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लखनऊ की संस्कृति

लखनऊ अपनी विरासत में मिली संस्कृति को आधुनिक जीवनशैली के संग बड़ी सुंदरता के साथ संजोये हुए है। भारत के उत्कृष्टतम शहरों में गिने जाने वाले लखनऊ की संस्कृति में भावनाओं की गर्माहट के साथ उच्च श्रेणी का सौजन्य एवं प्रेम भी है। लखनऊ के समाज में नवाबों के समय से ही पहले आप वाली शैली समायी हुई है।[1][2] हालांकि स्वार्थी आधुनिक शैली की पदचाप सुनायी देती है, किंतु फिर भी शहर की जनसंख्या का एक भाग इस तहजीब को संभाले हुए है। यह तहजीब यहां दो विशाल धर्मों के लोगों को एक समान संस्कृति से बांधती है। ये संस्कृति यहां के नवाबों के समय से चली आ रही है।[2]

भाषा एवं गद्य

लखनऊ में हिन्दी एवं उर्दु, दोनों ही बोली जाती हैं, किंतु उर्दु को यहां सदियों से खास महत्त्व प्राप्त रहा है। जब दिल्ली खतरे में पड़ी तब बहुत से शयरों ने लखनऊ का रुख किया। तब उर्दु शायरी के दो ठिकाने हो गये- एहली और लखनऊ। जहां देहली सूफ़ी शायरी का केन्द्र बनी, वहीं लखनऊ गज़ल विलासिता और इश्क-मुश्क का अभिप्राय बन गया।[3][3] जैसे नवाबों के काल में उर्दु खूब पनपी एवं भारत की तहजीब वाली भाषा के रूप में उभरी। यहां बहुत से हिन्दू कवि एवं मुस्लिम शायर हुए हैं,[4] जैसे बृजनारायण चकबस्त[5], ख्वाजा हैदर अली आतिश, विनय कुमार सरोज, आमिर मीनाई, मिर्ज़ा हादी रुसवा, नासिख, दयाशंकर कौल नसीम, मुसाहफ़ी, इनशा, सफ़ी लखनवी और मीर तकी "मीर"[6] तो प्रसिद्ध ही हैं, जिन्होंने उर्दु शायरी तथा लखनवी भाषा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।[7] लखनऊ शिया संस्कृति के लिए विश्व के महान शहरों में से एक है। मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर उर्दु शिया गद्य में मर्सिया शैली के लिएप रसिद्ध रहे हैं। मर्सिया इमाम हुसैन की कर्बला के युद्ध में शहादत का बयान करता है, जिसे मुहर्रमके अवसर पर गाया जाता है। काकोरी कांड के अभियुक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था, उर्दु शायरी से खासे प्रभावित थे, एवं बिस्मिल उपनाम से लिखते थे। कई निकटवर्ती कस्बों जैसे काकोरी, दरयाबाद, बाराबंकी, रुदौली एवं मलिहाबाद ने कई उर्दु शायरों को जन्म दिया है। इनमें से कुछ हैं मोहसिन काकोरवी, मजाज़[8], खुमार बाराबंकवी एवं जोश मलिहाबादी। हाल ही में २००८ में १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की १५०वीं वर्षगांठ पर इस विषय पर एक उपन्यास का विमोचन किया गया था। इस विषय पर प्रथम अंग्रेज़ी उपन्यास रीकैल्सिट्रेशन, एक लखनऊ के निवासी ने ही लिखा था।

लखनऊ जनपद के स्वतंत्रता संग्रामी

लखनऊ जनपद के काकोरी कांड के अभियुक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था बिस्मिल उपनाम से लिखते थे। लखनऊ जनपद के कुम्हरावां गांव में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को 13 स्वतंत्रता संग्रामी दिये जिन्होंने अलग अलग समय पर भारतीय जेलों में रहकर भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष को आगे बढाया इनके नाम इस प्रकार हैं ने अलग अलग समय पर भारतीय जेलों में रहकर भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष को आगे बढाया इनके नाम इस प्रकार हैं

