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ब्राह्मी स्थिति

ब्राह्मी स्थिति वह स्थिति है जिसमें मन स्थिर होता है। गीता के द्वितीय अध्याय में कहा है-

एषा ब्राह्मी स्तिथिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेलेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥
( हे अर्जुन ! यह ब्राह्मी स्थिति (ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति) है, इसको प्राप्त होकर वह कभी मोहित नहीं होता और अन्तकाल में भी इस ब्राह्मी स्थिति में स्थित होकर वह ब्रह्मानन्द को प्राप्त हो जाता है।)