। स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात् कला एवं विज्ञान की वर्धनशील ज्ञानराशि से भारतीय जनता को लाभान्वित करने के लिए आधुनिक विश्वकोशों के प्रणयन की योजनाएँ बनाई गईं। सन् 1947 में ही एक हजार पृष्ठों के 12 खंडों में प्रकाश्य तेलुगु भाषा के विश्वकोश की योजना निर्मित हुई। तमिल में भी एक विश्वकोश के प्रणयन का कार्य प्रारम्भ हुआ।
इसी क्रम में नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी ने सन् १९५४ में हिन्दी में मौलिक तथा प्रामाणिक विश्वकोश के प्रकाशन का प्रस्ताव भारत सरकार के सम्मुख रखा। इसके लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया और उसकी पहली बैठक ११ फ़रवरी १९५६ में हुई और हिंदी विश्वकोश के निर्माण का कार्य जनवरी १९५७ में प्राम्रभ हुआ।
हिंदी विश्वकोश
राष्ट्रभाषा हिंदी में एक मौलिक एवं प्रामाणिक विश्वकोश के प्रणयन की योजना हिंदी साहित्य के सर्जन में संलग्न नागरीप्रचारिणी सभा, काशी ने तत्कालीन सभापति महामान्य पं॰ गोविंद वल्लभ पंत की प्रेरणा से निर्मित की जो आर्थिक सहायता हेतु भारत सरकार के विचारार्थ सन् 1954 में प्रस्तुत की गई। पूर्व निर्धारित योजनानुसार विश्वकोश 22 लाख रुपए के व्यय से लगभग दस वर्ष की अवधि में एक हजार पृष्ठों के 30 खंडों में प्रकाश्य था। किंतु भारत सरकार ने ऐतदर्थ नियुक्त विशेषज्ञ समिति के सुझाव के अनुसार 500 पृष्ठों के 10 खंडों में ही विश्वकोश को प्रकाशित करने की स्वीकृति दी तथा इस कार्य के संपादन हेतु सहायतार्थ 6.5 लाख रुपए प्रदान करना स्वीकार किया। सभा को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के इस निर्णय को स्वीकार करना पड़ा कि विश्वकोश भारत सरकार का प्रकाशन होगा।
योजना की स्वीकृति के पश्चात् नागरीप्रचारिणी सभा ने जनवरी, 1957 में विश्वकोश के निर्माण का कार्यारंभ किया। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के निर्देशानुसार "विशेषज्ञ समिति" की संस्तुति के अनुसार देश के विश्रुत विद्वानों, विख्यात विचारकों तथा शिक्षा क्षेत्र के अनुभवी प्रशांसकों का एक पचीस सदस्यीय परामर्शमंडल गठित किया गया। सन् 1958 में समस्त उपलब्ध विश्वकोशों एवं संदर्भग्रंथों की सहायता से 70,000 शब्दों की सूची तैयार की गई। इन शब्दों की सम्यक् परीक्षा कर उनमें से विचारार्थ 30,000 शब्दों का चयन किया गया। मार्च, सन् 1959 में प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग भूतपूर्व प्रोफेसर डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा प्रधान संपादक नियुक्त हुए। विश्वकोश का प्रथम खंड लगभग डेढ़ वर्षों की अल्पावधि में ही सन् 1960 में प्रकाशित हुआ।
सन् १९७० तक १२ खंडों में इस विश्वकोश का प्रकाशन कार्य पूरा किया गया। सन् १९७० में विश्वकोश के प्रथम तीन खंड अनुपलब्ध हो गए। इसके नवीन तथा परिवर्धित संस्करण का प्रकाशन किया गया। राजभाषा हिंदी के स्वर्णजयंती वर्ष में राजभाषा विभाग (गृह मंत्रालय) तथा मानवसंसाधन विकास मंत्रालय ने केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा को यह उत्तरदायित्व सौंपा कि हिंदी विश्वकोश इंटरनेट पर पर प्रस्तुत किया जाए। तदनुसार केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा तथा इलेक्ट्रॉनिक अनुसंधान एवं विकास केंद्र, नोएडा के संयुक्त तत्वावधान में तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के संयुक्त वित्तपोषण से हिंदी विश्वकोश को इंटरनेट पर प्रस्तुत करने का कार्य अप्रैल २००० में प्रारम्भ हुआ।
हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश
हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश का निर्माण भारतीय भाषा परिषद और वाणी प्रकाशन के संयुक्त प्रयास से हुआ है। इसका प्रकाशन सन २०१९ में हुआ। ध्यातव्य है कि 1958 से 1965 के बीच धीरेन्द्र वर्मा द्वारा निर्मित ‘हिंदी साहित्य कोश’ करीब पचास साल पुराना हो चुका था। हिंदी साहित्य ज्ञानकोश में 2660 प्रविष्टियाँ हैं। यह 7 खण्डों में 4560 पृष्ठों का ग्रंथ है। इसमें हिंदी साहित्य से सम्बन्धित इतिहास, साहित्य सिद्धान्त आदि के अलावा समाजविज्ञान, धर्म, भारतीय संस्कृति, मानवाधिकार, पौराणिक चरित्र, पर्यावरण, पश्चिमी सिद्धान्तकार, अनुवाद सिद्धान्त, नवजागरण, वैश्विकरण, उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श आदि कुल 32 विषय हैं। ज्ञानकोश में हिंदी राज्यों के अलावा दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्व और अन्य भारतीय क्षेत्रों की भाषाओं-संस्कृतियों से भी परिचय कराने की कोशिश की गई है। इसमें हिंदी क्षेत्र की 48 लोक भाषाओं और कला-संस्कृति पर सामग्री है। भारत भर के लगभग 275 लेखकों ने मेहनत से प्रविष्टियाँ लिखीं और उनके ऐतिहासिक सहयोग से ज्ञानकोश बना।[7]
इस कोश के नाम में सम्मिलित 'साहित्य' शब्द अपने विशद अर्थ में है। इसके अन्तर्गत दर्शन, राजनीति, इतिहास आदि सब समाहित हैं। हिंदी साहित्य ज्ञानकोश की प्रविष्टियों में कोई अन्तिम कथन नहीं है। यह आगे की जानकारियों के लिए मार्ग खोलता है और अपने पाठकों को जिज्ञासु और गतिशील बनाता है।
इक्कीसवीं शताब्दी के विश्वकोष
विश्वकोषों की संरचना कम्प्यूटर के लिये विशेष रूप से उपयुक्त है। इसी लिये अधिकांश विश्वकोष 20वीं सदी के अन्त तक कम्प्यूटरों के लिये उपयुक्त फार्मट (स्वरूप) में आ गये हैं। सीडी-रोम आदि में उपलब्ध विश्वकोषॉम के निम्नलिखित लाभ हैं:
- सस्ते में तैयार किये जा सकते हैं।
- एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में सुविधा (पोर्टेबल)
- इनमें कोई शब्द या लेख खोजने की सुविधा भी पुस्तक-रूप विश्वकोषों की तुलना में बहुत उन्नत एवं सरल होती है।
- इनमें ऐसी विशेषताएँ एवं खूबियाँ होती हैं जिन्हे पुस्तकों में देना सम्भव नहीं है। जैसे - एनिमेशन, श्रव्य (आडियो), विडियो, हाइपलिंकिंग आदि।
- इनकी सामग्री समय के साथ आसानी से परिवर्तनशील (dynamic) है। उदाहरण के लिये विकिपीडिया में नये से नये विषय पर भी शीघ्र लेख प्रकट हो सकता है। जबकि पुस्तक रूपी विश्वकोष में कोई नया विषय जोडने या कोई सुधार करने के लिये उसके अगले संस्करण तक प्रतीक्षा करनी पडती है।
सन्दर्भ
- ↑ "encyclopaedia". Oxford English Dictionary (OED.com), ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. मूल (online) से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि February 18, 2012.
- ↑ Hartmann, R. R. K.; James, Gregory; James, Gregory (1998). Dictionary of Lexicography. Routledge. पृ॰ 48. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-415-14143-5. अभिगमन तिथि July 27, 2010.
