रोश सीमा
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खगोलशास्त्र में रोश सीमा या रोश व्यास ब्रह्माण्ड में दो वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण के तालमेल के एक परिणाम को उजागर करता है। आम तौर से कोई भी वस्तु अपने ही गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से इकठ्ठा होकर रहती है, जैसे की ग्रह, उपग्रह, वग़ैराह। लेकिन यदि कोई दूसरी बड़ी वस्तु पास में आ जाए तो वह पहली वस्तु के जमकर एक हो जाने में ख़लल डालती है। किसी भी वस्तु की रोश सीमा वह सीमा है जिसके अन्दर वह वस्तु किसी भी दूसरी वस्तु को जमकर एकत्रित नहीं होने देती। साधारण तौर पर रोश सीमा का प्रयोग ग्रहों के इर्द-गिर्द मंडराते हुए उपग्रहों के लिए होता है। अगर उपग्रह ग्रहों की रोश सीमा से बहार बन जाए, तो साधारण उपग्रह बन पाते हैं, वर्ना ग्रह का गुरुत्वाकर्षण इतना प्रभावशाली होता है के वह या तो बड़ा उपग्रह बनने ही नहीं देता, या फिर उपग्रही छल्ला बना देता है, या उस मलबे को अपनी और खींचकर उसका अपने अन्दर ही विलय कर लेता है।
तनाव पुष्टि
कभी-कभी रोश सीमा के अन्दर भी उपग्रह बन पाते है। यह तब होता है जब उपग्रह में जमाव केवल गुरुत्वाकर्षण की वजह से ना हो और उसके पदार्थों की आपस में चिपकन का कोई और रासायनिक या भौतिक कारण हो। वैज्ञानिक भाषा में कहा जा सकता है के अगर उपग्रह की तनाव पुष्टि अधिक हो तो वह रोश सीमा में रहकर भी एकत्रित रह सकता है। बृहस्पति का उपग्रह मीटस और शनि का उपग्रह पैन इसके दो उदहारण हैं जो रोश सीमा के अन्दर होते हुए भी बरकरार हैं। लेकिन ऐसे उपग्रहों में और अजीब चीज़ें देखी जा सकती हैं। क्योंकि इनकी सतह पर बड़े ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव बहुत अधिक होता है, अगर इनकी सतह पर कोई चीज़ रख दी जाए तो कभी-कभी वह आँखों के सामने ही अनायास सतह से उड़कर उपग्रह से अलग हो सकती है।