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बख्तावर सिंह

महाराव बख्तावरसिंह मध्यप्रदेश के धार जिले के अमझेरा कस्बे के शासक थे, जिन्होंने १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में मध्य प्रदेश में अंग्रेजों से संघर्ष किया। लंबे संघर्ष के बाद छलपूर्वक अंग्रेजों ने उन्हें कैद कर लिया। 10 फरवरी 1858 में इंदौर के महाराजा यशवंत चिकित्सालय परिसर के एक नीम के पेड़ पर उन्हें फांसी पर लटका दिया। कुंवर रघुनाथ की कोई जानकारी नहीं मिलती है। उनका परिवार रिंगनोद किले में जाकर रहने लगा जो अमझेरा का दूसरा किला था । अमझेरा के आखरी शासक राव लक्ष्मण सिंह जी राठौड़ थे | राव लक्ष्मण सिंह राठौड़ अमझेरा राज्य के आखरी शासक थे जहां उनका परिवार छड़ावद नामक गाँव में रहता था,लक्ष्मण सिंह महाराव बख्तावर सिंह की तीसरी रानी दोलत कुंवर से 27 अप्रेल 1858 को उत्पन्न हुए थे,चावडी रानी दोलत कुंवर महाराव बखतावर सिंह साथ युद्ध गति विधि में साथ रहती थी अमझेरा कुँवर लक्ष्मण सिंह राठौड़ अंग्रेजों के खिलाफ बागियों और विद्रोहियों कि मदद के अलावा कुछ नहीं कर पाए पर लक्ष्मण सिंह के पुत्र अमर सिंह राठौड़ ने महू में अंग्रेजों के खिलाफ गुप्त रूप से विद्रोही गतिविधि संचालित कीl राज खुलने पर वे और भूमिगत हो  गए उनकी महू स्थित सम्पति जप्त कर ली उनके बड़े पुत्र राम सिंग राठौड़ को महू में (ओक्ट्रय सुपरिडेंट/ सर्कल इंस्पेक्टर) के पद से हटा दिया और उनके पुत्र हरि सिंह को ब्रितानी पुलिस उठा ले गई, और दुसरे दिन अधमरी हालत में छोड़ गई, कुछ ही घंटो बाद उनकी मृत्य हो गई, परिवार को और नुकसान  न पहुचे इस लिए अमर  सिंह जी ने आत्म समर्पण कर दिया, गाँधी इरविन समझोते के  बाद गाँधी जी के मशवरे के बावजूद भी ब्रितानी हुकूमत से माफ़ी नहीं मांगी, ब्रितानी हुकूमत ने जप्त सम्पति नहीं लोटाई और अमरसिंह को महू से निष्कासित कर दिया | इस तरह अंग्रजों से आजादी के संघर्ष में अमझीरा राजवंश की तीन पीडी के बख्तावर सिंह, रघुनाथ सिंह और हरि सिंह शहीद हो गए फिर भी  शहीद बखतावर सिंह जी के पौत्र  अमर सिंह राठौड़ के पुत्र राम सिंग राठौड़ (ओक्ट्रय सुपरिडेंट/सर्कल इंस्पेक्टर महू ) के पुत्र अजित सिंह राठौड़ महू में कालेज प्रोफ़ेसर बन गए और ट्रांसफर होने के बाद नीमच में ही बस गए, वर्ष 2007 के लगभग  उत्तर प्रदेश का  एक फर्जी व्यक्ति अमझेरा के कुछ लोगों को बरगला कर प्रो. अजित सिंह राठौड़ जगह स्वयं को प्रोफ़ेसर बता कर व शहीद राव बख्तावरसिंह राठौड़ का वंशज बता कर सम्मानित हुआ पर कुछ समय बाद ही असलियत सामने आने पर  अमझेरा की जनता ने उसे नकार दिया था | उसके पहले भी फर्जी तरीके से शहीद बख्तावर सिह के शैशव अवस्था में ही मृत पुत्र किशन सिंह को 27 अप्रेल 1858 में जन्मा बता कर भीमसिंह के पुत्र किशन सिंह की विधवा द्वारा छ्डावाद के दीप सिंह के दुसरे पुत्र निर्भय सिंह उर्फ़ (लक्ष्मण सिंह) को गोद लेना बता अमझेरा की वारिसी सिध्द कराने कि कोशिश कि गई थी,पर बात नहीं बनी और छ्डावाद केस हार गए, पर लोगबागों में यही भ्रान्ति अभी भी फ़ैली है, कि 27 अप्रेल 1858 में किशन सिंह जन्मे और किशन सिंह विधवा ने लक्ष्मण सिंह को गोद लिया, जबकि उज्जैन में  स्थित प. अरविन्द त्रिवेदी मगरगुहा के पूर्वज गुरु किशनलाल की बही में पृष्ठ 8 पर 30 दिसंबर 1857को शहीद भुवानी सिंह संदला के क्रियाकर्म दर्ज है ,उसी के उपर अमझेरा वंशावली पृष्ठ 7 और 8 पर दर्ज है ,जिसमे अजित सिंह बख्तावर सिंह रघुनाथ सिंह और किशन सिंह का नाम दर्ज है 30 दिसम्बर 1857के पूर्व से ही किशन सिंह का  दर्ज नाम से यह प्रमाणित होता है कि किशन सिंह का जन्म 27 अप्रेल 1858 को दोबारा नहीं हो सकता, १८५७ के बाद अमझेरा राजवंश का लेखाजोखा रखनेवाले बड़वाह जी शंकर सिंह के पूर्वज अमझेरा क्षेत्र में  नहीं गए पर अमझेरा राजवंश कि रानियों का लेखा जोखा रखने वाले  रानीमंगा राम सिंग और उनके पूर्वज अमझेरा क्षेत्र में जाते रहे उनके पास  दर्ज अमझेरा  रानियों से सम्बंधित रिकार्ड के अनुसार 27 अप्रेल 1858 को लक्ष्मण सिंह का ही जन्म हुआ था, लक्षमण सिंहजी का  विवाह भंवर कुँवर भटियानी जी ओसिया से हुआ उनके पुत्र अमर सिंह का विवाह पालनपुर पीथापुर  वाघेला जी से हुआ, अमरसिंह के पुत्र ओक्ट्रय सुपरिडेंट महू राम सिंग राठौड़ का विवाह बरडिया समंद कुंवर सिसोदानी जी से हुआ,राम सिंह के पुत्र  प्रो. अजित सिंह राठौड़ का विवाह कृष्णा कुँवर जाधवन जी  मेत्राल गुजरात  से हुआ। |[1] मध्यप्रदेश सरकार ने अमझेरा स्थित महाराणा बख्तावरसिंह के किले को राज्य संरक्षित इमारत घोषित किया है।जिला मुख्यालय से 27 km इंदोर अहमदबाद राज्य मार्ग पर हैं।

सन्दर्भ

  1. पाटिल, प्रेमविजय (12 अगस्त 2016). "अमर शहीद महाराणा बख्तावरसिंह". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. मूल से 8 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 सितंबर 2016.