राष्ट्रीय पुलिस आयोग
लॉर्ड कर्जन ने पुलिस विभाग में फेली भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए 1902 इसवी में सर एंड्रयू की अध्यक्षा में पुलिस आयोग का गठन किया था
इस आयोग ने रिपोर्ट देने की शुरुआत 1981 से की। फरवरी १९७९ और मई १९८१ के बीच इसने कुल आठ रपटें दीं। प्रथम दो रपटों के बाद ही १९८० में जनता पार्टी की सरकार गिर गयी और इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आयीं। इसके बाद इस आयोग के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे।
आयोग के अनुसार हर प्रदेश में एक "स्टेट सिक्योरिटी कमीशन" का गठन होना चाहिए, उसके अन्वेषण संबंधी कार्य को शांति व्यवस्था संबंधी कार्य से अलग किया जाना चाहिए, पुलिस प्रमुख की नियुक्ति एक विशेष प्रक्रिया द्वारा होनी चाहिए ताकि केवल योग्य व्यक्ति का ही इस जिम्मेदार पद के लिए चयन हो सके। चयन होने के पश्चात उनका न्यूनतम सेवाकाल होना चाहिए तथा एक नये पुलिस अधिनियम को लागू किया जाना चाहिए।
दुर्भाग्य से इन संस्तुतियों पर कोई खास कार्यवाही नहीं हुई। कुछ कम महत्व की संस्तुतियों को स्वीकार करके शेष पूरी रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया गया। हर सरकार को यही ठीक लगा कि पुराना ढांचा ही बना रहे और पुलिस का वह जैसा भी उपयोग या दुरुपयोग करना चाहे, कर सके। राष्ट्रीय पुलिस आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पुराना ढांचा बदलना होगा। जिन संस्तुतियों पर आज तक कोई कार्यवाही नही हुई उन पर कार्यवाही होनी चाहिए। हर सरकार पुलिस को अपने मनमाने ढंग से उपयोग कर रही है जिससे पुलिस की कार्यवाही का दुरुपयोग किया जाता है। सरकारों के इस रवैये की आड़ में कुछ स्वार्थी पुलिस अधिकारी भी कानून की बारीकियों का सहारा लेकर रक्षक से भक्षक बनने का काम करते हैं। जिससे पुलिस जैसे प्रतिष्ठित संस्था की छवी दागदार हो रही है। जिस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय पुलिस आयोग का गठन किया गया था। वो पूरी तरह कारगर होना चाहिए। तभी पुलिस का सही ढांचा और कार्य संभव हो पायेगा।