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बोज्जा तारकं

बोज्जा तारकं
राष्ट्रीयताभारतीय

बोज्जा तारकं (जून 27,1939 - सितंबर 16,2016) एक प्रसिद्ध कवि, लेखक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता और भारत के एक वरिष्ठ मानव अधिकार समर्थक थे। वह आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में एक प्रतिबद्ध वकील होने के साथ साथ राज्य में दलितों की समस्याओं के लिए भी कड़ी लड़ाई लड़ रहे थे।

प्रारंभिक अवस्था

बोज्जा तारकं का जन्म पूर्वी गोदावरी जिले के कन्दिकुप्पा गांव में हुआ था। उनके माता-पिता अप्पलास्वामी और मवुल्लाम्मा थे। उनके पिता, बोज्जा अप्पलास्वमी, तटीय आंध्र में एससीएफ नेताओं में से एक थे और 1951 और 1955 में पूर्वी गोदावरी जिले में अमलापुरम निर्वाचन क्षेत्र से विधान सभा के लिए दो बार चुने गए थे।

शिक्षा और सक्रियता

उन्होंने बीए की डिग्री पीथापुरम राजा कॉलेज, काकीनाडा से और एलएलबी की डिग्री, उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से पूरी की थी। १९७५ के आंतरिक आपातकाल के द्वारं उन्होंने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष किया था, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। उन्होंने १९८६ के आंध्र दलित आंदोलन न सिर्फ सक्रिय रूप से भाग लिया बल्कि वह उसके एक अग्रणी सदस्यों में से एक भी थे।

सामाजिक आंदोलन

तारकं महाराष्ट्र में आरपीआई के कामकाज और राज्य में पार्टी की गिरावट को लेकर काफी निराश और नाराज थे, और वह नहीं चाहते थे की इसके परिणाम अम्बेडकरवाद और संबंधित गतिविधियों का अंत बने। वह दलितों की चिंताओं और समस्याओं को संबोधित करना करना चाहता थे और विशेष रूप से दलित युवाओं में अम्बेडकरवाद का प्रसार करना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने १९७१ में तेलंगाना के निज़म्बाद जिले में आंबेडकर युवाजन संगम की शुरुवात की थी। संगम की प्रारंभिक गतिविधियों में से एक बीड़ी (तम्बाकू पत्ती सिगरेट) मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी के विषय में संगठित करना। निज़म्बाद में अधिकांश दलित और अन्य उपेक्षित वर्ग बीडी मजदूर थे, उनकी लगातार मांग के बावजूद भी उच्य जाती के बीड़ी कारखाना मालिकों ने न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने और बढ़ने से इनकार कर दिया। इसके विरोध में संगम ने मंडल और जिले के सरकारी दफ्तरों के सामने एक महीने लम्बे विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था। जिसने सरकार को उनकी मांगे स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया और साथ ही साथ 'बीड़ी और सिगार कामगार अधिनियम' के उचित कार्यान्वयन के लिए कदम उठाने के लिए भी सहमत हुए। जल्द ही, संगम की सफलता की खबर राज्य के अन्य जिलों में फैल गयी, और दलित युवाओं ने तारकं को अपने जिलों में संगम की शाखाओं का शुभारंभ करने के लिए आमंत्रित करना शुरू कर दिया; 1980 के दशक की शुरुआत में, लगभग राज्य में हर जिले में संगम की एक शाखा थी।

मामले

वह ससुन्दुर नरसंहार मामले के लिए आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में वरिष्ठ लोक अभियोजक थे। दलित कैमरे के साथ एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा कि सुन्दुर मामले में जो न्याय हुआ वो पक्षपाती, अतार्किक और जातिवादी था। जो तर्क उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आपराधिक न्यायशास्त्र और सबूत की प्रशंसा के सभी सिद्धांतों के विपरीत थे। निचली अदालत ने जो पहला निर्णय दिया था उसमे पूरे सबूतों की सविस्तार चर्चा की थी, और एक अभेद्य निष्कर्ष दिया था। लेकिन दुर्भाग्य से उच्च न्यायालय, न्याय के सारे सिद्धांतों को एक तरफ रख कर, एक बहुत ही अवैज्ञानिक तर्क दिया, जो आपराधिक न्यायशास्त्र के लिए अज्ञात है, और सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

वह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता थे और दलितों के अधिकारों के लिए विशेष रूप से खड़े हुए थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पुलिस के द्वारा की गयी फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ मामला दर्ज किया था और मांग की के इन अधिकारियों के खिलाफ जांच स्थापित की जाये। उन्होंने उच्चतम न्यायालय में इस मामला जीत हासिल की।

उन्होंने आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के कारम्चेडू में दलितों पर हुए हमले के खिलाफ 1984 में विरोध दिखाते हुए उच्च न्यायालय से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने हैदराबाद के विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला के सामाजिक बहिष्कार का भी विरोध किया था।

उन्होंने एपी दलित महा सभा की स्थापना की थी। उन्होंने पूरी ज़िन्दगी विशेष रूप से युवाओं के बीच डॉ बी आर अम्बेडकर के विचारों का प्रसार करने के लिए काम किया।

मृत्यु

वह २००७ से मस्तिष्क के ट्यूमर से पीड़ित थे और १६ सितम्बर २०१६ को हैदराबाद के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में उनका निधन होगया।

पुस्तकें

• (कविताएँ) २००० में 'नालगे गोदावरी' (गोदावरी मेरे जैसी है)

• २००३ में 'ब्रेजील प्राजल भूपोर्टम' (भूमि के लिए ब्राजील की लड़ाई) in 2003(जो की जनपदा विग्नना केन्द्रम, हैदराबाद के द्वारा प्रकाशित की गयी थी)

• उन्होंने अंदर प्रदेश में 'नीला जेंदा' नमक अख़बार शुरू किया

• उनके प्रमुख खाम "पुलिस अरेस्तुससेता 'कास्ट-केटेगरी', 'ग्राउंड-पलो-मुदेद्दुलू' 'पंचतंत्र' (उपन्यास)," थे बोर्न-थ्रोट'

साक्षात्कार

• बोजा तारकं: एक संक्षिप्त जीवनी, भाग १

सन्दर्भ