मोरचा
मोरचा या जंग कई भिन्न प्रकार की लोहे की ऑक्साइडों (यानि लोहे और ऑक्सीजन के रासायनिक यौगिक) का नाम है। आम भाषा में इसे लाल और नारंगी रंग के उन पदार्थों के लिए प्रयोग किया जाता है जो पानी या हवा की मौजूदगी में लोहे और ऑक्सीजन की रासायनिक अभिक्रिया (रीऐक्शन) से बन जाते हैं। लोहे के संक्षारण (कोरोझ़न) में ज़ंग की अहम भूमिका है।
मोरचा लगने की रासायनिक क्रिया
अगर शुद्ध लोहा (रासायनिक चिन्ह: Fe) शुद्ध पानी (H2O) या शुद्ध ऑक्सीजन (O2) के संपर्क में हो तो ज़ंग नहीं बनता। उसकी बजाए लोहे और ऑक्सीजन में अभिक्रिया (रीऐक्शन) से एक लोह ऑक्साइड की पतली परत बन जाती है जो कस कर लोहे से चिपककर उसको पूरी तरह ढक लेती है। इस परत को निष्क्रीय परत (पैसिविटी लेयर) कहा जाता है। इस परत के अन्दर का लोहा सुरक्षित रहता है। लेकिन सल्फ़र डायऑक्साइड (SO2), कार्बन डायऑक्साइड (CO2) या अन्य अशुद्धियों की उपस्थिति में यह परत ज़ंग का रूप धारण कर लेती है जो लोहे से चिपकता नहीं बल्कि अलग छिलने लगता है। इस से अन्दर का लोहा बार-बार बाहरी तत्वों से संपर्क में आ जाता है और वह भी ज़ंग बनता रहता है।[1] इसी क्रिया को आम बोली में "ज़ंग खाना" कहते हैं।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ Holleman, A. F.; Wiberg, E. "Inorganic Chemistry" Academic Press: San Diego, 2001. ISBN 0-12-352651-5.