- ↑ "Encyclopedia". मूल से August 3, 2007 को पुरालेखित. Glossary of Library Terms. Riverside City College, Digital Library/Learning Resource Center. Retrieved on: November 17, 2007.
- ↑ Roest, Bert (1997). "Compilation as Theme and Praxis in Franciscan Universal Chronicles". In Peter Binkley. Pre-Modern Encyclopaedic Texts: Proceedings of the Second Comers Congress, Groningen, 1 – July 4, 1996. BRILL. pp. 213. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 90-04-10830-0.
- ↑ Carey, Sorcha (2003). "Two Strategies of Encyclopaedism". Pliny's Catalogue of Culture: Art and Empire in the Natural History. Oxford University Press. पृ॰ 17. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-925913-5.
- ↑ Lala Nagendra Kumar Ray’s Oriya Encyclopaedia,Bibidha Ratna Sangraha
- ↑ "पचास साल बाद फिर छपा 'हिन्दी साहित्य ज्ञान कोश', प्रति राष्ट्रपति कोविंद को भेंट". मूल से 19 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितंबर 2019.
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- हिन्दी विश्वकोश, पहला खण्ड (पुस्तक रूप में स्कैन किया हुआ)
- ज्ञान कोश भाग १ (हिन्दी विकिस्रोत) (श्रीधर व्यंकटेश केतकर)
- भारतकोश - आनलाइन ज्ञान का हिन्दी महासागर
- समाज-विज्ञान विश्वकोश (हिन्दी समय)
- जैनकोश
- आरम्भिक विज्ञान कोश (गूगल पुस्तक ; लेखक - गोविन्द झा)
- चित्रमय बाल कोश (गूगल पुस्तक; लेखक - भोलानाथ तिवारी)
- हिन्दी बाल ज्ञान-विज्ञान एनसाइक्लोपीडिया (पेड़-पौधे) (गूगल पुस्तक; सम्पादक - पुस्तकायन)
- सामाजिक विज्ञान विश्वकोश (गूगल पुस्तक ; लेखक - शिवगोपाल मिश्र)
- सामान्य विज्ञान विश्वकोश (गूगल पुस्तक ; लेखक - शिवगोपाल मिश्र)
- नूतन भौतिकी कोश (गूगल पुस्तक ; लेखक - शिवगोपाल मिश्र)
- सामाजिक विज्ञान हिन्दी विश्वकोश, भाग - १ (अ) (गूगल पुस्तक ; लेखक - श्याम सिंह शशि)
- सामाजिक विज्ञान हिन्दी विश्वकोश, भाग - २ (आ) (गूगल पुस्तक ; लेखक - श्याम सिंह शशि)
- बेदी वनस्पति कोश ; भाग - १ (गूगल पुस्तक ; लेखक - रामेश बेदी)
- सामान्य ज्ञान-विज्ञान कोश (गूगल पुस्तक ; लेखक - श्रवण कुमार)
- What makes a scholarly encyclopedia?
- Errors and inconsistencies in several printed reference books and encyclopedias
- Digital encyclopedias put the world at your fingertips - CNET article
- Librarians' Internet Index - a list of encyclopedias online
- Wikipedia Selection for schools
अन्य भारतीय भाषाओं के विश्वकोश
- गुजराती का विस्तृत विश्वकोश
- भगवद्गोमण्डल - गुजराती भाषा का महान विश्वकोष
- आनलाइन मराठी विश्वकोश
- बलई_डॉट_कॉम - आनलाइन मराठी विश्वकोश, प्रश्नकोश एवं शब्दकोश
- महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश (मराठी का पहला विश्वकोश)
- बंगीय साहित्य परिषद द्वारा निर्मित भारतकोश का संक्षिप्त रूप (बांग्ला विश्वज्ञानकोश ; प्रयुक्त फॉण्ट : हरफ)
- बांग्लापीडिया (BanglapediaII फॉण्ट में)
- पंजाबी (गुरुमुखी) का महानकोश
- महानकोश, डाउनलोड के लिये (२३ मेगाबाइट)
- कन्नड विश्वकोश (परिचय)