लोहितांग
लोहितांग भगवान शिव का पुत्र था जिसका जन्म उनके पसीने से हुआ था। लोहितांग का जन्म उस समय हुआ था जब भगवान शंकर ने अपने भक्त नाटाचार्य को ताण्डव नृत्य की शिक्षा दी थी।
जन्म एवं लालन पालन
भगवान शिव के एक भक्त नाटाचार्य हुआ करते थे। एक बार उनके मन में इच्छा जागृत हुई कि वे भगवान शंकर से तांडव नृत्य की शिक्षा लें और उसका ज्ञान अन्य मनुष्यों में बांट दें। इसी उद्देश्य से उन्होंने महादेव की घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर महादेव उन्हें ताण्डव की शिक्षा देने के लिए राज़ी हो गए। भगवान शिव अपने उग्र रूप में आ गए और तांडव करने लगे। सृष्टि को बचाने के लिए माता पार्वती ने भी लास्य नृत्य करके भगवान शिव को उनके शांत रूप में लेकर आ गई। महादेव के शरीर से पसीने की कुछ बूंदे गिरी जिससे एक बालक उत्पन्न हुआ जिसका नाम लोहितांग रखा गया। कुछ समय बाद अंधकासुर ने पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से महादेव की तपस्या की जिससे महादेव ने लोहितांग उसे वरदान स्वरूप में दे दिया। चूंकि अंधकासुर भी महादेव के पसीने से ही जन्मा था इस कारण वह लोहितांग का बड़ा भाई हुआ।
महादेव से युद्ध
अंधकासुर माता पार्वती पर कुदृष्टि डालने के कारण भगवान शिव के हाथों मारा गया। तब लोहितांग ने भगवान शिव से प्रतिशोध लेने के लिए कैलाश पर आक्रमण कर देता है। लोहितांग से भगवान शिव युद्ध करने लगे लेकिन लोहितांग ने भगवान शिव को सम्मोहित करने के लिए बांसुरी , मृदंग , ढोल आदि वाद्य यंत्र बजाने शुरू कर दिए। जिससे महादेव अपनी सुध बुध खो बैठे। अपने आप को सम्मोहित होने से रोकने के लिए भगवान शिव अपने एक हाथ से डमरू बजाने लगे। जिससे लोहितांग की माया असफल हो गई। महाकाल के डमरू की आवाज़ से लोहितांग नृत्य करने लगा और नृत्य करते करते थक गया। उसने भगवान शिव के असली रूप को पहचाना और भगवान शिव का अनन्य भक्त बन गया।