रामराज्य
Kingdom of Rama राम राज्य | |||||
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राष्ट्रगान वैदिक गान | |||||
राजधानी | कोशल साम्राज्य | ||||
भाषाएँ | प्राकृत (common language) Sanskrit (national language) | ||||
धार्मिक समूह | सनातन धर्म | ||||
शासन प्रणाली | निर्दिष्ट नहीं | ||||
राष्ट्रपति | दशरथ | ||||
भरत (रामायण) | |||||
राम | |||||
इतिहास | |||||
- | स्थापित | शुरूआती वर्ष डालें | |||
- | अंत | अंत वर्ष डालें | |||
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हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रूपक (प्रतीक) के तौर पर किया जाता है। रामराज्य, एक विशिष्ट, मनुस्मृति आदि शास्त्रों के अनुकूल एक राजतन्त्र है। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधीजी की चाह थी।
हिन्दू ग्रन्थों में रामराज्य
रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने रामराज्य पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सिंहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया, सारे भय–शोक दूर हो गए एवं दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल गई। कोई भी अल्पमृत्यु, रोग–पीड़ा से ग्रस्त नहीं था, सभी स्वस्थ, बुद्धिमान, साक्षर, गुणज्ञ, ज्ञानी तथा कृतज्ञ थे।
- राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।
- बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।
- दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
- अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।
- नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।
- सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।
- राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।
- काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं।।
- (रा•च•मा• 7। 20। 7–8; 21। 1¸ 5–6¸ 8; 21)
वाल्मीकि रामायण में भरत जी रामराज्य के विलक्षण प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं, "राघव! आपके राज्य पर अभिषिक्त हुए एक मास से अधिक समय हो गया। तब से सभी लोग निरोग दिखाई देते हैं। बूढ़े प्राणियों के पास भी मृत्यु नहीं फटकती है। स्त्रियां बिना कष्ट के प्रसव करती हैं। सभी मनुष्यों के शरीर हृष्ट–पुष्ट दिखाई देते हैं। राजन! पुरवासियों में बड़ा हर्ष छा रहा है। मेघ अमृत के समान जल गिराते हुए समय पर वर्षा करते हैं। हवा ऐसी चलती है कि इसका स्पर्श शीतल एवं सुखद जान पड़ता है। राजन नगर तथा जनपद के लोग इस पुरी में कहते हैं कि हमारे लिए चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहें।" सुप्रसिद्ध युवा कवि गोलेन्द्र पटेल ने अपनी कविता ‘कठौती और करघा’ में काशी के संदर्भ में कहा है कि
“रैदास की कठौती और कबीर के करघे के बीच/ तुलसी का दुख एक सेतु की तरह है/ जिस पर से गुज़रने पर/ हमें प्रसाद, प्रेमचंद व धूमिल आदि के दर्शन होते हैं!/
यह काशी/ बेगमपुरा, अमरदेसवा और रामराज्य की नाभि है।” (कवितांश : ‘कठौती और करघा’ से)
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- रामराज्य का वर्णन (वेबदुनिया)
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