युद्ध अपराध
सैनिकों अथवा अन्यान्य व्यक्तियों के प्रतिकूल (Hostile) या लगभग उसी तरह के काम, जिनके लिये पकड़े जाने पर शत्रुओं के द्वारा वे दंडित किए जा सकते हैं, युद्ध अपराध कहे जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय कानून के विरूद्ध किए गए काम, जो अभियुक्त के अपने देश के कानून के प्रतिकूल हैं, युद्ध अपराध (War crimes) में अंतर्निहित होते हैं; यथा, व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से की गई लूट या हत्या, शत्रु राष्ट्र की ओर से या उसके आदेश से किए गए अपराध।
युद्ध अपराध के प्रकार
अपराधों के प्रकार में भिन्नता के कारण युद्ध अपराध चार श्रेणी में विभक्त किए जा सकते हैं:
(1) सशस्त्र सेना के सदस्यों द्वारा, युद्ध के मान्य नियमों का उल्लंघन ;
(2) ऐसे व्यक्तियों द्वारा, जो शत्रु की सेना के सदस्य नहीं हों, सशस्त्र विद्रोह;
(3) जासूसी तथा युद्ध संबंधी विश्वासघात;
(4) लूटपाट के काम
युद्ध के मान्य नियमों का उल्लंघन
(1) विषैले या अन्यान्य कारणों से वर्जत अस्त्र शस्त्र का तथा गैस का प्रयोग।
(2) रोग अथवा आघात से पीड़ित सैनिकों किंवा निहत्थे शरणार्थियों की हत्या या उन्हें घायल करना।
(3) छलघात (Aasassination) करना या छलघाती (Assassin) की नियुक्ति करना।
(1) विश्वासघात की भावना से शरण देने के लिये निवेदन या उसी नियत से रोगी किंवा घायल होने का बहाना करना।
(2) श्युद्धबंदियों, घायलों अथवा रोगियों के साथ दुष्टाचरण (III kreatment) एवं उनके निजी धन का अपहरण।
(3) शत्रु पक्ष के निर्दोष असैनिक व्यक्तियों को मारना तथा घायल करना एवं उनकी निजी सपत्तिश् का अपहरण अथवा विनाश करना।
(4) विजित देशों के लोगों को सेना की स्थिति अथवा उनके बचाव के विषय में वार्ता देने को बाध्य करना।
(5) युद्धक्षेत्र में मृत सैनिकों के प्रति अशोभन आचरण एवं उनके शरीर से उनके निजी द्रव्य या अन्य कीमती वस्तुओं या अस्त्र शस्त्र का अपहरण।
(6) अजायबघर, अस्पताल, गिर्जा, स्कूल इत्यादि की संपत्ति को नष्ट या आत्मसात् करना।
(7) आरक्षित, खुले (open) शहरों पर आक्रमण, घेरा (siege) तथा गोलाबारी। आरक्षित स्थानों पर समुद्री जहाजों के द्वारा गोलाबारी करना। असैनिक आबादी (civil population) को आंतकित करने के अभिप्राय से उसपर हवाई गोलाबारी करना।
(8) बचाव करनेवाले शहर में अवस्थित ऐतिहासिक स्तूपों, अस्पतालों एवं धर्म, कला, विज्ञान तथा दातव्य उद्देश्यों के लिये मकानों पर, विशिष्ट संकेत रहने के बावजूद, गोली वर्षा करना।
(9) शत्रुपक्ष के जहाजों पर, उनके द्वारा पताका नत कर आत्मसमर्पण का संकेत पाने पर भी, आक्रमण करना तथा उन्हें डुबोना एवं शत्रु के जहाजरानी (cargo) पर निरीक्षण (visit) की माँग किए बिना आक्रमण करना।
(10) अस्पताली जहाजों पर आक्रमण करना या उन्हें बंदी बनाना।
(11) युत्र के दौरान में शत्रुपक्ष की वर्दी का व्यवहार करना।
(12) युद्धविराम (Truce) के पताका-वाहकों पर आक्रमण करना।
(13) संधि की शर्तो का उल्लंघन।
उच्चाधिकारियों का आदेश
ऐसा बचाव मान्य नहीं होता कि युद्धरत सरकार किंवा उसके किसी कमांडर के आदेश से किसी ने कोई अपराध किया। कभी ऐसी द्विया उत्पन्न होती है कि एक ओर जहाँ सैनिक अपने कमांडर की आज्ञा पालन करने को बाध्य है, दूसरी ओर उस आज्ञा का पालन युद्ध के नियम के प्रतिकूल होने के कारण अपराध है। यह भी संभव हो सकता है कि युद्ध के दौरान में उसे साकरिक द्दष्टि से उक्त आज्ञा की अमान्यता समझ में न आए और वह अपने कमांडर की आज्ञा का पालन करे। युद्ध के नियम बहुधा विवादास्पद होते हैं। यह भी संभव है कि कोई आदेश अन्यथा अमान्य होने पर भी प्रतिशोध [reprisal] के रूप में मान्य हो जाय। ऐसी स्थिति में ऐसे काम को युद्ध-अपराध में प्राय: नहीं लिया जाता। तथापि मुख्य सिद्धांत यह है कि सैनिक अपने कमांडर की वैधानिक (Legal) आज्ञा ही मानने को बाध्य है। अत: यदि युद्ध के मान्य नियमों के प्रतिकूल वह अपने उच्चाधिकारी की आज्ञा का पालन करता है तो उसके दायित्व से वह मुक्त नहीं हो सकता। उक्त दायित्व को आदेश देने वाले कमांडर तक ही सीमित करना वस्तुत: राज्य के प्रमुख पर उस दायित्व को सोचना होगा। पर अंतरराष्ट्रीय एवं देशज (Municipal), कानून की द्दष्टि से ऐसा करना विवादास्पद है।
