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बंजारा साहित्य

बंजारा साहित्य (Banjara Literature) आज ज्यादातर देवनागरी लिपि में पाया जाता है। ऐसा देखा जाता है कि बंजारा साहित्य अधिकतर लोक साहित्य एवं मौखिक साहित्य के रूप में संरक्षित रहा है। साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। साहित्य समाज की संपूर्ण विधाओं का विश्लेषण करता है।नामवर सिंह के अनुसार "साहित्य मानव के संपूर्ण व्यक्तित्व की वाणी है , अभिव्यक्त जीन की इकाई का प्रतिबिंब है।" आधुनिक बंजारा साहित्य यह बंजारा भाषा के साथ विभिन्न प्रादेशिक भाषाओ में भी निर्माण हो रहा है। जिस प्रकार मराठी साहित्य , दलित साहित्य, ग्रामीण साहित्य, गुजराती साहित्य , श्रमिक साहित्य , कन्नड साहित्य , तेलुगू साहित्य , सिंधी साहित्य , कोंकणी साहित्य के रूप में देखा जाता है, उसी प्रकार बंजारा साहित्य के रूप में भी देखा जाता है। बंजारा साहित्य की अपनी विशिष्ट बंजारा भाषा है , जो गौरवशाली संस्कृति की समृद्ध विरासत है। 'बंजारा साहित्य का अस्तित्व उसके जीवन मूल्यों और दर्शन में निहित है।' बंजारा साहित्य सम्मेलन अखिल भारतीय स्तर पर देखा जाता है। महान समाज सुधारक और प्रारंभिक इतिहासकार बलिरामजी पाटिल से लेकर आज की रचनात्मक लेखकों की नई पीढ़ी के गोर बंजारा साहित्य संस्कृति के विशेषज्ञ एवं साहित्यिक एकनाथ पवार नायक तक बंजारा साहित्य संस्कृति को समृद्ध करने वाला मौलिक काल माना जाता है। [1]

बंजारा साहित्य इतिहास

प्राचीन , मध्ययुगीन काल में बंजारा साहित्य में लोकसाहित्य की अहम भूमिका रही। कहा जाता है की , बंजारा साहित्य का बेहद पुरातन परंपरा रही है। पश्चिमी देशो में हुई क्रांति के कारण अलग अलग विचारप्रवाह का जन्म हुआ। भारतीय स्वतंत्रता पुर्व और स्वतंत्रता के बाद सामाजिक , सांस्कृतिक एवं साहित्य में बडी मात्रा में बदलाव आया। बंजारा साहित्य संस्कृति में भी बदलाव का प्रवाह शुरु हुआ। आधुनिक गौर बंजारा साहित्य संस्कृति का दर्शन आदय इतिहासकार ,लेखक बलिराम पाटील ने करवाया। आत्माराम राठौड ने टांडा कि व्यथाऐ अपनी जीवनी द्वारा सामने लायी। आधुनिक बंजारा साहित्य इतिहास में महेशचंद्र बंजारा , पद्मश्री सोमलाल नायक, डॉ.रामाकोटी पवार , मोतीराज राठौड , इंदरसिंह बालजोत ,ग.ह. राठौड , रमेश आर्य , जयराम पवार, मोहन नायक , अशोकराव पवार , पंजाब चव्हान , वीरा राठौड , एकनाथ पवार , रमेश नायक आदि प्रतिभावंत साहित्यिक , कवि , लेखकोने बंजारा साहित्य की विरासत अक्षुण्ण रखने में बहुमुल्य योगदान दिया। बंजारा साहित्य में सौंदर्यवाद , इहवाद , बोधवाद , जीवनवाद और आधुनिकतावाद का भी परिचय होने लगा। बंजारा संस्कृति पर जगविख्यात शायर नज़ीर अकबराबादी और आचार्य श्रीराम शर्मा , पंडित गौरीशंकर ओझा , रवींद्रनाथ टागौर ने प्रकाश डाला है। हिंदी साहित्य , मराठी साहित्य , तेलगु कन्नड साहित्य , श्रमीक साहित्य , ग्रामीण साहित्य , आदिम साहित्य ऐसे संपूर्ण साहित्य विश्व में अब बंजारा साहित्य का भी जिक्र होने लगा। देवनागरी लिपी में बंजारा साहित्य की बडी मात्रा में साहित्य निर्माण होने लगा है। टांडा को सुधारणात्मक बारहखड़ी सर्वप्रथम बलीराम पाटील ने दी , परिवर्तन की विद्रोही बारहखडी आत्माराम राठौड ने और संविधानीक जागरूकता की सृजनशील चौदहखडी एकनाथ पवार ने दी। बंजारा साहित्य विश्व की यह साहित्य साधना बंजारा साहित्य विश्व को गतिमान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । 'बलिराम पाटील से लेकर एकनाथ पवार' तक के इस कालखंड में बंजारा साहित्य को गरिमा के साथ गतिमानता प्रदान कराने में सफलता मिली। इस कारण बंजारा साहित्य विरासत का यह स्वर्णिम कालखंड नई पिढीयो के लिये प्रेरक माना जाता है।[2][3]

