यज्ञदत्त शर्मा (साहित्यकार)
यज्ञदत्त शर्मा (जन्म : 1916 ई॰) मुख्यतः हिन्दी के उपन्यासकार थे। उपन्यास लेखन के अतिरिक्त उन्होंने कुछ कहानियाँ भी लिखीं तथा साहित्येतिहास एवं आलोचना के क्षेत्र में भी कार्य किये। 'शिलान्यास' नामक उपन्यास के लिए उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार प्रदान किया गया था।
परिचय
यज्ञदत्त शर्मा का जन्म 18 जनवरी 1916 ई॰[1] को सरावा, मेरठ (उत्तरप्रदेश) में हुआ था।[2] बाद में वे दिल्ली में मालीवाड़ा में बस गये तथा वहीं 'साहित्य प्रकाशन' नाम से अपना निजी प्रकाशन संस्थान खोला।[1] इसी प्रकाशन से उनकी बहुत सी पुस्तकों के अतिरिक्त उनकी रचनावली का भी प्रकाशन हुआ है।
यज्ञदत्त शर्मा के जीवन का बहुत सारा भाग स्वतंत्रता सेनानी के रूप में व्यतीत हुआ। जेल-जीवन, ग्रामीण जगत् और सक्रिय राजनीति से उनका निकट संपर्क रहा है। वे कांग्रेस पार्टी से सम्बद्ध रहे तथा इस क्रम में वे सन् 1930 से 1937 तक कांग्रेस द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनों में भाग लेते रहने के कारण दो बार जेल भी गये।[3] 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें पुनः कारावास में बंद किया गया था।[4] बाद के दौर में वे सक्रिय राजनीति से प्रायः दूर रहकर समर्पित भाव से लेखन कार्य करते रहे।
लेखन-कार्य
यज्ञदत्त शर्मा मुख्य रूप से उपन्यासकार के रूप में ही जाने जाते हैं, परंतु आरंभ में उन्होंने ढेर सारी कविताओं कहानियों तथा एकांकियों की रचना भी की थी। उनकी कविताएँ सन् 1934 से 1941 तक की सरस्वती, देशदूत, माधुरी, विशाल भारत, चाँद जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। 'चाँद' और 'देशदूत' में उनकी एकांकी एवं कहानियाँ भी छपती रहीं।[5] बाद में उनका लेखन उपन्यास केंद्रित हो गया। उनका पहला उपन्यास 'विचित्र त्याग' है जो सन् 1937 में लिखा गया था। उनका दूसरा उपन्यास 'दो पहलू' था जो कि 1930 के नमक आंदोलन से संबंधित है। राजनीति तथा जेल-जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव का उन्होंने सर्जनात्मक उपयोग किया है। सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय भारत एवं पाकिस्तान में होने वाले हत्याकांड के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने 'इन्सान' नामक उपन्यास की रचना की है।[4] भारत के स्वतंत्र होने पर पूंजीपतियों एवं मजदूरों की विषम समस्या के संदर्भ में उन्होंने 'निर्माण-पथ' नामक उपन्यास की रचना की। स्वतंत्रता मिलने के उपरांत सत्ताधारी कांग्रेसी नेताओं में आने वाले परिवर्तनों एवं स्वार्थ-भाव पर उन्होंने 'अंतिम चरण' नामक व्यंग्यात्मक उपन्यास की रचना की है। 'महल और मकान' नामक उपन्यास में उन्होंने भारत की दशा, देश की विगत वर्षों की प्रगति तथा प्रगति क्षेत्र में पूंजीवादी अनैतिक हथकंडो का भंडाफोड़ करते हुए मजदूर वर्ग अथवा नैतिक बलशाली सहयोग संघों द्वारा देश की सफल उन्नति का प्रतिपादन करते हुए विश्वशांति का मार्ग दिखाने का प्रयत्न किया है।[6] सहकारी आंदोलन तथा गाँव में खेती की समस्या को उन्होंने 'बदलती राहें' नामक उपन्यास में आधार बनाया है। जमीदारी प्रथा समाप्त करने के कार्य में हुई शिथिलता तथा काश्तकारों (जमीन जोतने वाले किसानों) की हानि, न्यायालयों की और असम्बद्धता तथा पुलिस ज्यादती की विषय-वस्तु को लेकर उन्होंने 'इंसाफ' नामक उपन्यास की रचना की है। ग्रामीण रूढ़ियों, अंधपरंपराओं तथा जीर्ण-शीर्ण विचारधाराओं के प्रति विरोधी भाव उत्पन्न करने के लिए उन्होंने 'झुनिया की शादी' एवं 'मधु' नामक उपन्यासों की रचना की। 