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प्राणियों और वनस्पतियों का देशीकरण

प्राणियों और वनस्पतियों को उनके मूल निवास के समकक्ष, या बिल्कुल भिन्न जलवायुवाले दूसरे प्रदेश में, कृत्रिम या प्राकृतिक तरीके से ले जाकर, सफलतापूर्वक उनका विस्तार किए जाने की पद्धति के लिए प्राणियों और वनस्पतियों का देशीकरण (Naturalization of Plants and Animals) - इस पद का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। व्यापक अर्थ में देशीकरण पारिस्थितिक अनुकूलन ही है, किंतु सीमित अर्थ में देशीकरण का तात्पर्य उस क्रिया से है जिसके द्वारा जीवधारी का, अपने ही अथवा अन्य प्रदेश में, इस प्रकार परिवर्तन किया जाता है जिससे वह वहाँ की जलवायु की नई दशाओं को सहन करने की क्षमता प्राप्त कर ले और वहाँ के अनुकूल बन जाए। इस अनुकूलता का प्रतिपादन कुछ लोग लामार्क (Lamarck) और कुछ डार्विन (Darwin) के सिद्धांत के अनुसार करते हैं।

देशीकरण का प्रभाव

जब किसी प्राणी या वनस्पति का किसी नवीन और भिन्न देश में पदार्पण होता है और उसका देशीकरण किया जाता है तब उसमें निम्नलिखित परिवर्तन की संभावनाएँ हो सकती हैं:

(1) किसी विशेष क्षेत्र में प्राणी की संख्या में स्पष्ट तीव्र वृद्धि होती है, जैसा ऑस्ट्रेलिया में खरगोशों तथा न्यूज़ीजैंड में हरित चटखों (green finches) की संख्या में। तीव्र वृद्धि के दो कारण हो सकते हैं : (Eò) अनुकूलन परिस्थितियाँ, जैसे भोजन की प्रचुरता और उससे प्रजनन की गति में वृद्धि तथा (JÉ) नए प्रदेश में शत्रुओं और अड़चनों की अनुपस्थिति।

(2) नए प्रदेश में व्यक्ति की माप और शक्ति में वृद्धि।

(3) आवागमन के कारण विभिन्न किस्म के प्राणियों की संख्या में वृद्धि और कुछ विलक्षण जातियों की उत्तरजीविता (survival)।

(4) प्राणी साधारणतया रूढ़िवादी होते हैं, पर उनमें कभी कभी मंद गति से परिवर्तन होते भी देखे जाते हैं।

(5) कुछ जीव नए देश में बहुत शीघ्र ही वहाँ की जलवायु के अभ्यस्त हो जाते हैं और उनमें कोई वाह्य परिवर्तन नहीं होता, जैसा घोड़ों, खरगोशों, चूहों, गौरैयों और मुर्गियों में देखा जाता है, पर कुछ, जैसे तिब्बती याक, कम ऊँचाई के क्षेत्र में नहीं पनपते। पशुओं के देशीकरण की सफलता बहुत कुछ उनकी रचनात्मक विलक्षणताओं पर निर्भर करती है।

(6) जब वातावरण, भोजन अथवा प्रकृति में किसी प्रकार के प्रत्यक्ष परिवर्तन के फलस्वरूप जैविक या आंगिक परिवर्तन ऐसा जड़ पकड़ लेता है कि उन परिस्थितियों के, जिनके कारण परिवत्रन हुए, समाप्त हो जाने पर भी परिवर्तन दृढ़ बना ही रहता है, तब ऐसे परिवर्तन रूपांतरण (modification) या व्यक्तिगत गुण (acquired character) का उपार्जन कहते हैं।

स्वदेशीय एवं आगंतुक प्राणियों की परस्पर प्रतिक्रिया

जब कोई प्राणी एक देश से दूसरे देश में पहुँचता है, तब यह आगंतुक पहले से रहनेवाले देशी प्राणियों, अथवा पूर्वदेशीकृत प्राणियों का विनाश कर देता है, जैसे जमैका में रहनेवाले बक चूहों (crane rats) और विदेश से आगत जहाजों के चूहों (alien shiprats) का समूल नाश आगंतुक नेवले ने कर दिया। यह नाश दो प्रकार से होता है:

(1) आगंतुक प्राणियों द्वारा पूर्व के प्राणियों को खाकर, अथवा

(2) अपनी वंशवृद्धि कर।

नए देश में नए जानवरों के साथ-साथ उनके परजीवियों (parasites) का प्रवेश भी हो सकता है, जैसे चूहों के साथ प्लेग के पिस्सू का और सूअरों के साथ, मनुष्यों में ट्राइकिनोसिस (Trichinosis) की बीमारी उत्पन्न करनेवाले, ट्राइकिनेला स्पाइरैलिस (Trichinella spiralis) का प्रवेश।