बंजारा साहित्य संमेलन

1.अखिल भारतीय बंजारा साहित्य संमेलन , वाशीम महाराष्ट्र

2.अखिल भारतीय बंजारा साहित्य संमेलन , नागपुर , महाराष्ट्र

3.अखिल भारतीय बंजारा साहित्य संमेलन , मुंबई

4. अखिल भारतीय बंजारा साहित्य संमेलन , हैद्राबाद , तेलंगणा

बंजारा साहित्यिक लेखक कवि सुचि

गौर बंजारा साहित्यिक लेखक एवं कवि जिन्होंने बंजारा भाषा , साहित्य एवं संस्कृति के संदर्भ में विस्तृत रुप से निरंतर साहित्य लेखन का कार्य किया।

•बलिराम पटेल नायक •आत्मराम कनिराम राठौड •पद्मश्री सोमलाल नायक खेतावत •डा.रामाकोटी पंवार •डा.रमेश आर्य • भिमणीपुत्र मोहन नायक •प्रा.अशोकराव पवार •यशवंत जाधव • महेशचंद्र बंजारा • इंदरसिंह बालजोत • मोतिराज राठौड • ग‌.ह.राठौड • जयराम सिताराम पवार •एकनाथ पवार नायक •प्रकाश राठौड • हरलालसिंह पवार नायक • विरा राठौड •रमेश कार्तिक नायक •मंजुला चौहान •जयसिंग जाधव •जयपाल सिंह राठौड

बंजारा साहित्य प्रकार

बंजारा लोकसाहित्य में लडी , भजन , ढावलो , साक्तर , साकी , रनेरी , केणावट , नक्ता , गीद ,रनोळी , दोहा , हवेली आदि साहित्य प्रकार होता है। आधुनिक बंजारा साहित्य में कविताऐ , उपन्यास , जीवनी , कथाऐ , समीक्षा , नाट्य , गीत आदि प्रकार का लेखन प्रकार होता है। लोकसाहित्य जनमानस कि सहजप्रवृत्ती से संबंधित है। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार लोक साहित्य मानव समाज को संचालित व प्रेरित करने का स्त्रोत है। परिनिष्ठीत , प्रचलित साहित्य यह एक सुसंस्कृत लोगो के मानवीय भावों एवं विचारों की मानक भाषा में लिखित लिपीबद्ध कलात्मक अभिव्यक्ति है। स्वतंत्रता पुर्व कालसे बंजारा लोकसाहित्य ने समाज में जागरुकता निर्माण करने की अहम भूमिका रही है।[4]

बंजारा साहित्य समिक्षा

बंजारा साहित्य ग्रंथसुचि

•गौर बंजारा क्षत्रियोका इतिहास -(बलिराम पाटील)

•बंजारा समाज और संस्कृति - आचार्य श्रीराम शर्मा

•ताण्डा - आत्मराम कनिराम राठौड

•गौर राजपुत के अनमोल रतन- इंदरसिंह बालजोत

•लोहगढ जगातील सर्वात मोठा किल्ला -जयराम पवार

•शहिद ए आझम लखिशाह बंजारा -अशोकराव पवार

•दी हिस्टरी ऑफ ग्लोबल बंजारा - एकनाथ पवार नायक

•राजा भोज परमारो की गोरवंशीय विरासत - जयराम पवार

•ढावलो - रमेश कार्तिक नायक

•गोरपान गोरबोलीतील भाषा सौंदर्य - मोहन नाइक

संदर्भ

  1. चौहान, भट्टू वेंकण्णा (2024). "बंजारा साहित्य विश्व की गरिमा पुर्ण विरासत". कुंटेडा. 4: 8–11.
  2. Chavan, M. R. (2024). "History and inspiration of modern Banjara Literature". Kunteda. 4: 5–7.
  3. तांडाकार ते वेदनाकार : आधुनिक बंजारा साहित्य चळवळीचा वारसा. अ.भा.बंजारा साहित्य संमेलन वाशीम. 2016. पपृ॰ 90–94. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788191054330.
  4. चांदावत, डॉ. विजया (2018). बंजारा लोकसाहित्य. हैदराबाद: गीता पुस्तक केंद्र , हैदराबाद. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-935405-0-3.