'झुनिया की शादी' में जहाँ गरीब परिवार में लड़की के विवाह की समस्या को लेकर आने वाली कठिनाइयों एवं उनकी भाव-दशाओं का चित्रण है, वही 'मधु' में ब्रिटिश राज्य के अंतर्गत वेश्यावृत्ति का जो व्यवसायीकरण हुआ उसकी दर्दनाक झाँकी प्रस्तुत की गयी है। सम्मिलित परिवार की समस्या पर आधारित उपन्यास हैं 'परिवार' एवं 'बाप-बेटी'। नरोत्तम नागर के अनुसार
"'परिवार' भी एक आंचलिक उपन्यास है। लेकिन इस उपन्यास का लेखक अपने गाँव के निवासियों को जानवर नहीं समझता, न ही इस गाँव का मैला आँचल के रूप में चित्रण करता है।.. पिछड़ा हुआ नहीं बल्कि उन्हें अपने से भी बड़ा और सशक्त मानकर उन्हें प्रणाम करता है।.. इसका कैनवास जीवन की भाँति व्यापक, गहन और जटिल है।.. इस उपन्यास के सभी पात्र -- भले भी और बुरे भी -- सबल और सशक्त हैं और कदम-कदम पर, उस समय भी जबकि वे गिरी हुई अवस्था में होते हैं, उनकी यह शक्ति और सबलता छिपाए नहीं छिपती।"[7]
राजनीति की पृष्ठभूमि एवं देश के नवनिर्माण की योजना के साथ-साथ जन-जागृति की भावना का रचनात्मक विन्यास उनके 'भारत-सेवक' नामक उपन्यास में हुआ है। उनके उपन्यासों में विन्यस्त विषय-वस्तु के संदर्भ में डॉ॰ रामचरण महेन्द्र का कहना है कि
"जहाँ एक ओर कांग्रेस और भारत की राजनीतिक उथल-पुथल के मार्मिक और आँखों देखे चित्र उन्होंने प्रस्तुत किये हैं, वहीं दूसरी ओर प्रेमचन्द जी की परंपरा को अक्षुण्ण रखा है। प्रगतिशील तत्त्वों का प्राधान्य रहने पर भी उन्हें प्रोपेगेंडा नहीं कहा जा सकता।"[8]
प्रकाशित कृतियाँ
- उपन्यास-
- विचित्र त्याग -1937
- दो पहलू -1938
- ललिता -1940 (साहित्य प्रकाशन, मालीवाड़ा, दिल्ली से प्रकाशित)
- इन्सान -1951 (आत्माराम एंड संस, दिल्ली)
- मधु -1953 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- झुनिया की शादी -1954 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- निर्माण पथ (राजपाल एंड संस, दिल्ली)
- मंगलू की माँ (रामप्रसाद एंड संस, आगरा)
- परिवार -1955 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- दबदबा (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- चौथा रास्ता (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- अंतिम चरण (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- रजनीगंधा (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- बसंती बुआजी (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- सबका साथी (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- इंसाफ़ (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- स्वप्न खिल उठा (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- पहला वर्ष (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- स्मृति-चिह्न (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- रूप-विरूप (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- दूसरी बार (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- ताजमहल (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- पांचाली
