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भूरेस्वर महादेव मन्दिर

भूरेश्वर महादेव
मन्दिर का बरामदा
मन्दिर का मुख्य दरवाजा
शंकर पेड़
दो मुँह वाला सर्प
मन्दिर का मानचित्र

सरावन का भूरेश्वर महादेव मन्दिर

जालौन जिले में एक प्राचीन मन्दिर है,जिसकी स्थापना 1400 वर्ष पूर्व में की गई थी| जिसे भूरेश्वर महादेव  मन्दिर के नाम से जाना जाता है| जो जालौन रामपुरा रोड पर एक स्थान राजपुरा पड़ता है| उस राजपुरा स्थान से 200 मीटर पहले सरावन श्रमदान पड़ता है जिसकी दूरी जालौन से लगभग 20 किलोमीटर और रामपुरा से 16 किलोमीटर लगभग में है जिस पर हर 1 घण्टे में बसें आती जाती  रहतीं हैं और भी अन्य साधन उपलब्ध रहते हैं सरावन श्रमदान से सरावन गांव की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है जिस पर साधन की कोई व्यवस्था नहीं है| सरावन से बोहरा रोड जो पश्चिम दिशा में है| उस रोड पर 200 मीटर चलने के बाद नाला की पुलिया है| वहां से 100 मीटर उत्तर दिशा में मन्दिर बना हुआ है |

भ्रमण की रूपरेखा-

6 अप्रैल 2018 दिन शुक्रवार को हम अपने ग्राम से मोटरसाइकिल से अपने दोस्त सुशील के साथ सरावन भूरेश्वर मन्दिर पर पहुँचे| जिसकी दूरी हमारे ग्राम से 9 किलोमीटर है| पर मन्दिर  पहुँचने से पहले हमको एक सर्प मिला जिसके दोनों तरफ मुँह था| वहाँ पर रुककर हमने उस सर्प के दर्शन किये| इसके बाद मन्दिर पर पहुँचे| वहाँ बाबा बीरेन्द्र दास मिले और बाबा बीरेन्द्र दास जी ने मन्दिर के निर्माण से लेकर वर्तमान की स्थिति को अवगत कराया,उसके बाद उन्होंने बताया कि आपको शेष जानकारी संतोष भदौरिया देगें वे वर्तमान राजा के मंत्री हैं जिससे उनको सारी जानकारी उपलब्ध है| क्योंकि वहां के राजा वीरेंद्र विक्रम सिंह इस मन्दिर पर किसी को कोई भी कार्य नहीं करने देते हैं|

मन्दिर का अवलोकन-                                                                                      

मन्दिर की सारी स्थिति हम लोगों ने वहीं जाकर देखी और उसका अवलोकन किया उस मन्दिर में 3 दिशाओं में दरवाजे हैं,जो कि मुख्य दरवाजा पूरब की ओर दूसरा दरवाजा उत्तर की ओर और तीसरा दरवाजा दक्षिण की ओर स्थित हैं इन दरवाजों की स्तिथि का कारण पूछा तो बताया गया कि शिवरात्रि के दिन बहुत सारे श्रद्धालु आते हैं जिस कारण 1 दरवाजे से पूरे लोग दर्शन नहीं कर पाते इस वजह से अलग-अलग 2 दरवाजे और लगवाए गए जिसमें एक तरफ से महिलाएं व एक तरफ से पुरुष जाते हैं, और पूरब के दरबाजे से धीरे-धीरे लोग बाहर निकल आते हैं|| शिवलिंग के सफेद होने के कारण इस मन्दिर का नाम भूरेश्वर महादेव मन्दिर पड़ गया| बाराबंकी जिले के रामनगर में स्थित लोधेश्वर महादेव स्थान पर लाखों काँवरिया जाते हैं| और वहाँ से जल चढ़ाकर लौटते वक्त सरावन में स्थित भूरेश्वर महादेव मन्दिर में जल चढ़ाने के बाद ही अपने गांव को जाते हैं| इस मन्दिर को वर्षों से ऐसे ही देखते आ रहे हैं| जिसका मुख्य द्वार पूर्व, निकास दक्षिण व आगमन उत्तर की ओर है| और छत 6  खंभों पर है| शिवलिंग को लेकर बताया जाता है कि सुबह,दोपहर और शाम अलग-अलग आभास होता है| मन्दिर से लगभग500 मीटर की दूरी पर रियासत के राजा अपनी ही रियासत में  शिवरात्रि से लेकर होली तक लगभग एक माह का मेला लगवाते हैं|