  • स्व0 गुरु प्रसाद बाजपेयी ‘वैद्य जी’
  • स्व0 राम सागर मिश्र ये प्रखर समाजवादी चिंतक थे जो उत्तर प्रदेश की विधान सभा के सदस्य रहे 1976 के आपातकाल में बंदी अवस्था में ही इन्होंने अपना शरीर छोडा लखनऊ में इनके नाम पर रामसागर मिश्र नगर बनाया गया जिसका नाम आगे चलकर इन्दिरानगर कर दिया गया।
  • स्व0 रामदेव आजाद
  • स्व0 फूलकली स्व0 सत्यशील मिश्र
  • स्व0 बाबूलाल
  • स्व0 जगदेव दीक्षित
  • स्व0 श्याम सुन्दर दीक्षित ‘मुन्ने’
  • स्व0 विश्वनाथ मिश्र ‘डाक्टर साहब’
  • स्व0 पुत्तीलाल मिश्र
  • स्व0 बद्री विशाल मिश्र
  • श्री राम कुमार बाजपेयी
  • श्री बचान शुक्ल जी

नृत्य एवं संगीत

कथक नृत्य करते हुए कलाकार

प्रसिद्ध भारतीय नृत्य कथक ने अपना स्वरूप यहीम पाया था। अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह कथक के बहुत बड़े ज्ञाता एवं प्रेमी थे। लच्छू महाराज, अच्छन महाराज, शंभु महाराज एवं बिरजू महाराज ने इस परंपरा को जीवित रखा है।[2]

लखनऊ प्रसिद्ध गज़ल गायिका बेगम अख्तर का भी शहर रहा है। वे गज़ल गायिकी में अग्रणी थीं और इस शैली को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया – उनकी गायी बेहतरीन गज़लों में से एक है। लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय का नाम यहां के महान संगीतकार पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के नाम पर रखा हुआ है। यह संगीत का पवित्र मंदिर है। श्रीलंका, नेपाल आदि बहुत से एशियाई देशों एवं विश्व भर से साधक यहा नृत्य-संगीत की साधना करने आते हैं। लखनऊ ने कई विख्यात गायक दिये हैं, जिनमें से नौशाद अली[9], तलत महमूद, अनूप जलोटा और बाबा सेहगल कुछ हैं। संयोग से यह शहर ब्रिटिश पॉप गायक क्लिफ़ रिचर्ड का भी जन्म-स्थान है।

फिल्मों में

जावेद जान निःसार अख्तर, प्रसिद्ध हिन्दी चलचित्र गीतकार

लखनऊ हिन्दी चलचित्र उद्योग की आरंभ से ही प्रेरणा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति ना होगी कि लखनवी स्पर्श के बिना, बॉलीवुड कभी उस ऊँचाई पर नहीं आ पाता, जहां वह अब है। अवध से कई पटकथा लेखक एवं गीतकार हैं, जैसे मजरूह सुलतानपुरी, कैफ़े आज़मी, जावेद अख्तर, अली रज़ा, भगवती चरण वर्मा, डॉ॰कुमुद नागर, डॉ॰अचला नागर, वजाहत मिर्ज़ा (मदर इंडिया एवं गंगा जमुना के लेखक), अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी एवं के पी सक्सेना जिन्होंने ने भारतीय चलचित्र को प्रतिभा से धनी बनाया। लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी हैं जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी और इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी।

बहू बेगम, मेहबूब की मेहंदी, मेरे हुजूर, चौदहवीं का चांद, पाकीज़ा, मैं मेरी पत्नी और वो, सहर, अनवर और बहुत सी हिन्दी फिल्में या तो लखनऊ में बनी हैं, या उनकी पृष्ठभूमि लखनऊ की है। गदर फिल्म में भी पाकिस्तान के दृश्यों में लखनऊ की शूटिंग ही है। इसमें लाल पुल, लखनऊ एवं ला मार्टीनियर कालिज की शूटिंग हैं।

खानपान

अवध क्षेत्र की अपनी एक अलग खास नवाबी खानपान शैली है। इसमें विभिन्न तरह की बिरयानीयां, कबाब, कोरमा, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, ज़र्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा[10] और रोटियां आदि हैं, जिनमें काकोरी कबाब, गलावटी कबाब,[11] पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब प्रमुख हैं।[10][11] शहर में बहुत सी जगह ये व्यंजन मिलेंगे। ये सभी तरह के एवं सभी बजट के होंगे। जहां एक ओर १८०५ में स्थापित राम आसरे हलवाई की मक्खन मलाई एवं मलाई-गिलौरी प्रसिद्ध है, वहीं अकबरी गेट पर मिलने वाले हाजी मुराद अली के टुण्डे के कबाब भी कम मशहूर नहीं हैं।[1][11][12] इसके अलावा अन्य नवाबी पकवानो जैसे 'दमपुख़्त', लच्छेदार प्याज और हरी चटनी के साथ परोसे गय सीख-कबाब और रूमाली रोटी का भी जवाब नहीं है।[1] लखनऊ की चाट देश की बेहतरीन चाट में से एक है। और खाने के अंत में विश्व-प्रसिद्ध लखनऊ के पान जिनका कोई सानी नहीं है।

