विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987
समान अवसर के आधार न्याय सुलभ कराने को सुनिश्चित करने के लिये भारत सरकार द्वारा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 पारित किया गया जिसके द्वारा केन्द्र में राष्ट्रीय विधिक सेवा समिति एवं जिलों में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण पर एक प्रमुख दायित्व सौंपा गया कि ग्रामीण क्षेत्रों, गरीब बस्तियों या स्लम कालोनियों में समस्त कमजोर वर्गो को उनके अधिकारों के साथ ही लोक अदालतों के माध्यम से विवादों को सुलझाने के लिए प्रात्साहित करने के लिए शिक्षित करने के प्रयोजन से विधिक सहायता शिविरों का आयोजन किया जाय और राज्य प्राधिकरणों पर इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन का उत्तरदायित्व सौंपा गया।
भूमिका
भारत के संविधान में एक क्रान्तिकारी व्यवस्था करते हुऐ संविधान में अनुच्छेद-39 (क) जोड़कर राज्यों पर यह दायित्व सौंपा गया कि वे यह सुनिश्चित करें कि विधिक तंत्र इस प्रकार से कार्य करें कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो तथा विशेषकर यह सुनिश्चित किया जाय कि आर्थिक निर्बलता या किसी अन्य निर्बलता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाये। ऐसे व्यक्ति को उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध करायी जाये।