सरावन गांव का निर्माण-

बताया जाता है कि संवत् 1205 ई० श्रावण पूर्णिमा के दिन इस गांव की स्थापना की गई| वहाँ पर एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम आनन्द शर्मा था उसी ने इस गांव की स्थापना करवाई थी| उस समय इस गाँव के राजा श्रवन देव थे| उस समय गांव की जनसंख्या लगभग 1000 थी| वर्तमान में इस गांव के राजा वीरेंद्र विक्रम सिंह हैं| वर्तमान में सरावन गांव की वोटिंग 8600 है| यह जालौन जिले के तहसील माधौगढ़ क्षेत्र में पड़ता है| इस ग्रामसभा में और भी गाँव आते हैं  जो इस प्रकार हैं-

खितौली- वोटिंग 1200

दौलतपुरा- वोटिंग 200

नारायणपुरा- वोटिंग 200                           बदनपुरा- वोटिंग 1100

मन्दिर का निर्माण-

माधौगढ़ तहसील क्षेत्र के ग्राम सरावन के  भूरेश्वर महादेव मन्दिर का शिवलिंग प्रत्येक वर्ष एक चावल भर बढ़ता है| यही वजह है कि शिवलिंग की ऊंचाई 96 सेंटीमीटर हो गई है| शिवरात्रि के पर्व पर लाखों श्रद्धालु यहां माथा टेक कर खुद को धन्य मानते हैं| ऐसे ही शिवरात्रि पर आगे भी यहां बड़ी संख्या में भक्तों के आने की संभावना है| इसे ध्यान में रखते हुए मन्दिर के कार्यकर्ता लगभग 15 दिन पहले से ही मन्दिर की साफ-सफाई और सजावट शुरू कर देते हैं सरावन के राजा वीरेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि मन्दिर लगभग 1400 वर्ष पुराना है| और रियासत के राजा श्रवन देव एकबार हस्तिनापुर गए थे| वहाँ उन्हें शिव ने स्वप्न में आकर शिवलिंग स्थापित करने को कहा, वहाँ से राजा  छोटी मूर्ति लेकर आए थे, और गाँव के पास ही एक जगह रख दी थी और उसे किसी पुनीत स्थान पर स्थापित करना चाहते थे अदभुत बात यह हुयी की अनेक प्रयासों के बावजूद भी राजा तथा अन्य लोग इस मूर्ति को तिल भर भूमि न छुड़ा सके,अन्तत: राजा ने विवश होकर मूर्ति को वहीं स्थापित करवा दिया| तभी से यह शिवलिंग इसी जगह स्थापित हैं| राजा श्रवन के नाम पर गांव का नाम पुराने कागजों में दर्ज है लेकिन भाषा के धारा प्रवाह के कारण ‘श्रवण’ शब्द गाँव की बोली में बोलते-बोलते ठेठ होकर  ‘सरावन’ शब्द बन गया तभी से गाँव का नाम सरावन पड़ा| शिवलिंग के सफेद होने के कारण इस मन्दिर का नाम भूरेश्वर महादेव पड़ा| बाराबंकी जिले के रामनगर में स्थित लोधेश्वर महादेव स्थान में लाखों काँवरिया जाते हैं| और जल चढ़ाकर लौटते वक्त सरावन में स्थित भूरेश्वर महादेव मन्दिर में जल चढ़ाने के बाद ही अपने गाँव को जाते हैं| मन्दिर को वर्षों से ऐसे ही देखते आ रहे हैं| मुख्य द्वार पूर्व, निकास दक्षिण व आगमन उत्तर की ओर है| छत 6  खंभों पर है| शिवलिंग के विषय में बताया जाता है कि सुबह, दोपहर और शाम यह शिवलिंग लोगों के देखने में अलग-अलग प्रतीत होती है| शिवरात्रि से मन्दिर पर मेला लग जाता है वहीं 1 माह के लिए रियासत के राजा अपनी ही रियासत में मेला लगवाते हैं| आज जिस स्थान पर मन्दिर है वहाँ पर बड़े-बड़े पेड़ है जिनकी छाया होती है| वहां पर एक कुंआ भी है| जिस पर लोग पहले पानी पीते थे और स्नान भी करते थे| राजा श्रवन देव ने मन्दिर बनवाया| जिसकी लम्बाई×चौड़ाई=10×10 है| मन्दिर की ऊँचाई लगभग20 फिट है| उसके आगे एक बड़ा सा बरामदा बाद में बनवाया गया| जिसकी लम्बाई 40 फुट व चौड़ाई 30 फुट है| जिसके अंदर छ: खम्भे भी हैं| वहां पर काफी बड़ा मैदान है अब पानी के लिए नल की सुविधा भी है पेड़ भी है वहां पर एक पीपल का पेड़ है जो लगभग 800 वर्ष पुराना है| जिसमें उसके बीच से एक नीम का पेड़ भी निकला है जिसे  लोग हरिशंकर नाम से जानते हैं|

