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महावीर (गणितज्ञ)

महावीराचार्य, (जैन मुनि) गुलबर्ग कर्नाटक

जैन आचार्य महावीर (या महावीराचार्य) नौवीं शती के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे गुलबर्ग के निवासी थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होने क्रमचय-संचय (कम्बिनेटोरिक्स) पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों (कंबिनेशन्स) की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया। वे अमोघवर्ष प्रथम नामक महान राष्ट्रकूट राजा के आश्रय में रहे।

उन्होने गणितसारसंग्रह नामक गणित ग्रन्थ की रचना की जिसमें बीजगणित एवं ज्यामिति के बहुत से विषयों (टॉपिक्स) की चर्चा है। उनके इस ग्रंथ का पावुलूरि मल्लन ने तेलुगू में 'सारसंग्रह गणितम्' नाम से अनुवाद किया।

महावीर ने गणित के महत्व के बारे में कितनी महान बात कही है-

बहुभिर्प्रलापैः किम्, त्रयलोके सचराचरे। यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम्, गणितेन् बिना न हि ॥
(बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता)

प्रमुख कार्य

  • उन्होने बताया कि ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल नहीं हो सकता।

बड़ी संख्याओं का नामकरण

संख्या

नाम‌ संख्या नाम‌

संख्या

नाम‌

संख्या

नाम‌
101दशं 102शतं 103सहस्रं 104दशसहस्रं
105लक्षं 106दशलक्षं 107कोटि 108दशकोटि
109शतकोटि 1010अर्बुदं 1011न्यर्बुदं 1012खर्‌व्वं
1013महाखर्‌व्वं 1014पद्मं 1015महापद्मं 1016क्षोणि
1017महाक्षोणि 1018शंखं 1019महाशंखं 1020क्षिति
1021महाक्षिति 1022क्षोभं 1023महाक्षोभं

भिन्नों का वियोजन

महावीर ने किसी भिन्न को इकाई भिन्नों (यूनिट फ्रैक्शन्स) के योग के रूप में अभिव्यक्त करने की एक विधि दी। इसमें 'भागजाति' नामक विभाग (श्लोक ५५ से ९८ तक) में अनेक नियम दिये गये हैं। उनमें से कुछ ये हैं-

  • १ को इकाई भिन्नों (unit fractions) के योग के रूप में अभिव्यक्त करने के लिये निम्नलिखित नियम दिया है- ( इसका उदाहरण श्लोक ७६ में दिया है।)
रूपांशकराशीनां रूपाद्यास्त्रिगुणिता हराः क्रमशः।
द्विद्वित्र्यंशाभ्यस्ताव आदिमचरमौ फले रूपे ॥ (गतिणसारसंग्रह कलासवर्ण ७५)
अर्थ : जब फल (result) १ हो तो १ अंश वाले भिन्न, जिनके हर १ से शुरू होकर क्रमशः ३ से गुणित होते जायेंगे। प्रथम और अन्तिम को (क्रमशः) २ तथा २/३ से गुणा किया जायेगा।

उच्च कोटि (order) के समीकरण

महावीर ने मिम्नलिखित प्रकार के n डिग्री वाले तथा उच्च कोटि के समीकरणों का हल प्रस्तुत किया। गणितसारसंग्रह के द्वितीय अध्याय का नाम कला-सवर्ण-व्यवहार (the operation of the reduction of fractions) है। तथा

चक्रीय चतुर्भुज (cyclic quadrilateral) का सूत्र

आदित्य और उनके पूर्व ब्रह्मगुप्त ने चक्रीय चतुर्भुजों के गुणों पर प्रकाश डाला था। इसके बाद महावीर ने चक्रीय चतुर्भुजों की भुजाओं (sides) एवं विकर्णों (diagonals) की लम्बाई ज्ञात करने के लिये समीकरण दिये।

यदि a, b, c, d किसी चक्रीय चतुर्भुज की भुजाएँ हों तथा इसके विकर्णों की लम्बाई x तथा y हो तो,

और

अत:,

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