भीम कुम्भकर्ण का पुत्र था। भीम का जन्म कर्कटी के गर्भ से हुआ था। भीम का वध भगवान शिव ने किया था तथा इस वध के बाद ही महादेव भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप मे स्थापित हुए।
कथा
श्रीराम के जन्म से पहले सह्य पर्वत पर कर्कट नाम का एक दैत्य अपनी पत्नी पुष्कषी एवं पुत्री कर्कटी के साथ रहता था। कर्कटी के युवा होने पर उसका विवाह विराध राक्षस से हुआ जो दण्डकारण्य में रहता था। वनवास के समय श्रीराम एवं लक्ष्मण ने विराध का वध कर दिया। तब कर्कटी का कोई और सहारा ना होने के कारण वो वापस सह्य पर्वत अपने माता-पिता के पास आ गयी। एक दिन कर्कट एवं पुष्कषी आहार हेतु बाहर निकले जहाँ उन्हें महर्षि अगस्त्य के शिष्य सुतीक्ष्ण मुनि दिखे। दोनों ने उन्हें ही मारने की कोशिश की किन्तु सुतीक्ष्ण मुनि ने उन्हें अपने तपोबल से जलाकर भस्म कर दिया। अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद कर्कटी पूर्णतः एकाकी हो गयी।
कुछ काल के बाद असुरराज रावण का छोटा भाई कुम्भकर्ण विहार के लिए सह्य पर्वत पर आया जहाँ उसने कर्कटी को देखा और उसपर मुग्ध हो गया। दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया और फिर कुछ समय के बाद कुम्भकर्ण उसे वही छोड़ कर वापस लंका लौट गया। उसी समय श्रीराम ने लंका पर आक्रमण किया और युद्ध में उनके हाथों कुम्भकर्ण का वध हो गया। कर्कटी को ये समाचार मिला और उसी दिन उसके गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम भीम रखा गया।
बड़े होने पर भीम ने अपनी माता से पूछा कि वे यहाँ एकाकी जीवन क्यों बिता रहे हैं और उनके पिता कौन हैं? तब कर्कटी ने भीम को सत्य बताया कि उसके पिता असुरों के सम्राट रावण के छोटे भाई कुम्भकर्ण थे जो श्रीराम के हाथों मारे गए। तब भीम क्रोध से आग-बबूला हो गया और उसने श्रीराम से प्रतिशोध लेने की ठानी। उसने ब्रह्मदेव की घोर तपस्या की जिससे परमपिता प्रसन्न हो गए। वरदान में उसने अतुलित बल माँगा जो उसे ब्रह्मदेव से प्राप्त हुआ जिससे उसे घोर अहंकार हो गया।
इसके बाद वो अयोध्या श्रीराम से प्रतिशोध लेने के लिए चल पड़ा किन्तु मार्ग में ही उसे पता चला कि श्रीराम अपना लीला संवरण कर चुके हैं जिससे उसे बहुत निराशा हुई। वहाँ उपस्थित ऋषिओं से उसे पता चला कि श्रीराम भगवान विष्णु का ही अवतार थे इससे भीम ने श्रीहरि से ही प्रतिशोध लेने की ठानी। उसने सबसे पहले स्वर्गलोक पर आक्रमण किया और इंद्र एवं अन्य देवताओं को स्वर्ग से च्युत कर दिया।
उस विजय से उन्मत्त होकर उसने सीधे बैकुंठ पर आक्रमण कर दिया जहाँ उसका भगवान नारायण से घोर युद्ध हुआ। उसकी मृत्यु का समय अभी नहीं आया है, ये सोच कर भगवान विष्णु युद्ध से विरत होकर बैकुंठ से अंतर्धान हो गए। इसके बाद भीम ने कामरूप के राजा सुदक्षिण पर आक्रमण किया जो भगवान शिव के प्रिय भक्त थे। सुदक्षिण ने बड़ी वीरता से उसका सामना किया किन्तु वरदान के कारण वे भीम को परास्त ना कर सके। तब भीम ने सुदक्षिण एवं उसकी साध्वी पत्नी दक्षिणा को कारागार में डाल दिया। कारागार में ही सुदक्षिण अपनी पत्नी सहित एक पार्थिव शिवलिंग बना कर उसकी नियमित पूजा करने लगे।
उधर विजय से उन्मत्त भीम ने ऐसा उत्पात मचाया कि सृष्टि त्राहि-त्राहि कर उठी। तब समस्त देवता ब्रह्मदेव को लेकर भगवान विष्णु की शरण में गए और उनसे भीम के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करने लगे। इसपर भगवान विष्णु ने कहा कि "हे ब्रह्मदेव! एक तो उस राक्षस को स्वयं आपका वरदान प्राप्त है और दूसरे उसकी मृत्यु भगवान रूद्र के हाथों लिखी है। यही कारण है कि जब उसने बैकुंठ पर आक्रमण किया तो मैंने उसका वध नहीं किया। इसीलिए हमें महादेव के पास जाना चाहिए।" ऐसा कहकर भगवान नारायण ब्रह्मदेव और सभी देवताओं को लेकर कैलाश पहुँचे और उन्हें समस्या से अवगत कराया। सभी देवताओं की वेदना सुनकर भगवान शिव ने सबों को आश्वस्त किया और उन्हें बताया कि वे शीघ्र ही भीम का विनाश करेंगे।
उधर भीम ने राजा सुदक्षिण और उनकी पत्नी को शिवलिंग की पूजा करते देखा। वो क्रोध पूर्वक वहाँ पहुँचा और उसने भगवान शिव को अपशब्द कहे। फिर उसने जैसे ही शिवलिंग को भंग करने के लिए अपना पैर उठाया तभी वहाँ महारुद्र प्रकट हुए जिनके तेज से भीम भय से कांपने लगा। भगवान शिव ने कहा "रे मूर्ख! क्या तुझे ज्ञात नहीं कि इस संसार में हरि एवं हर के भक्तों को प्रताड़ित करने का साहस कोई नहीं करता? तूने मेरे भक्त सुदक्षिण को प्रताड़ित कर अत्याचार की सभी सीमाओं को पार कर लिया है। अतः अब मृत्यु के लिए तैयार हो जा।" फिर भगवान शिव और उस राक्षस में युद्ध आरम्भ हुआ।
महादेव ने बहुत काल बाद कोई युद्ध लड़ा था इसी कारण वे उस युद्ध का आनंद लेने लगे जिससे वो युद्ध थोड़ा लंबा खिच गया। तब देवर्षि नारद युद्ध स्थल पर पहुँचे और उन्होंने भगवान शिव की प्रार्थना करते कहा कि "हे देवाधिदेव! एक तिनके को काटने के लिए कुल्हाड़ी की क्या आवश्यकता है? अब खेल बहुत हुआ भगवन, अब इस असुर का शीघ्र वध कीजिये।" तब भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए एक ही हुँकार में भीम को भस्म कर दिया। तब सभी देवताओं और राजा सुदक्षिण ने महादेव से उसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव सुदक्षिण के बनाये उसी शिवलिंग में स्थापित हो गए