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राम सनेही भारतीय

राम सनेही भारतीय

कार्यकाल
1952 से 1957

राष्ट्रीयता भारतीय

रामसनेही भारतीय जी का जीवन वृत्त


शेरे बुंदेलखंड उत्तरप्रदेश राम सनेही भारतीय! जिन्होंने अपने किरदार से अपनी पीढ़ी को तो प्रभावित किया ही। बाद की भी दो पीढ़ी यानी पचहत्तर साल तक बुंदेलखंड में सियासत के मंसूबा बांधे हर शख्सियत, रामसनेही के आचरण व्यक्तित्व से सदा प्रभावित हो। उन के रुतबा सा दिखने का! दिल में कसक के साथ तीन पीढियां उनसा व्यक्तिव पाने की हसरत लिए बड़ी हुईं!

१४ जून राम सनेही भारतीय( महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,बुंदेलखंड के बांदा जिला परिषद के चेयरमैन और भूतपूर्व विधायक) जनम दिन है।इस तारीख को 1918को बांदा जिला की बबेरू तहसील के पल्हरी गांव में किसान परिवार में हुआ था।

  ( वे पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई बद्रीप्रसाद जिला कांग्रेस सेवादल के कैप्टन रहे। 1947-1948 में डिस्ट्रिक्ट काउंसिल बोर्ड के चेयरमेन भी ।)

    आजादी के संघर्ष में राम सनेही भारतीय 12 साल की उम्र में 1930 में आजादी की लड़ाई में शामिल हुए ।1932 में पहली बार झंडा सत्याग्रह में  गिरफ्तार किए गए।11जनवरी 1941 को बबेरू तहसील में जनसभा को संबोधित करते हुए ।अंग्रेजी प्रशासन पुनः गिरफ्तार कर लिया।मुकदमा चला बबेरू उपजिलाधीश 9महीने की सजा सुनाई ।अदालती करवाही में फैसला का इंतजार कर रही। अदालत के बाहर खड़ी देशभक्त संघर्ष का मंसूबा लिए आम जनता अपने लोकप्रिय नेता को फूल-मालाओं से अभिनंदन कर संघर्ष बीज के अनगिनत लोक समाज में अंकुर जनमे। इस लक्ष्य उत्साह का अभिनंदन कर नेता के साथ एकजुटता काआगाज किया ।

     अंग्रेजी प्रशासन जनसमुदाय के व्याकुल सबर से आभाष कर लिया कि जनता बेकाबू हो जाएगी। इसलिए उन्हें तुरंत जिला प्रशासन के हालात पर परिचर्चा कर।आदेश करा बांदा कोतवाली भेजा गया। जहां पर भारतीय  जी को एक आम शातिर कैदियों की तरह लोहे की भरी भरकम बेड़ियां पहनाईं ।वहां भी उनकी लोकप्रियता और जन जुड़ाव का बेजोड़ तमाशा में शरीक हजारों के मिलने वालों को। रोज़ जेल आना । चहुतरफा राम सनेही की जन जन में संघर्ष और बहादुरी के किस्से फिजा में तैर रहे थे। जिसकी अनुगुंज से नेतृत्व के आकलन कर अंग्रेजी प्रशासन ने इनकी जेल बदर करने का निर्णय लिया।जिसके तहत झांसी जेल भेजा गया।

      केंद्रीय जेल झांसी में मौजूद लोग भी बुंदेली जमात के थे।जिनके बीच तुरत राम सनेही के नेतृत्व का स्वीकरण सहज हो गया।जहां पर जिस मसले से आगाज से बांदा प्रशासन परेशां था। उस समय राम सनेही के जन स्वीकरण से बढ़ती चिंता से अंग्रेजों ने इन्हे बुंदेलखंड से आम जन से निकालकर जिला जेल इलाहाबाद ले जाने का फैसला लिया। तबकी इलाहाबाद की मलाका जेल जो बाद में स्वरूप रानी अस्पताल में तब्दील हो गया।इसी मलाका जेल में सूर्यसेन को फांसी अंग्रेजों ने दिया।जहां अब रामसनेही

9माह की सजा काट रहे थे।सजा के बाद वे बांदा आये। बापू के छेड़े 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में। पूरी तरह से अपनों के साथ सक्रियता से भाग लिया।

   अंग्रेजों ने पुनः स्वाधीनता के बुंदेलखंड के जन नेता बन चुके कैप्टन बद्रीप्रसाद और रामसनेही भारतीय के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट निकाला।जनता में दहशत और जेल भेजने का माहौल बनाया। संघर्ष और नेतृत्व के स्थितियों को भांपते हुए अंग्रेजी पुलिस अधीक्षक से दस्ते का सामना किया। उस समय अंग्रेजों को अपने मुखबिर से सूचना कैप्टन और उनके छोटे भाई भारतीय के पास हथियारों का जरीखा होने की सटीक और  ठीक सूचना मिली । जिस पर पुलिस उनके घर गांव पल्हरी को पहुंचने के लिए रवाना हुई।