कुर्ते पर चिकन की कढाई

चिकन की कढाई

चिकन, यहाँ की कशीदाकारी का उत्कृष्ट नमूना है और लखनवी ज़रदोज़ी यहाँ का लघु उद्योग है जो कुर्ते और साड़ियों जैसे कपड़ों पर अपनी कलाकारी की छाप चढाते हैं। इस उद्योग का ज़्यादातर हिस्सा पुराने लखनऊ के चौक इलाके में फैला हुआ है। यहां के बाज़ार चिकन कशीदाकारी के दुकानों से भरे हुए हैं।[1][13] मुर्रे, जाली, बखिया, टेप्ची, टप्पा आदि ३६ प्रकार के चिकन की शैलियां होती हैं। इसके माहिर एवं प्रसिद्ध कारीगरों में उस्ताद फ़याज़ खां और हसन मिर्ज़ा साहिब थे।[13]

सन्दर्भ

  1. सिसोदिया, संदीप (२० जून). "मुस्कुराईए जनाब कि आप लखनऊ में है।." माई वेब दुनिया. पपृ॰ ०१. मूल (एचटीएमएल) से 9 नवंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २१ जून २००९. |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. first= (२० जून). "कल्चरल रिचनेस ऑफ लखनऊ" (अंग्रेज़ी में). राष्ट्रीय सूचना केन्द्र. पपृ॰ ०१. मूल (एचटीएमएल) से 19 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २१ जून २००९. |last= में पाइप ग़ायब है (मदद); |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. सतपाल खयाल. "ग़ज़ल का इतिहास और ग़ज़ल की भाषा (ग़ज़ल शिल्प और संरचना)". साहित्य शिल्पी. मूल से 31 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २५ जुलाई २००९. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "सतपाल" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  4. अंजलि सिंह. "वाह शाद वाह! लखनऊ के एक बेहतरीन शायर से एक मुलाक़ात". मेरी खबर. अभिगमन तिथि १६ जुलाई २००९.[मृत कड़ियाँ]
  5. "चकबस्तके अशआर". वेब दुनिया. अभिगमन तिथि २५ जुलाई २००९.
  6. "मीर के अशआर". वेब दुनिया. अभिगमन तिथि २५ जुलाई २००९.
  7. "राष्ट्रीय उर्दु भाषा विकास परिषद". मूल से 11 जून 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २९ सितंबर २००६.
  8. सिराज मिर्ज़ा. "मजाज़ और उनकी इंक़लाबी शायरी". नूतन सवेरा. अभिगमन तिथि २६ सितंबर २००८.
  9. (संगीतकार ही नहीं एक अच्छे शायर थे नौशाद[मृत कड़ियाँ]|रमेश चंद्र|४ मई,२००९|समय लाइव)
  10. first= (२० जून). "क्युज़ाइन्स ऑफ़ लखनऊ" (अंग्रेज़ी में). राष्ट्रीय सूचना केन्द्र. पपृ॰ ०१. मूल (एचटीएमएल) से 19 अगस्त 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २१ जून २००९. |last= में पाइप ग़ायब है (मदद); |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  11. first= जीतू (२ मार्च). "ज़ायके का सफ़र : लखनऊ". स्पाइस आइस/ फूड वान्डरर्र. पपृ॰ ०१. मूल (एचटीएमएल) से 22 दिसंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २५ जुलाई २००९. |last= में पाइप ग़ायब है (मदद); |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  12. "लखनऊ कबाब्स कंटिन्यू टू बि गोर्मेन्ट्स डिलाइट बेयॉण्ड टाइम". मूल से 5 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अप्रैल 2007.
  13. first= (२० जून). "क्राफ़्ट्स ऑफ़ लखनऊ" (अंग्रेज़ी में). राष्ट्रीय सूचना केन्द्र. पपृ॰ ०१. मूल (एचटीएमएल) से 1 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २१ जून २००९. |last= में पाइप ग़ायब है (मदद); |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)