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भारतीय परिषद

सुप्रीम इंडियन काउंसिल, शिमला, 1864

भारतीय परिषद भारत में ब्रिटिश शासन से जुड़े दो अलग-अलग निकायों को अलग-अलग समय पर दिया गया नाम था।

भारत की मूल परिषद की स्थापना चार्टर अधिनियम 1833 के द्वारा फोर्ट विलियम में गवर्नर-जनरल के चार औपचारिक सलाहकारों की एक परिषद के रूप में की गई थी। काउंसिल में गवर्नर-जनरल केवल ईस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स और ब्रिटिश क्राउन के अधीन था।

1858 में भारत सरकार में कंपनी की भागीदारी भारत सरकार अधिनियम 1858 द्वारा ब्रिटिश सरकार को हस्तांतरित कर दी गई।[1] इस अधिनियम ने लंदन में एक नया सरकारी विभाग (भारत कार्यालय) बनाया, जिसका नेतृत्व भारत के कैबिनेट-रैंकिंग राज्य सचिव करते थे, जिन्हें बदले में भारत की एक नई परिषद (लंदन में भी स्थित) द्वारा सलाह दी जाती थी।


लेकिन भारत की इस नई परिषद, जिसने भारत के राज्य सचिव की सहायता की, में 15 सदस्य थे, जबकि भारत की पूर्ववर्ती परिषद में केवल चार सदस्य थे और इसे चार की परिषद कहा जाता था। 15 की परिषद की स्थापना के बाद, अधिनियम की धारा 7 द्वारा चार की परिषद का औपचारिक रूप से नाम बदलकर भारत के गवर्नर जनरल की परिषद कर दिया गया। कभी-कभी इसे भारतीय कार्यकारी परिषद भी कहा जाता था।[2]


सन्दर्भ

  1. "Official, India". World Digital Library. 1890–1923. अभिगमन तिथि 2013-05-30.
  2. "Government of India Act 1858". मूल से 2008-08-20 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-08-16.

अग्रिम पाठन

  • A Constitutional History of India, 1600–1935, by Arthur Berriedale Keith, published by Methuen & Co., London, 1936
  • The Imperial Legislative Council of India from 1861 to 1920: A Study of the Inter-action of Constitutional Reform and National Movement with Special Reference to the Growth of Indian Legislature up to 1920, by Parmatma Sharan, published by S. Chand, 1961
  • Imperialist Strategy and Moderate Politics: Indian Legislature at Work, 1909-1920, by Sneh Mahajan, published by Chanakya Publications, 1983.