न्यूज़ीजैंड में प्राणियों के देशीकरण का उदाहरण

यह संदेहात्मक है कि दो जातियों के चमगादड़ों को छोड़कर, न्यूज़ीलैंड का कोई भी स्तनी प्राणी स्वदेशोत्पन्न है। न्यूज़ीलैंड में 48 जातियाँ प्रविष्ट की गईं, जिनमें 44 जातियाँ जान बूझकर और चार अनजाने में। इन चार अनजाने प्राणियों में मूषक (mouse) की एक और चूहों (rats) की तीन जातियाँ हैं। यहाँ जब यूरोप के लोगों का बसना प्रारंभ हुआ, तब चूहों की इन तीनों जातियों में से एक जाति मस एक्ज़लैंस (mus exulans) समाप्त हो गई तथा 48 जातियों में से 25 जातियाँ भली भाँति स्थापित हो गईं।

कैप्टन कुक के पदार्पण की तारीख से न्यूज़ीलैंड में 130 जाति के पक्षियों का प्रवेश जान बूझकर कराया गया है। 24 जातियाँ वास्तव में जंगली हो गई हैं, जिनमें से वन्य हंस (mallard), जंगली मुर्गी (pheasant), कबूतर, चकवा (skylark), कस्तूरिका (thrush), कस्तूरक (black bird), तुषारचटक (hedge sparrow), रूक (rook), सारिका (starling), भारतीय मैना (Indian mynah), गोरैया, नंदी चटक (chaffinch), स्वर्ण चटक (goldfinch), हरित चटक और पीली कलँगीवाली चिड़ियाँ (yellow hammer) हैं। दूसरी तरफ 1868 ई. से अब तक नौ जाति की चिड़ियाँ या तो विरल हो गई हैं या विलुप्त हो चुकी हैं, जैसे देशी कौआ, देशी कस्तूरिका, देशी तीतर (native quail), श्वेत वक (white heron) तथा अन्य पक्षी। ये किसी समय बहुत थे और अब स्थानों में खदेड़ दिए गए हैं, जहाँ अधिक आबादी नहीं है। टामसन लिखते हैं "ऐसा अवश्य नहीं सोचना कि केवल आगंतुक जानवरों के ही कारण ऐसा प्रभाव पड़ा है, यद्यपि चूहे, बिल्लियाँ, खरगोश, सूअर, मवेशी, तथा चिड़ियाँ अपने निवासक्षेत्र की सीमाओं को पारकर दूसरे क्षेत्र में बहुत दूर तक घुस गए हैं। निवास तथा प्रजनन स्थानों में प्रत्यक्ष बाधा और भोजन की पूर्ति में हस्तक्षेप के कारण, इन मूलदेशीय प्राणियों का विध्वंस और ह्रास हुआ है।"

जो बातें चिड़ियों के लिए लागू होती हैं, वे ही बातें निम्न केटि के प्राणियों, सरीसृपों से लेकर कीटों तक के लिए लागू होती हैं। किंतु पुन: इसका कारण आगंतुकों की प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा में न ढूँढ़कर मानव हस्तक्षेपों में ढूँढ़ना होगा। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि सन् 1870 के बाद से सरीसृप से लेकर कीटों तक की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई है। इस प्रकार दक्षिणी द्वीप में बेलवर्ड (bellbird) अधिक संख्या में हो गए हैं, यद्यपि उत्तरी द्वीप में ये विरल हैं।

जलवायु में परिवर्तन

जब देश के जलवायु में तीव्र परिवर्तन होते हैं, जैसे शुष्क जलवाय का आद्र्र जलवायु में, या उष्ण जलवायु शीत जलवायु में परिवर्तित हो जाता है, तब जैविक विकास में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं:

(1) चरम अवस्था में, जैसे यदि कोई देश हिमाच्छादित हो जाए, तो वहाँ से जीव का लोप हो सकता है, जैसा हिमनद कल्प (Glacial period) में ग्रेट ब्रिटेन के अधिकांश भागों में हुआ।

(2) कम उग्र (severe) अवस्था में, जैसे क्रमिक प्रतिकूल अवस्था उत्पन्न होने पर वरण (selection) पर प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार शुष्क अवस्था का आगमन निकट होने पर, मरुदभिदी पौधे (xerophytic plants) जीवित रहते हैं और शीघ्र फूलने और फलनेवाले पौधे जाड़े में प्रकंद (rhizome) और शल्क कंद (bulb) के रूप में जमीन के अंदर चले जाते हैं। जब वर्ष में अनेक महीनों तक पृथ्वी हिमाच्छादित रहेगी, तब भी उपर्युक्त पौधे जीवित रहेंगे। जीवों के लिए शुष्क होनेवाले देशों में ग्रीष्मनिष्क्रियता (aestivation) और ठंढे देशों में शीतनिष्क्रियता (hybernation), उपयोगी होती है। जलवायु का परिवर्तन वनस्पति और प्राणियों के जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित कर सकता है।

