राग कलिङ्गड़ा
'''राग कालिंगड़ा'''
रे ध कोमल प्रातः समय ,भैरव थाट प्रमान |
प स संवाद सप्त सुरन ,प्रातः कालिंगड़ा पहिचान ||
'''राग का परिचय'''
इसकी उत्पत्ति भैरव थाट से हुई है| ये सम्पूर्ण सम्पूर्ण जाति का राग है क्योंकि इसमें सप्तक के सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं| कोमल रे ध के साथ शुद्ध मध्यम होने के कारण राग कालिंगड़ा प्रातः कालीन संधि प्रकाश राग कहा गया है| ये चंचल प्रकृति का उत्तरांग प्रधान राग है|
आरोह :- सा रे॒ ग, म प, ध॒ नी सां
अवरोह :- सां नी ध॒ प, म प ध॒ प म ग, रे॒ सा
पकड़:- ध॒ प, ग म ग रे॒ सा
वादी :-प
संवादी:- सा
जाति:- सम्पूर्ण -सम्पूर्ण
सम्प्रकृति राग:- भैरव
न्यास के स्वर :- सा ग प
'''विशेष'''
राग कालिंगड़ा गाते समय स्वरों के न्यास पर ध्यान देने की अत्यधिक आवश्यकता है ,यदि रे॒ और ध॒ पर आन्दोलन किया जाए तो राग भैरव की छाया आने लगती है ,इसलिए इसके वादी और संवादी व् ग स्वर पर न्यास किया जाना चाहिए|
'''स्त्रोत'''
राग परिचय, भाग दो , पृष्ठ संख्या ८१ ,८२ लेखक हरिश्चंद्र श्रीवास्तव, प्रकाशक -संगीत सदन प्रकाशन , प्रयागराज