मेला का आयोजन-

मन्दिर के निर्माण के सौ वर्ष बाद वहाँ के राजा ने उसी मन्दिर पर मेले का आयोजन शुरू कर दिया था जिसका समय आज भी शिवरात्रि के दिन से होली तक चलता है| जो पूरे उत्तर प्रदेश में जानवरों का सबसे ज्यादा दिनों तक चलने वाला मेला माना जाता  है| मेले में भीड़ की वजह से मेले का स्थान बदल दिया गया| वर्तमान समय से 32 वर्ष पूर्व से यह मेला सरावन गाँव से 300 मीटर दूरी पर लगता है अब ये मेला  जालौन से रामपुरा रोड के सरावन श्रमदान से 2 किलोमीटर पहले रोड के किनारे ही लगता है जिसमें सर्वप्रथम सभी जानवरों का व्यापार होता है| तत्पश्चात मेले से सम्बन्धित लोगों का सामान झूला नौटंकी आदि एकत्र होता है|

मन्दिर और मेला का महत्व-

मन्दिर जाने से लोगों के मन को शांति मिलती है और विचार में बदलाव आता है| तथा लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं| मन्दिर में बैठने की समुचित व्यवस्था है| जिससे आराम से पूजा की जा सकती है| मन्दिर में महन्त रहते हैं उनके शिष्य वीरेंद्र दास सफाई व्यवस्था करते हैं| मन्दिर की सफाई भी प्रतिदिन होती है वहां पर रहने व रुकने की समुचित व्यवस्था है| शिवरात्रि के दिन बहुत भीड़ होने के कारण महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग व्यवस्था कराई जाती है| ताकि किसी को किसी प्रकार की परेशानी ना हो,जल की व्यवस्था और छाया की व्यवस्था बेहतर है| एक पीपल का पेड़ है उसी से नीम के पेड़ की उत्पत्ति हुई है जिसे लोग हरिशंकर कहते हैं और वहीं पर एक बहुत विशाल बरगद का भी पेड़ है|

मेले में हर तरह की दुकानें आतीं हैं| और जानवरों का व्यापार किया जाता है |यह मेला उस क्षेत्र में पूरे वर्ष का सबसे बड़ा मेला माना जाता है|