(3) कुछ प्राणी, जो कुछ दूर तक चल सकते हैं और तीव्रगामी हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण अपना निवास क्षेत्र बदल देते हैं, जैसे जब यूरोप में दक्षिण की ओर हिमनदकल्प का प्रसार हुआ, तब बहुत से उत्तरी स्तनी इसकी लपेट में आ गए। अतएव लेमिंग और आर्कटिक लोमड़ी के अवशेष सुदूर दक्षिण तक पाए जाते हैं। जब मृदु जलवायु (milder climate) प्रारंभ हुई और हिमखंड पिघलने लगा, तब आर्कटिक प्ररूप के वंशज, जैसे रेनडियर और श्वेत लोमड़ियाँ, उत्तर की ओर चली गईं।

(4) किसी देश की जलवायु का परिवर्तन, प्राणियों के स्वभाव में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला देता है और जीव के जीवनचक्र को भी निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भाग लेता है। जलवायु परिवर्तन के कारण प्राणी की उपापचयी क्रिया (metabolic) की गति मंद या तीव्र हो सकती है, अथवा जीवन की किसी विशेष अवस्था (phases) में परिवर्तन हो सकता है। स्तनी प्राणियों में, कम से कम अंत: स्त्रावी ग्रंथि (endocrine gland) अथवा ग्रंथियों की स्त्राविक क्रियाशीलता, में भिन्नता उत्पन्न हो सकती है।

(5) स्तनी में गर्भकाल एवं प्रसव की ऋतु, पक्षियों में देशांतरण की आवर्तिता, शीतनिष्क्रियता, विश्राम, शीततंद्रा (coma), सुस्ती इत्यादि का कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है। आद्र्रता बढ़ने से रसीले पौधों की उत्पत्ति होती है फिर इसके फलस्वरूप कोंपल चरनेवाले प्राणियों की वृद्धि होती है, क्योंकि जंगल का विस्तार होता है तो जीवों को आश्रय मिलता है। आद्र्रता की थोड़ी कमी से घास में वृद्धि होती है और उसके कारण घास चरनेवाले जानवरों में वृद्धि होती है। शुष्कता से जंगल की सीमा में संकुचन होता है और इस प्रकार प्राणी नए आश्रय (haunts) की खोज के लिए प्रेरित होता है।

देशीकरण की विधि

जब किसी बहुमूल्य वनस्पति या जानवर का बिल्कुल नए और भिन्न प्रकार की जलवायु वाले देश में देशीकरण के लिए आयात करना हो, तब आयातकर्ता को चाहिए कि वह पशु या वनस्पति की किसी ऐसी किस्म को चुने जो उस जलवायु के अनुकूल प्रतीत हो। गुण की विभिन्नता का भी ध्यान रहना चाहिए, क्योंकि कुछ मूलवृंत, या पशु वंश (stocks), अन्य की अपेक्षा अधिक रूढ़ हाते हैं। होनहार मूलवृंत या पशु का किसी माध्यमिक स्थान में आयात करना उपयोगी होगा। डार्विन ने प्रेक्षित किया कि इंग्लैंड में पाली गई भेड़ों की अपेक्षा केप ऑव गुडहोप की मेरीनो नस्ल की भेड़ें भारत में भली भाँति वृद्धि करती हैं। उन अवस्थाओं में जहाँ नए देश में पशु या वनस्पति की वृद्धि में सफलता किसी विशेष गुण, जैसे मोटे फर या रोएँदार पत्तियों पर निर्भर करती है, उनका वरण ऐसे परिवर्त (variants) में किया जाए जिनमें वांछित दिशा में भिन्नता की प्रवृत्ति भली भाँति जान पड़े।

विलिस (Willis) ने देखा कि बहुत असंगत प्रयास करने के कारण मनुष्य देशीकरण में असफल रहा है। असफलताओं से शिक्षा लेकर मनुष्य क्रमिक परिवर्तन का प्रयास कर रहा है, जैसा उसने लाइबिरिया की कॉफी (Coffee) को जावा में उगाने में किया है। कॉफी के प्रत्येक क्रमिक पीढ़ी के बीज को लेकर, प्रत्येक बार कुछ अधिक गजों की ऊँचाई पर बोकर, जिस प्राकृतिक अवस्था के अनुरूप बीज था उससे भी बहुत अधिक ऊँचाई पर भली भाँति विकसित होने के योग्य बना दिया गया है। लंका के वानस्पतिक उपवन में यूरोप से लाया गया सुंदर साइपीरस पयारस (Cyperus papyrus) के बीज को उगाने का प्रयास निष्फल हो गया, किंतु भारत के सहारनपुर से लाए गए बीज के उगने का प्रयास सफल हो गया। इसका निष्कर्ष यह है कि मनुष्य को बहुत अधिक शीघ्रता नहीं करनी चाहिए और प्राकृतिक प्रक्रियाओं से सबक लेकर, लंबी अवधि में धीरे धीरे, क्रम से देशीकरण करना चाहिए।