- मुक्तिपथ -1956 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- रंगशाला -1956 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- महल और मकान -1956 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- बाप-बेटी -1956 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- बदलती राहें -1956 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- दीवान रामदयाल -1956
- भारत सेवक -1957 (ओरिएंटल बुक डिपो, दिल्ली)
- देवयानी -1962 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- अपराधिनी -1962 (सॉमरसेट मॉम के पेंटेडवेल का स्वतंत्र हिंदी रूपांतरण; साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- खून की हर बूँद (1962 के चीनी आक्रमण के परिप्रेक्ष्य में-1)
- विश्वासघात (1962 के चीनी आक्रमण के परिप्रेक्ष्य में-2)
- हिमालय की वेदी पर -1963 (1962 के चीनी आक्रमण के परिप्रेक्ष्य में-3[9]; साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- शिलान्यास -1966 (कमलकुंज प्रकाशन, दिल्ली)
- कविता-संग्रह-
- एक अकेला प्यार
- निबन्ध-आलोचना-
- हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास
- हिन्दी साहित्य का सांकेतिक इतिहास
- प्रबन्ध-सागर (सह लेखन) -1951 (आत्माराम एंड संस, दिल्ली)
- हिन्दी के उपन्यासकार -1951 [भारती (भाषा) भवन, दिल्ली]
- कबीर - साहित्य और सिद्धान्त -1953
- जायसी - साहित्य और सिद्धान्त -1955 (आत्माराम एंड संस, दिल्ली)
- हिन्दी गद्य का विकास -1957 (राजपाल एंड संस, दिल्ली)
- भक्ति साहित्य के आधार स्तम्भ -1984 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
- हिन्दी लघु निबन्ध -1985 (लाइब्रेरी बुक सेंटर, दिल्ली)
- आदर्श भाषण कला (आत्माराम एंड संस, दिल्ली)
- रचना-समग्र-
- यज्ञदत्त शर्मा रचनावली (20 खंडों में) - 1997-2000 (साहित्य प्रकाशन, दिल्ली)
सम्मान
'शिलान्यास' नामक उपन्यास पर सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अ आ भारतीय लेखक कोश, रामगोपाल परदेसी, सान्त्वना प्रकाशन, आगरा, प्रथम संस्करण-1970, पृष्ठ-217.
- ↑ हिन्दी-साहित्यकार-कोश (हिन्दी-सेवी-संसार, प्रथम खंड), डॉ॰ प्रेमनारायण टंडन, विद्यामंदिर, लखनऊ, संस्करण-1963, पृष्ठ-599.
- ↑ भारत-सेवक, यज्ञदत्त शर्मा, ओरिएंटल बुक डिपो, नयी सड़क, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1957, पृष्ठ-1 एवं 4.
- ↑ अ आ भारत-सेवक, यज्ञदत्त शर्मा, ओरिएंटल बुक डिपो, नयी सड़क, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1957, पृष्ठ-4.
- ↑ भारत-सेवक, यज्ञदत्त शर्मा, ओरिएंटल बुक डिपो, नयी सड़क, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1957, पृष्ठ-2.
- ↑ डॉ॰ रामचरण महेन्द्र, भारत-सेवक, यज्ञदत्त शर्मा, ओरिएंटल बुक डिपो, नयी सड़क, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1957, (भूमिका) पृष्ठ-5.
- ↑ नरोत्तम नागर, परिवार, यज्ञदत्त शर्मा, साहित्य प्रकाशन, मालीवाड़ा, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1955, पृष्ठ-'ट'.
- ↑ डॉ॰ रामचरण महेन्द्र, भारत-सेवक, यज्ञदत्त शर्मा, ओरिएंटल बुक डिपो, नयी सड़क, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1957, (भूमिका) पृष्ठ-7.
- ↑ हिमालय की वेदी पर, यज्ञदत्त शर्मा, साहित्य प्रकाशन, मालीवाड़ा, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1963, (डॉ॰ सरनाम सिंह लिखित भूमिका 'उपन्यास से पूर्व') पृष्ठ-6.