    गांव में पुलिस के दल को देख कैप्टन और भारतीय को सूचना मिली ।तब कैप्टन बद्री प्रसाद के पत्नी के भतीजे गोमती प्रसाद जो कैरी गांव के रहने वाले थे। वोअपनी बुआ के यहां घर में थे।अमूमन यहां बुआ मामा के बच्चे अकसरहा एक दूसरे के घर महीनों रहते। आगे अपना सा घर के हिस्सा होते।गोमती प्रसाद पुत्र रामसरन कैरी निवासी अंग्रेजी पुलिस से कैप्टन और भारतीय के संघर्ष कुशलता को बताते हैं।  किस्सा अपनी आंखो देखा बताते हैं कि बखरी(आंगन) में अनगिनत बंदूक छोटे बड़े सभी हथियार घर से निकाल कर इकठ्ठा रख दिए।उसके ऊपर बरसात में खेत/ मेड की आरी से कटी घास। जिसे वक्ती जरूरत के लिए सुखा कर बुंदेली किसान बोझ बांध कर रखता है। जो हरा सुखा चारा कयारी कहलाता है। उस कयारी के बोझ आंगन में पड़े हथियारों के ऊपर डाल कर खोल दिया। सैकड़ों से ज्यादा कयारी के बोझ हथियारों का जखीरा ढक गया।घर के गाय बछड़े बैल खोल दिए।जो आंगन में खाने लगे।अंग्रेजी पुलिस आई। सभी सतर्क हो।अपने अपने ठिकाने चले।कैप्टन उस समय अपने घर में बनी अटारी के गुप्त दरवाजे से निकलने की राह झांकी।पुलिस इंस्पेक्टर रास्ते के नाका में खड़ा देख। वो साहस के साथ सामना कर इंस्पेक्टर कैप्टन को सनेही को एक मुखागिर होते।दोनों भाइयों में पहचान करने में चकमकाया। इतने में कैप्टन ने इंस्पेक्टर को ताकत से डाटा।इंपेक्टर कैप्टन की ताकत की आवाज और आजादी के संघर्ष के पौरुष के आगे अवाक रह गया।कैप्टन पुलिस अधीक्षक की घेराबंदी से बाहर हो गए। हथियारों के लिए पुलिस घर में बने। अलग लग कमरों में देखा।दीवारों में दर ब दर देखा।घुसते समय पुलिस को आंगन में कयारी खा रहे जानवर।पुलिस को घुसते देख मारने को दौड़ाया।लेकिन वहां मौजूद गोमती प्रसाद बताते हैं।पुलिस घुसी घर घर तलाश की लेकिन कुछ भी उनको हाथ नहीं लगा। पुलिस खाली हाथ वापस लौट गई।

    अंग्रेजी प्रशासन को सूचना दी भारतीय कैप्टन दस्ता कचेहरी लूट की रणनीति पर काम कर रहे हैं।जिसके इंतजामात के जरूरी औजार भी हैं।इसके आलोक में उन्हें पकड़ने और समान बरामदगी कर आजादी के संघर्ष के बुंदेली नेतृत्व को असफल किया जा सकता है। इसके बाद दोनों मीलों चलकर लोगों से संवाद करते समर्थन इकठ्ठा करते ।पुलिस पता लगाते हुए पीछा करती। इस तरह बार बार गिरफ्तार हुए। संघर्ष में जेल गये।

बुंदेलखंड में आजादी के नेतृत्व रामस्नेही भारतीय  की मुलाकात महात्मा गांधी से कानपुर के फूल बाग़ मैदान में आयोजित जनसभा में हुई। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से लखनऊ  में। सरदार बल्लभ भाई पटेल से कांग्रेस के मेरठ अधिवेशन में । आजादी के बाद पंडित नेहरू एक बार बांदा में आए।(जहां मीटिंग में उस समय के कांग्रेस के इंतजामती सवर्ण ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने कैप्टन बद्री प्रसाद और रामसनेही भारतीय को आमंत्रित नहीं किया)। पंडित नेहरू मंच पर आए।देखे! तो अपनी मीटिंग संबोधन पर सबसे पहले बोले मुझे आज बांदा के दो शेर मंच पर नहीं दिखाई दे रहे कैप्टन बद्री प्रसाद और राम सनेही भारतीय ।दोनों बेहद स्वाभिमानी थे। साहसी स्वालंबी आजीवन रहे।

