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भारत और यूरोप के सांस्कृतिक सम्पर्क

वैज्ञानिक समाज अब भारतीय तथा यूरोपीय संस्कृतियों के बहुत से समान या समरूप अवयवों को स्वीकार करने लगा है। इसकी शुरुआत वैयाकरणों ने की जब उन्हें भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं में बहुत कुछ साम्य के दर्शन हुए। इसके उपरान्त भारतविद्या के अध्येताओं (इण्डोलोजिस्ट) ने पाया कि यह साम्य दर्शन, मिथक और विज्ञान सहित अनेकानेक क्षेत्रों में है। इसके पूर्व यह माना जाता था कि भारत और यूरोप के बीच सम्पर्क बहुत नया (भारत के उपनिवेशीकरण से शुरू होकर) है। किन्तु पुरातत्व और मानविकी में नये अनुसंधानों ने यह साबित कर दिया है कि भारत और यूरोप के सम्पर्क अनादिकाल से आरम्भ होकर मध्ययुग होते हुए आधुनिक युग में भी रहा है।

वैज्ञानिकों के विचार

प्राचीन काल

पाइथागोरस और सांख्य

कला

ईसा मसीह और हिन्दू धर्म

ऐसा माना जाता है कि ईसा मसीह बाल्यकाल से युवावस्था तक भारत में रहे । और यहाँ उन्होंने वैष्णव दीक्षा प्राप्त की । पश्चिम क्षेत्र और मध्य पूर्व के बहुत से ज्ञान पिपासु भारत आते रहे और यहाँ आकर धर्म विषयक ज्ञान अर्जित करते रहे । रोम में उनकी अति प्राचीन मूर्ति है जिसमें उनके मस्तक पर विष्णु तिलक अंकित है । दूसरा सूली पर चढ़ा देने के पश्चात उनके शिष्य उन्हें सूली से उतार देते हैं और छिपते छिपाते उन्हें भारत लाया जाता है । भारत में आज जहाँ कश्मीर का पहलगाम नामक स्थान हैं वहाँ पर उनकी समाधि अवस्थित है और ऐक बकरवाल अथवा यहूदी परिवार आज भी उस स्थल की रखवाली करता है ।

ईसा मसीह एक आत्मदृष्टा थे जिन्होंने पश्चिम में मानवता और धर्म की एक नई ज्योति दी । वैदिक सनातन आर्य संस्कृति कोई सम्प्रदाय मात्र नहीं अपितु एक जीवन शैली है स्वयं और जगत को देखने की एक नई दृष्टि देती है सम्भवतया इसिलिये भारत के सनातन में किसी अन्य सम्प्रदाय के व्यक्ति को अपने मे बदलने की प्रवृत्ति नहीं ।

त्रिमूर्ति से ट्रिनिटी

अटलांटिस

भोजन

महाभारत, इलियड और ओडिसी

मध्ययुग से पुनर्जागरण-युग तक

रामकथा ('प्रिंस चार्मिंग)

ऋष्यमृग और यूनिकॉर्न

मध्यकालीन यूरोपीय साहित्य पर पंचतंत्र का प्रभाव

आधुनिक युग

विक्टर ह्यूगो

स्टीफेन मलार्मी (Stephane Mallarme)

बाहरी कड़ियाँ