अंतरराष्ट्रीय सैनिक न्यायालय (International Military Tribunal) ने अपने चार्टर (सन् 1945 ई0) में उच्चाधिकारी का आदेश पूर्णात: स्वीकार नहीं किया। 8 वें अनुच्छेद में इसने कहा है- 'अभियुक्त ने अपनी सरकार अथवा अपने उच्चाधिकारी की आज्ञा से कोई काम किया, यह बचाव उसे उस दायित्व से मुक्त नहीं कर सकता। किंतु न्यायालय के विचार में यदि न्याय की ऐसी माँग है तो दंड की कठोरता को कम करने में उक्त बचाव पर विचार किया जा सकता है।' नूरेमबर्ग (जर्मनी) के न्यायालय ने नात्सी अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत किए गए बचाव- 'उच्चाधिकारी के आदेश का पालन'- को अस्वीकार करते हुए कहा कि जान बूझकर किए गए अमानुषिक अपराध, यथा गैसचेंबर में बंद कर यहूदियों का निर्मूलन (Extermination), असैनिक निर्मम हत्या, आदि के लिये उक्त बचाव पर दंड की कठोरता कम करने के निमित भी विचार नहीं किया जा सकता। दिसंबबर, 1946 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने एक मत से इस सिद्धांत को मान्यता दी।
अधीनस्थ अधिकारियों के लिये कमांडर का उत्तरदायित्व
विजित देश के निवासियों (civil populattion) अथवा युद्धबंदियों के प्रति यदि सैनिक या निम्नकोटि के सैनिक अधिकारी अत्याचार करें तो आदेश से ऐसा काम हो या इसे रोकने दबाने के लिये असने चेष्टा नहीं की तो उसके विरूद्ध एक दबी प्रकल्पना उठेगी कि उसने उक्त उत्याचार की स्वीकृति दी या उसे प्रोत्साहित किया। अत: वह अपने अधीनस्थ सैलिकों के अमान्य काम के लिये दायी होगा। इसी सिद्धांत पर सन् 1946 ई0 अमरीकी मिलिटरी कमीशन ने द्वितीय महायुद्ध के दौरान में फिलीपिन में जापानी सैनिकों द्वारा की गई ज्यादती के लिये जापानी कमांडर यामाशटी को प्राणदंड दिया, यद्यपि उसने अपने बचाव में कहा कि यातायात विच्छिन्न होने के कारण वह अपने सैनिकों पर नियंत्रण नहीं रख सका।
यदि विजित देश के निवासी विजेताओं से लोहा लें तो उनकी स्थिति (status) सैनिक जैसी नहीं मानी जायगी। पर अंतरराष्ट्रीय विधान की परंपरा के अनुसार शत्रु पक्ष को यह अधिकार है कि उन्हें 'युद्ध अपराधी' के रूप में दंड दे।
अंतरराष्ट्रीय विधान किसी पक्ष द्वारा जासूसी (espionager) एवं राजद्रोह (treason) को व्यवहार में लाने को मान्यता देता है; पर प्रतिपक्ष को अधिकार है कि इन्हें अवैधानिक घोषित करें। यथा, दूसरे महायुद्ध के दौरान में जर्मनी के नात्सी शासकों ने ब्रिटिश नागारिक एमरी को ब्रिटेन के विरूद्ध आकाशवाणी के माध्यम से प्रचार कार्य में नियुक्त किया। पश्चात् ब्रिटिश सेना द्वारा जर्मनी पर अधिकार होने पी एमरी को अंग्रेजी न्यायालय ने प्राणदंड दिया।
संदर्भ ग्रंथ
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- हिस्ट्री ऑव दी यूनाइटेड नेशस वार क्राइम्स कमीशन, 1948 (169272);
- जैक्सन: दी केस अगेन्स्ट दी नात्सी वार क्रिमिनल्स, 1946;
- आर्टिकिल 6 ऑव दी चार्टर ऑव दी फार ईस्टर्न मिलिटरी ट्रिब्यूनल;
- आर्टिकिल 2 (बी) ऑव लॉ नं0 10 ऑव दी एलाइड कंट्रोल, काउंसिल फॉर जर्मनी रिलेतटंग टु दि ट्रायल ऑव वार क्रिमिनल्स।
बाहरी कड़ियाँ
- "International criminal jurisdiction". International Committee of the Red Cross. मूल से 17 मार्च 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2011.
- "Cambodia Tribunal Monitor". Northwestern University School of Law Center for International Human Rights and Documentation Center of Cambodia. मूल से 30 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2008-12-17.
- Burns, John (2008). "Quarter, Giving No". Crimes of War Project. मूल से 31 दिसंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2008-12-17. नामालूम प्राचल
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की उपेक्षा की गयी (मदद) - "War Crimes: Videos, Forums and Communities". War Crimes Limited (UK). 2008. मूल से 31 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2008-12-17.
- "Video: Not a War Criminal". मूल से 29 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2008-12-17.
- War Crimes: Responsibility and the Psychology of Atrocity[मृत कड़ियाँ]
- Human Rights First; Command’s Responsibility: Detainee Deaths in U.S. Custody in Iraq and Afghanistan
- TheRule of Law in Armed Conflicts Project
- Documents and Resources on War, War Crimes and Genocide
- Iraqi Special Tribunal
- Crimes of War Project
- Rome Treaty of the International Criminal Court
- Special Court for Sierra Leone
- UN International Criminal Tribunal for the former Yugoslavia
- UN International Criminal Tribunal for Rwanda
- Ad-Hoc Court for East Timor
- CBC Digital Archives -Fleeing Justice: War Criminals in Canada