    1947 में भारतीय जी कांग्रेस बांदा के जिला महामंत्री हुए। बाद में जिला अध्यक्ष भी बने।वे 1952 में बबेरू विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए।1957 में दुबारा विधायक चुने गए।उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त के साथ कार्य करने का अवसर उन्हें मिला। दल में ब्राह्मणवाद के संस्कृति के आगे बुंदेलखंड के जन नेतृत्व समूचे बुंदेली अदब की रहनुमाई से आजाद देश के सूबा नेतृत्व से ब्राह्मणवादियो ने वंचित कर दिया। वे 1961और 1963 में बांदा जिला परिषद के चेयरमैन चुने गए।तो उन्होंने पहली प्राथमिकता शिक्षा को दिय।1947 में आजादी के समय बांदा जिला में 247प्राथमिक विद्यालय थे। वहीं 1964 में 1034हो गये अर्थात पांच गुना विद्यालय बनाए जो एक रिकॉर्ड है।वहां चार हजार से ज्यादा परिषदीय स्कूलों में शिक्षक की नियुक्ति बहुजनों की। ढाई हजार से ज्यादा लेखापाल बनाया।इस सामाजिक सेवा में बदलाव के जहां पढ़े लिखे लोगों की जमात पूरे बुंदेलखंड के बांदा में पद में रहते कार्य को अंजाम दिया।इससे नई पीढ़ी के बनने ।पढ़े लिखे के संवारने ।बड़ों की शान में मान में सदा सनेही सबके जन प्रिय बुंदेली शिल्प की अमित छाप छोड़ी। जो आज भी अस्सी साल के सभी जमातों के लोगों की आंखों में रामसनेही जैसा दूजा न कोई ! का अहसास e आम है।

    वो उस समय समाज सुधार के कार्यों में समुदाय के अंतर मौजूद जातीय अंतर को तोड़ने के लिए काम किया।अपने भतीजे रामआसरे व मोतीलाल विद्यार्थी जो थे।ये कैप्टन बद्रीप्रसाद के बेटे थे।रामआसरे के बेटों की शादी नरेंद्र सिंह की चंदरौल, दो भाई कुन्ना मास्टर ,त्यागी की शादी निरंजन झांसी में जहां की।वहीं बेटी की शादी सचान घाटमपुर कानपुर देहात।वहीं बिना लेनदेन की शादी तीन रोजनके बजाय एक दिन की शादी शाम को बारात , सुबह विदाई अपने बेटे कृष्ण कुमार की कर समाज में एक शानदार संदेश दिया।उनकी ख्याति बुंदेलखंड के सात जिलों में जहां थी ।वहीं इलाहाबाद फतेहपुर कानपुर के मानिंद के बीच भी। उस समय में सूबे के तीन बार मुख्यमंत्री रहे, सीबी गुप्ता खास अपनों की तरह थे।

    वो बेहद सामंतवाद ब्राह्मणवाद विरोधी। किसी भी तरह के सियासी नौकरशाही के वर्चस्व के बरक्स आम जन के लिए सदा जिए।बदलते हालात को देखते हुए उनको चाहने वालों में  मुंह लगे रिश्तेदार भतीजा जमुना प्रसाद और कुंवर पाल लंबरदार कैरी वाले। दोनों बताते हैं ।हमने कहा आपके रहते दादू जो इलाहाबाद से उच्च शिक्षा एवम  विधि की पढ़ाई इलाहाबाद से ली थी।कृष्ण कुमार को राजनीति में लाएं। आपके रहते वो नेतृत्व जिले में करे!आपकी स्थिति भी ठीक है ।तो भारतीय जी ने कहा जमुना राजनीति अब बदल चुकी है।सीधे लोगों की अब राजनीति नहीं है।अब दबंगों और गुंडों की है। जिस पर के के यानी कृष्ण कुमार का मिजाज आज की सियासत के अंतर्विरोधी है।उनके परिवार में अब पोते सीताराम भारतीय और राधेश्याम भारतीय हैं।जो सामाजिक अभिरुचि के। मान सम्मान के। तरक्की अमन के । जो पहल में मौके दर मौके संजीदा हैं।

रामस्नेही भारतीय जी 26अगस्त 1992को चिरनिंद्रा में  गए।

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1918- 14 जून को जनपद बाँदा बबेरू के ग्राम पल्हरी में जन्म

1930- 14 वर्ष की अल्पायु में स्वतंत्रता संग्राम के निमित्त छावनी बांदा आए

1932- झंडा सत्याग्रह बांदा में भाग लिया

1933-35 - बबेरू में कांग्रेस संगठन में सक्रियता के कारण अंग्रेजी हुकूमत का घर में छापा

1936- जिला कांग्रेस कमेटी एवं 1938 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य निर्वाचित

1940- 11 जनवरी को ब्रिटिश हुकूमत को युद्ध में सहायता के विरोध के कारण गिरफ्तार एवं 9 माह की सजा

1942-44 - लगभग 2 वर्ष नजरबंद रहे

1946-47 - जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री बने

1948- जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित एवं अपने अग्रज कैप्टन बद्री प्रसाद चेयरमैन की मृत्यु के बाद जनता द्वारा डिस्टिस्क बोर्ड के चेयरमैन चुने गए

1952- बबेरू क्षेत्र से प्रथम विधानसभा के सदस्य निर्वाचित

19957- बबेरू क्षेत्र से दोबारा विधानसभा के सदस्य निर्वाचित

1963-69 तक जिला परिषद बांदा के अध्यक्ष निर्वाचित

1965- कैप्टन साहब की पुण्य स्मृति में कैप्टन बद्री प्रसाद इंटर कॉलेज की स्थापना की

1991- 25 अगस्त को देहावसान हो गया ।

[1]

सन्दर्भ

  1. "उत्तर प्रदेश विधान सभा". मूल से 10 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.