                                                  चुनौतियां-

  • लोग पैदल जाते हैं मन्दिर का पूरा रास्ता पक्का नहीं है|
  • बहुत पुराना मन्दिर है जो कि जीर्ण हो चुका है|
  •  वहाँ के राजा ही मन्दिर में अपना धन व्यय करते हैं और किसी को उसका वित्त सम्बन्धी कार्य नहीं करने देते हैं|
  • जबकि लोगों की मनोकामना पूरी होती है तो वह स्वेच्छा से मन्दिर में पैसा लगाना चाहते हैं लेकिन वहाँ के राजा नहीं लगाने देते ऐसा वहां के बाबा बीरेंद्र दास बताते हैं|
  •  मन्दिर के चारों तरफ कंकण बिखरे हुये हैं श्रद्धा वश लोग बिना चप्पल जूते के आते हैं तो उनको परिक्रमा करने में बड़ी समस्या होती है पैरों में छाले भी पड़ जाते हैं|
  • 32 वर्ष पूर्व मेला मन्दिर से अलग लगने लगा है जिससे भक्तों को मन्दिर और मेला में जाने से उनका सारे दिन का समय नष्ट हो जाता है|

चारों तरफ से उप राजमार्ग तक कोई साधन नहीं मिलते हैं| मन्दिर तक जाने का कोई साधन व्यवस्था नहीं है मार्ग भी अच्छा नहीं है|

सुझाव-

1. राजमार्ग से जितने भी उपराजमार्ग  मन्दिर तक है उनको गड्ढे मुक्त कर के लोगों के चलने योग्य बनाया जाय|                                                                                                         2.मन्दिर पुराना हो चुका है अत: उसका जीर्णोद्धार होना चाहिए|

3.मन्दिर का परिक्रमा मार्ग सुदृढ़ होना चाहिए|

4.राजमार्ग से मन्दिर तक जाने की यातायात के साधनों की सुविधा होनी चाहिए |

5.राजा के द्वारा लोगों को मन्दिर में स्वेच्छा से धन व्यय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए|                                                                                                                            

6.मन्दिर के चारों तरफ हरियाली होनी चाहिए जिससे लोग प्रभावित हो सकें|

7.मन्दिर में कूड़ेदान की व्यवस्था होनीं चाहिए,ताकि मन्दिर में गन्दगी न हो|

8.मन्दिर के पास में कम से कम एक या दो दुकाने हों,ताकि शुद्ध प्रसाद मिल सकें|

9.मन्दिर के पास एक तालाब होना चाहिये उसके चारों तरफ छायादार वृक्ष होने चाहिए ताकि लोग कुछ समय तक बैठ सकें|

10.आने बाले भविष्य में जो लोग मन्दिर जाना पसन्द नहीं करते वे लोग हरियाली देखकर जाना जरूर पसन्द करेगें|

11.जो लोग बाहर से आते है उनके लिए मन्दिर में अलग रुकने की व्यवस्था होनी चाहिए|

12.उप राजमार्ग पर मन्दिर का संकेत बोर्ड होना चाहिए|

 निष्कर्ष-

निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि भूरेश्वर महादेव मन्दिर सरावन में एक बहुत ही सुप्रसिद्ध मन्दिर है जहाँ लोग मन में आस्था का भाव लेकर बहुत दूर-दूर से कष्ट सहन करते हुये आते है,जहाँ लोगो की मनोकामनाए पूरी होती है इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह मन्दिर वास्तव में अलौकिक है|

राजमार्ग-                                                             

1.जालौन से रामपुरा की दूरी 35 किलोमीटर

2. जालौन से भिंड की दूरी 84 किलोमीटर                                                                            

3. बंगरा से जगम्मनपुर दूरी 30 किलोमीटर

1.जालौन से रामपुरा की दूरी 35 किलोमीटर

जालौन    ↔       20km         ↔          राजपुरा      ↔        15km   ↔    रामपुरा

                                                ↓↑ 3km                                          

                                             सरावन

2.जालौन से भिंड की दूरी 84 किलोमीटर व बंगरा से जगम्मनपुर दूरी 30 किलोमीटर

जालौन   ↔  20km    ↔      कमसैरा   ↔       10km       ↔          बंगरा     ↔      54km  ↔   भिण्ड                              

                              8km    12km      मिर्जापुर               12km                                                                     

                                 सरावन       7km        8km

                                                                            माधौगढ़